अगर पीड़ित बच्चा एससी/एसटी से है तो POCSO विशेष अदालत एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामले की सुनवाई कर सकती है : बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2020-07-09 06:51 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि जिस बच्चे के ख़िलाफ़ अपराध हुआ है,यदि वह अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का है तो प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 (POCSO) कोर्ट के अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत इस मामले की सुनवाई का अधिकार समाप्त नहीं होते।

न्यायमूर्ति भारती डांगरे ने पुणे के 21 साल के एक युवक की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह कहा। इस युवक पर एक नाबालिग के साथ बलात्कार का आरोप है। नवंबर 2019 में इस घटना के बाद लड़की की मां ने इस मामले में एफआईआर दर्ज कराई थी।

एफआईआर में कहा गया था कि लड़की की उम्र 16 वर्ष 6 महीने है लेकिन पीठ ने कहा कि उसके जन्म प्रमाणपत्र के हिसाब से उसकी उम्र 15 वर्ष से अधिक होती है।

अभियोजन का कहना था कि पीड़िता के आवेदक के साथ दोस्ताना संबंध थे और वह उसके साथ पुणे से दूर मोटरसाइकिल से आती-जाती थी। दोनों एक साथ डेढ़-दो घंटे एक लॉज में भी रहे।

न्यायमूर्ति डांगरे ने कहा,

"शादी के वादे के कारण शारीरिक संबंध बनाए गए, इस बात का निर्धारण मामले की सुनवाई के दौरान होगा। पर यह निर्विवाद है कि लड़की नाबालिग थी और यह मामला आईपीसी की धारा 376 के तहत आता है और इसमें सहमति का कोई सवाल ही नहीं उठता है।"

19 जून को हुई सुनवाई में एपीपी एसपी गवंद ने एकल जाज एसवी कोतवाल की पीठ को कहा कि चूंकि अपराध अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम के अंतर्गत आता है इसलिए इस मामले को इस अधिनियम की धारा 14A के तहत दायर किया जाना चाहिए न कि सीआरपीसी की धारा 439 के तहत।

इस संदर्भ में आवेदक के वक़ील अभिजीत देसाई ने इन मामलों का भी ज़िक्र किया -

1. रजिस्ट्रार (न्यायिक हाईकोर्ट) [मद्रास हाईकोर्ट]

2. रिंकु बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (इलाहाबाद हाईकोर्ट)

3. सरवन सिंह बनाम कस्तुरीलाल (AIR 1977 सुप्रीम कोर्ट 265)

4. गुड्डू कुमार यादव बनाम बिहार राज्य (पटना हाईकोर्ट)

कोर्ट ने कहा,

"…POCSO अधिनियम एक विशेष क़ानून है और बाद का क़ानून है और इसमें non obstante क्लाज़ है और अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम की धारा 14A जो अवरोध उत्पन्न करता है वह इस पर प्रभावी नहीं होगा।"

अदालत ने अंततः कहा,

"जिस बच्चे के ख़िलाफ़ अपराध हुआ है,यदि वह अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का है तो प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 (POCSO) कोर्ट के अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत इस मामले की सुनवाई का अधिकार समाप्त नहीं होते।"

इस बात पर ग़ौर करते हुए कि पीडिता धनोरी, पुणे की है, कोर्ट ने आरोपी से कहा कि वह पुणे की सीमा में प्रवेश नहीं करने का लिखित वादा करेगा और आवेदक के वक़ील देसाई ने इस आदेश पर अमल करने की बात कही।

जहां तक एससी/एसटी अधिनियम के तहत लगाए गए आरोप की बात है, न्यायमूर्ति डांगरे ने कहा कि पीड़ित लड़की ने अपने बयान में कहा कि आरोपी ने उसको उसकी जाति का उल्लेख करते हुए उसका शोषण किया इसको छोड़कर ऐसी कोई बात नहीं है जो इस अधिनियम के तहत आए।

अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत इस बयान का प्रभाव और उसके कंटेंट पर सुनवाई के दौरान ग़ौर किया जाएगा। यह देखने का काम अभियोजन पक्ष का नहीं है कि आवेदक यह जानता था कि लड़की अनुसूचित जाति की है और इसलिए जानबूझकर उसने उसका यौन उत्पीड़न किया….चार्ज शीट पर ग़ौर करने से पता चलता है कि प्रथम दृष्टया यह मामला 1989 के अधिनियम के प्रावधानों के तहत नहीं आता है।

अदालत ने ₹25,000 के बॉंड पर आरोपी को ज़मानत दे दी।

मामला: ज़मानत के लिए आवेदन, 817, 2017

मामले का नाम: सूरज एस पैठनकर बनाम महाराष्ट्र राज्य

कोरम: भारती डांगरे

वक़ील: अभिजीत देसाई एवं अमोल 

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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