'पुलिस कर्मी COVID के दौरान सड़कों पर लगन से ड्यूटी कर रहे हैं': कर्नाटक हाईकोर्ट ने लाॅकडाउन के दौरान कथित पुलिस अत्याचारों के खिलाफ कार्रवाई की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की
कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में एक वकील द्वारा दायर उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें मांग की गई थी कि संबंधित स्टेशन हाउस अधिकारियों को निर्देश दिया जाए कि लॉकडाउन उल्लंघनकर्ताओं को कथित रूप से प्रताड़ित करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करे।
न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की खंडपीठ ने कहा कि अधिवक्ता एस बालाकृष्णन द्वारा दायर याचिका निराधार आरोपों से युक्त है। इसलिए इस पर गंभीरता से विचार नहीं किया जा सकता है और इसे खारिज किया जाता है। अदालत ने याचिकाकर्ता पर 1,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया, जिसे 30 दिनों के भीतर कर्नाटक कानूनी सेवा प्राधिकरण के पास जमा करवाना होगा।
याचिका में लगाए गए आरोपों पर विचार करते हुए अदालत ने कहा, ''रिट याचिका में मामूली बयान देने के अलावा तथाकथित पुलिस अत्याचारों के संबंध में कुछ भी रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया है।''
कोर्ट ने यह भी कहा कि,''याचिकाकर्ता ने इस अदालत के समक्ष एक भी उदाहरण या कोई दस्तावेजी सबूत पेश नहीं किया है, जो यह प्रदर्शित करता हो कि लॉकडाउन के आदेशों का उल्लंघन करने पर पुलिस ने लोगों पर हमला किया था या उनसे मारपीट की थी। यदि कोई छिटपुट घटना हुई भी हो तो पीड़ित व्यक्ति के पास प्राथमिकी दर्ज करने का एक उपाय है। याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत रूप से यह याचिका दायर की है,जो खुद एक वकील है और प्राथमिकी दर्ज करने की प्रक्रिया से पूरी तरह अवगत भी है। यदि पुलिस मामला दर्ज नहीं कर रही है, तो उसके पास दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 200 के तहत शिकायत दायर करने का एक उपाय उपलब्ध है।''
अदालत ने यह भी कहा कि, ''कर्नाटक के साथ ही पूरे देश में पुलिस बल के ही लोग हैं जो कोरोना महामारी के बावजूद दिन-रात काम कर रहे हैं, आम नागरिकों को सहायता प्रदान कर रहे हैं और कल्पना की किसी भी सीमा के तहत यह नहीं कहा जा सकता है कि वे कोरोना महामारी के दौरान अत्याचार कर रहे हैं जैसा कि रिट याचिका में कहा गया है।''
पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच का निर्देश देने की प्रार्थना को खारिज करते हुए अदालत ने कहा, ''पूरी दुनिया कोरोना महामारी के कारण बहुत गंभीर स्थिति का सामना कर रही है और इसके परिणामस्वरूप दुनिया भर में लाखों लोग मर रहे हैं। लोगों को अपने घर तक सीमित रखने से निश्चित रूप से संक्रमण का खतरा कम हो रहा है। फ्रंटलाइन कार्यकर्ता जो पुलिस कर्मी भी हैं, वे भी आम आदमी की तुलना में अधिक संक्रमण के संपर्क में हैं। डॉक्टरों, पुलिस कर्मियों, पैरामेडिकल स्टाफ, फ्रंटलाइन वर्कर्स आदि की सैकड़ों मौतों के बावजूद जान को खतरा होने के बावजूद वे निष्ठापूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं। पुलिस के जवान वर्दी में अपनी ड्यूटी पूरी लगन से करने के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं। यह न्यायालय ऐसे कथित अत्याचारों के एक या दो मामलों की संभावना से इंकार नहीं करता है, लेकिन दंड प्रक्रिया संहिता के तहत शिकायत दर्ज करने के लिए कानून में एक उपाय उपलब्ध है।''
कोर्ट ने यह भी नोट किया गया कि एक अप्रैल से 13 मई के बीच 41 पुलिस कर्मियों ने कोरोना के कारण अपनी जान गंवाई है। वहीं महामारी की पहली लहर में भी लगभग 103 पुलिस अधिकारियों ने कोरोना के कारण दम तोड़ दिया था।
उत्तरांचल राज्य बनाम बलवंत सिंह चैफल (2010) 3 एससीसी 402) के मामले में दिए गए फैसले का जिक्र करते हुए अदालत ने कहा, ''निराधार आरोपों वाली एक तुच्छ जनहित याचिका खारिज करने योग्य है ताकि जनहित याचिकाओं की शुद्धता और पवित्रता को बनाए रखा जा सकें।''
अदालत ने लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज की घटना की तुलना करने वाले याचिकाकर्ता के आचरण की भी निंदा की। कोर्ट ने कहा कि,''स्वतंत्रता संग्राम की तुलना कोरोना महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन से नहीं की जा सकती है।''
आदेश डाउनलोड/पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें