(COVID के बीच राजनीतिक सभाएं) ''कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसे बिना सजा के जाने न दिया जाए'' : मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने लॉ एनफोर्समेंट एजेंसियों से कहा
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शुक्रवार (09 अक्टूबर) को राज्य की कानून प्रवर्तन एजेंसियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि COVID19 प्रोटोकॉल का पालन किया जाए। वहीं कोई कितना भी बड़ा व्यक्ति क्यों न हो, अगर वह COVID19 प्रोटोकॉल का उल्लंघन करता हुआ पाया जाता है तो उसे दंडात्मक प्रावधान की कठोरता से बचकर जाने की अनुमति नहीं होनी चाहिए।
जस्टिस शील नागू और जस्टिस राजीव कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने भी कहा कि,
''COVID19 के इलाज का अभी तक आविष्कार नहीं किया गया है और निकट भविष्य में उक्त इलाज आम लोगों के लिए उपलब्ध होने की कोई संभावना नहीं है। इसलिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि COVID19 प्रोटोकॉल में रखी गई सावधानियां और प्रतिबंध का सख्ती पालन किया जाएं।''
न्यायालय ने विशेष रूप से नोट किया कि,
'' लोगों की भीड़ या मण्डली COVID19 द्वारा संक्रमित लोगों की संख्या को बढ़ाने की क्षमता रखती है। दुनिया अब खुल रही है क्योंकि कोई भी व्यक्ति बहुत लंबे समय तक घर के अंदर नहीं रह सकता है। ऐसे में जब कोई बाहर आना-जान शुरू कर देता है तो उस स्थिति में COVID19 प्रोटोकॉल का अनुपालन बहुत जरूरी हो जाता है।''
केस की पृष्ठभूमि
18 सितंबर को, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा था कि ''कानून, चाहे वैधानिक हो या कार्यकारी निर्देशों के आकार में,सभी को सम्मान व पालन करना चाहिए। भले ही वह कोई आम आदमी हो या कोई नेता, कोई राजनीतिक अधिकारी और यहां तक कि भले ही वह राज्य का प्रमुख भी क्यों न हो।''
न्यायमूर्ति शील नागू और न्यायमूर्ति राजीव कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ इस मामले में उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी,जिसमें मांग की गई थी कि प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाए कि वह राजनीतिक दलों द्वारा राज्य में आयोजित मण्डलियों पर प्रतिबंधित लगाए या ऐसे मामलों में कार्रवाई की जाए।
इसके अलावा, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (ग्वालियर खंडपीठ) ने शनिवार (03 अक्टूबर) को जनहित में कुछ अंतरिम आदेश पारित किए थे,ताकि राज्य में राजनीतिक मण्डलियों को रोका जा सकें।(विशेष रूप से खंडपीठ के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में आने वाले 9 जिलों के संबंध में)।
जस्टिस शील नागू और जस्टिस राजीव कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने राज्य प्राधिकरणों को निर्देश दिया था कि वे राजनीतिक/सरकारी/राज्य या सामाजिक कार्यकारियों के खिलाफ डीएमए व आईपीसी के प्रावधानों के तहत कार्रवाई करें(3 अक्टूबर 2020 के आदेश के तहत पैरा (ई) में)।
09 अक्टूबर को कोर्ट की कार्यवाही
याचिकाकर्ता ने इस मामले में आईए 5562/20 दायर की थी,जिसमें यूनियन ऑफ इंडिया और इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया को एक पक्षकार बनाने की मांग की गई थी। आईए 5563/20 दायर कुछ कागजात रिकाॅर्ड पर लेने की मांग की गई थी। आईए 6066/20 अंतरिम राहत पाने के लिए और आईए 6084/20 के तहत COVID19 प्रोटोकॉल का पालन न करने वाले राजनीतिक नेताओं और राजनीतिक दलों के सदस्यों और कार्यकारी अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की मांग की गई थी।
हाईकोर्ट ने आईए 5562/20 और आईए 5563/20 पर उचित रूप से विचार करने के बाद उनको स्वीकार कर लिया था।
याचिकाकर्ता ने उक्त आईए में कुछ तस्वीरों की सहायता से बताया था कि 4, 5 और 6 अक्टूबर, 2020 को कोविद -19 प्रोटोकॉल का पालन किए बिना ही ग्वालियर और दतिया में 100 से अधिक व्यक्तियों की मण्डली हुई थी। जहाँ पर कई राजनीतिक और राज्य के पदाधिकारी मौजूद थे और उन्होंने स्वयं COVID19 प्रोटोकॉल का उल्लंघन देखा था। कोर्ट ने 3 अक्टूबर 2020 को वर्तमान याचिका के मामले में आदेश पारित किया था।
न्यायालय की टिप्पणियां
न्यायालय ने कहा कि ग्वालियर जिले में और उसके आस-पास के विभिन्न विधान सभा क्षेत्रों में उपचुनाव की प्रक्रिया के कारण यह मण्डली बन रही हैं और COVID19 प्रोटोकॉल का व्यापक उल्लंघन हो रहा है(केंद्र सरकार,राज्य सरकार और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा समय-समय पर प्रतिबंध और सावधानियों को निर्धारित व प्रकाशित किया गया है)।
न्यायालय को यह भी सूचित किया गया कि हाल ही में केंद्र सरकार ने 5 अक्टूबर 2020 और राज्य सरकार ने 8 अक्टूबर 2020 को निर्णय लिए थे,जिनमें नाॅन-कंटोनमेंट जोन में एक मण्डली में अधिकतम 100 व्यक्तियों के आने के प्रतिबंध पर राहत दे दी थी और अधिकतम सीमा तय नहीं की गई थी।
इन दलीलों के मद्देनजर, कोर्ट ने अधिकारियों के लिए उपरोक्त निर्देश जारी करते हुए कहा था कि चाहे कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो,अगर उसने COVID19 प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया है तो उसे दंडात्मक प्रावधान की कठोरता से बचकर जाने की अनुमति नहीं होनी चाहिए।
अंत में, अतिरिक्त महाधिवक्ता श्री मोदी को निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर देने के लिए निर्देशित किया गया था -
(1) क्या किसी भी राजनीतिक और राज्य के अधिकारियों के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज की गई थी, अगर हां तो किसके कहने पर और किसकी उपस्थिति में उपर्युक्त मण्डली हुई, और यदि नहीं तो क्यों?
(2) क्या वर्तमान याचिका में इस न्यायालय द्वारा 3 अक्टूबर 2020 को पारित आदेश के ऑपरेटिव पैरा (ई) में निहित निर्देश का अनुपालन किया गया था या नहीं?
मामले को आगे सुनवाई के लिए सोमवार यानि 12 अक्टूबर, 2020 के लिए पोस्ट किया गया है।
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