पोक्सोः 'पेनट्रेशन पर्याप्त, सीमन मौजूद हो यह जरूरी नहीं': दिल्ली हाईकोर्ट ने 5 साल की बच्ची से दुष्कर्म के दोषी की सजा बरकरार रखी

Update: 2022-01-08 11:22 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने ने पॉक्सो मामले में एक व्यक्ति की दोषस‌िद्धी और सजा को बरकरार रखा। उसे पांच साल की बच्‍ची के साथ दुष्कर्म का दोषी पाया गया था।

कोर्ट ने पाया कि आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) और पोक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत अपराध का गठन करने के लिए पेनेट्रेशन पर्याप्त है और सीमन की उपस्थिति जरूरी नहीं है।

जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने कहा,

"निस्संदेह, एफएसएल और डीएनए फिंगरप्रिंटिंग रिपोर्ट के अनुसार सीमन का पता नहीं चला था....धारा 376 आईपीसी और पोक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराध का गठन करने के लिए पेनेट्रेशन पर्याप्त है और यह आवश्यक नहीं है कि सीमन अनिवार्य रूप से मौजूद हो।"

अदालत 12 जनवरी, 2018 के फैसले के खिलाफ दायर एक अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें अपीलकर्ता को पोक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया गया था। धारा 6 के तहत पेनेट्रेट‌िव सेक्‍सुअल असॉल्ट के लिए सजा का प्रावधान है।

अपीलकर्ता ने उस आदेश को भी चुनौती दी थी, जिसमें उसे 10 साल के कठोर कारावास और 5,000 रुपए का जुर्माना भरने का निर्देश दिया गया था। जुर्माना न भरने पर एक माह का साधारण कारावास और भुगतने का ‌आदेश दिया गया था।

अपीलकर्ता का मामला था कि घटना के समय पीड़िता 5 साल की बच्ची थी और उसे माता-पिता ने फुसलाकर आरोप लगवाया है, जो अपीलकर्ता के विरोधी हैं। आगे यह तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता से कोई रिकवरी नहीं की गई थी और एफएसएल रिपोर्ट में, कोई सीमन नहीं पाया गया था।

नाबालिग पीड़िता की मां के बयान के मुताबिक, बच्ची ने उसे सूचना दी कि अपीलकर्ता उसे अपने कमरे में ले गया, उसकी योनि में अपनी उंगली और पुरुष अंग डाला, जिसके बाद वह दर्द के कारण रोने लगी। नाबालिग का बयान धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज किया गया, जिसमें उसने वही दोहराया, जो उसने अपनी मां से कहा था।

कोर्ट ने कहा,

"घटना के तुरंत बाद नाबालिग बच्ची ने अपनी मां को बताया कि उसे दर्द हो रहा है और तथ्य यह है कि उसका यौन उत्पीड़न किया गया था। रिकॉर्ड पर मौजूद चिकित्सा साक्ष्य से इसकी विधिवत पुष्टि की गई है और ट्रायल कोर्ट के समक्ष लंबे समय तक जिरह की गई है।"

कोर्ट ने कहा, एमएलसी में मां को दिए गए उसके बयान, सीआरपीसी की धारा 164 के तहत और अदालत के समक्ष दर्ज बयान सुसंगत हैं जो अपीलकर्ता के खिलाफ कथित अपराध को उचित संदेह से परे साबित करने के लिए पर्याप्त हैं ।

अदालत ने इसलिए निष्कर्ष निकाला कि नाबालिग पीड़िता और उसके एमएलसी के बयान के अनुसार, अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे यह साबित करने में सफल रहा कि अपीलकर्ता ने पोक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराध किया था।

कोर्ट ने कहा, "अपीलकर्ता को दी गई 10 वर्ष की कठोर कारावास की सजा पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराध के लिए निर्धारित न्यूनतम सजा है। इस प्रकार, इस न्यायालय को सजा के आदेश में कोई त्रुटि नहीं मिलती है। अपील है खारिज की जाती है।"

केस शीर्षक: राम नवल बनाम राज्य

प्रशस्ति पत्र: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 12

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