पुरुषों और महिलाओं की विवाह योग्य उम्र समान करने के लिए याचिकाः केंद्र ने कहा, मुद्दे के अध्ययन के लिए कार्यबल गठित
पुरुषों और महिलाओं की विवाह योग्य उम्र एक समान करने के संबंध में दायर याचिका पर महिला और बाल विकास मंत्रालय ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि 'मातृत्व में प्रवेश के लिए लड़कियों की उम्र' के मुद्दे का अध्ययन करने के लिए एक कार्यबल का गठन किया गया है।
केंद्र सरकार की वकील मोनिका अरोड़ा ने बजट भाषण में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा की गई टिप्पणियों के बारे में न्यायमूर्ति डीएन पटेल और न्यायमूर्ति हरि शंकर की खंडपीठ को जानकारी दी।
वित्त मंत्री ने अपने भाषण में इस मुद्दे पर कहा था-
"शारदा अधिनियम, 1929 में संशोधन करके 1978 में महिलाओं की विवाह की उम्र 15 साल से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई। भारत जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, माहिलाओं के लिए उच्च शिक्षा और करियर बनाने के अवसर बढ़ रहे हैं। मातृ मृत्यु दर कम होने और साथ ही साथ पोषण के स्तर में सुधार की संभावनाएं भी हैं। मातृत्व में प्रवेश के लिए लड़की की उम्र को अब इसी रोशनी में देखने की जरूरत है। मैं एक टास्क फोर्स नियुक्त करने का प्रस्ताव करती हूं जो छह महीने में अपनी सिफारिशें पेश करेगी।
कोर्ट ने वकील को इस संबंध में एक हलफनामा दायर करने के लिए कहा है।
पिछली सुनवाई पर मोनिका अरोड़ा से अदालत से अनुरोध किया था कि वर्तमान मामले में कानून और न्याय मंत्रालय को भी जोड़ा जाए, ताकि सरकार की ओर से जनहित याचिका में मांगे गए निर्देशों पर इकट्ठी प्रतिक्रिया आ सके।
याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने अपनी दलील में कहा था कि विवाह के लिए न्यूनतम आयु में भेद न केवल संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत लैंगिक समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है, बल्कि यह CEDAW के तहत भारत के दायित्वों के खिलाफ भी है।
याचिकाकर्ता ने कहा विवाह योग्य उम्र का यह भेद महिलाओं के बारे में पितृसत्तात्मक रूढ़ियों को पुष्ट करता है। उन्होंने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ (2014) 5 SCC 438, प्रवासी भलाई संगठन बनाम भारत संघ, (2014) 11 SCC 477 के मामलों में के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून का हवाला देते है तर्क दिया कि इस तरह का भेद समान सामाजिक प्रतिष्ठा और धारणा के अधिकार का उल्लंघन करता है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि विवाह योग्य उम्र का यह अंतर वैवाहिक घरों में शक्ति असंतुलन पैदा करता है, जो महिलाओं के सामाजिक अभाव को और बढ़ाता है। पुरुषों के लिए ऊंची न्यूनतम आयु एक त्रुटिपूर्ण धारणा द्वारा आधारित है कि पति परिवार का एकमात्र ब्रेडविनर है और इसलिए उसे अपने और अपने परिवार के लिए कमाई करने के लिए शादी से पहले उच्च शिक्षा की आवश्यकता होती है।
मामले में अगली सुनवाई 28 मई को होगी।