'पुलिस इस तथ्य से प्रभावित हो गई कि याचिकाकर्ता एक विशेष समुदाय से संबंधित हैं': गुजरात हाईकोर्ट ने हिरासत में यातना की जांच के आदेश दिए
गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य पुलिस को एक मामले में कड़ी फटकार लगाई है। पुलिस आईपीसी की धारा 328 और 394 के तहत चोरी और अन्य गलतियों की जांच करने की प्रक्रिया में "इस तथ्य से प्रभावित हुई कि याचिकाकर्ता एक विशेष समुदाय से संबंधित हैं"। कोर्ट ने पुलिस विशेषकर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की "उदासीनता" पर निराशा व्यक्त की।
जस्टिस निखिल करील याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर एक विशेष आपराधिक आवेदन पर सुनवाई कर रहे थे। आवदेन पुलिस अधिकारियों की "ज्यादतियों" के संबंध में था, जिसमें डीएसपी और एसपी स्तर के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे, जिन पर निष्पक्ष जांच का जिम्मा था।
बेंच ने कहा कि पीड़ित एक समुदाय के सदस्य हैं। दो अज्ञात पुरुषों और अज्ञात महिलाओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले वे ईमानदारी से अपना व्यवसाय कर रहे थे। प्रतिवादी संख्या 6 द्वारा की गई पूछताछ के अनुसार, याचिकाकर्ता 1 और 2 (भाई) मोटरसाइकिल से जा रहे थे और पुलिस ने उन्हें रुकने को कहा। वे रुके नहीं और फिसल गए। पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया।
मामले में यह देखा गया कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एकमात्र सबूत उनका अपना कबूलनामा था जिसका इस्तेमाल चार्जशीट जमा करने के लिए किया गया था। सुनवाई में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आरोप सिद्ध नहीं हुए।
जस्टिस करील ने यह भी देखा कि याचिकाकर्ता कपास की खेती कर रहे थे और उनसे बरामद किए गए गहने और धन उनकी कमाई के थे, अपराध की आय से जुड़े नहीं थे। जांच अधिकारी ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एक अन्य अपराध के संबंध में एक पहचान परेड की थी। चिकित्सा अधिकारी द्वारा जारी किए गए प्रमाणपत्रों से पता चला है कि पुलिस अधिकारियों द्वारा प्रताड़ना के कारण याचिकाकर्ताओं को कई चोटें आई।
बेंच ने टिप्पणी की,
"रिपोर्ट में संभावित कारण का भी पता चलता है जिसके लिए याचिकाकर्ताओं को पकड़ा गया था और जैसा कि ऊपर बताया गया है, यह याचिकाकर्ताओं की जन्म की पहचान से संबंधित होगा।"
कानून तोड़ने वालों के रूप में याचिकाकर्ताओं की प्रोफाइलिंग को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट ने प्रतिवादी संख्या 4 यानी पुलिस महानिरीक्षक, अहमदाबाद रेंज को याचिकाकर्ताओं की गिरफ्तारी के कारणों और "अज्ञात अपराधों" में उनके निहितार्थ की जांच करने का निर्देश दिया और पुलिस अधिकारियों द्वारा कोई ज्यादती की गई थी या नहीं, इस बारे में एक "बहुत स्पष्ट रिपोर्ट" प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा कि अंतिम रिपोर्ट एक हलफनामे के माध्यम से अदालत को सौंपी जाए और अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।
खंडपीठ ने कहा, प्रथम दृष्टया, याचिकाकर्ताओं को 'गलत जांच' के आधार पर 5 मामलों में झूठा फंसाया गया था और इसलिए, गृह विभाग कर एक अधिकारी, जो उप सचिव के पद से नीचे का ना हो, वह यह बताए कि याचिकाकर्ता अनुकरणीय मुआवजे के हकदार क्यों नहीं हैं।
तदनुसार, बेंच ने इस तरह के हलफनामे दाखिल करने के लिए मामले को 12 अप्रैल 2022 के लिए सूचीबद्ध किया।
केस शीर्षक: मनसुखभाई वलजीभाई कुमारखानिया (देवीपूजक) और 3 अन्य बनाम गुजरात राज्य और 5 अन्य
मामला संख्या: R/SCR.A/2249/2015