पोक्सो एक्ट एक सुखी पारिवारिक रिश्ते को तोड़ने के लिए नहीं है : मेघालय हाईकोर्ट ने नाबालिग के साथी के खिलाफ चल रही कार्यवाही रद्द की

Update: 2022-09-02 12:50 GMT

मेघालय हाईकोर्ट ने एक नाबालिग के साथी के खिलाफ लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012(पॉक्सो) के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए दोहराया कि एक खुशहाल पारिवारिक रिश्ते को तोड़ने के लिए अधिनियम की कठोरता को लागू नहीं किया जा सकता। इस तरह के मामलों का निर्णय आरोपी के प्रति सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए, जिसका नाबालिग के साथ आपसी सहमति से बनाया गया संबंध है, वर्तमान मामले में वह लगभग 18 वर्ष की आयु की है।

जस्टिस डब्ल्यू डिएंगदोह की पीठ ने यह टिप्पणी पॉक्सो के मामले के एक आरोपी और उसके बच्चे को पैदा करने वाली नाबालिग साथी की तरफ से दायर एक याचिका का निपटारा करते हुए की हैं। यह कपल पति-पत्नी की तरह एक साथ रह रहे हैं।

नाबालिग को उसकी गर्भावस्था के संबंध में अस्पताल में भर्ती कराया गया था और जांच के दौरान उसकी उम्र 17 वर्ष पाई गई थी। जिसके बाद आरोपी पर मामला दर्ज किया गया था।

मामले की सूचना स्थानीय पुलिस को दी गई, जो हरकत में आई और पॉक्सो एक्ट, 2012 की धारा 5(जे)(ii)/6 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया।

हालांकि यह ध्यान में रखते हुए कि परिवार की देखभाल करने वाला कोई नहीं होगा,याचिकाकर्ता को जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया था और उसे आरोपों पर विचार के चरण में ट्रायल कोर्ट के सामने पेश होने के लिए समन किया गया था।

नाबालिग ने प्रस्तुत किया कि उनके इस संबंध को दोनों पक्षों के परिवार के सदस्यों द्वारा आशीर्वाद दिया गया था और इसलिए, आपराधिक कार्यवाही जारी रखने से कोई न्याय नहीं मिलेगा।

राज्य ने भी याचिकाकर्ताओं की प्रार्थना पर कोई कड़ी आपत्ति दर्ज नहीं की।

कोर्ट ने कहा,''तथ्य की स्थिति के समग्र मूल्यांकन पर, इस न्यायालय का विचार है कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्ति का प्रयोग यह सुनिश्चित करने के लिए होता है कि वास्तविक और सही न्याय किया जाए, जिसे कानून के संबंधित प्रावधानों की सख्त व्याख्या या आवेदन से कम नहीं किया जा सकता है...वर्तमान स्थिति यह है कि याचिकाकर्ता, विशेष रूप से याचिकाकर्ता नंबर-2 कानूनी विवाह योग्य उम्र की है और उसने बताया है कि वह अपने नवजात बच्चे के साथ याचिकाकर्ता नंबर-1 के साथ विवाहित जीवन जी रही है। याचिकाकर्ता नंबर-1 के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखने से वास्तव में सभी संबंधितों के लिए कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।''

स्केमबोरलैंग सुटिंग व अन्य बनाम मेघालय राज्य व अन्य के मामले में दिए गए फैसले का हवाला दिया गया,जहां हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ पॉक्सो मामले में दर्ज एफआईआर और आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया था, क्योंकि यह नोट किया गया था कि आरोपी व्यक्ति और पीड़िता-पत्नी एक-दूसरे के साथ पति-पत्नी के रूप में रह रहे थे और इस संबंध से उनका एक बच्चा भी पैदा हो चुका है।

उक्त के आलोक में याचिकाकर्ता नंबर-1 के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया गया।

केस टाइटल- श्री. एडेलबर्ट मारबानियांग व अन्य बनाम मेघालय राज्य व अन्य

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