लाॅकडाउन के दौरान निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को बर्खास्त करने/वेतन में कटौती करने से बचाया जाए, मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर

Update: 2020-04-25 17:43 GMT

Madras High Court

मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर कर मांग की गई है कि लॉकडाउन के दौरान निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को बर्खास्त करने/मनमाने तरीके से उनके वेतन में कटौती करने से सुरक्षा प्रदान की जाए।

अरुण सरवनन ने यह कहते हुए याचिका दायर की है कि कुछ निजी कंपनियां लागत कम करने के लिए ''मनमानी कार्रवाई'' को अपना रही हैं और वैश्विक महामारी के इन संकटपूर्ण समय के दौरान अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकाल रही हैं।

याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि इस तरह की प्रथाओं से कर्मचारियों के मन में मानसिक अवसाद और पीड़ा पैदा होगी। वहीं इस तरह की कार्रवाई भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) और अनुच्छेद 21 के तहत मिले मौलिक अधिकार क्रमशः पेशे के अधिकार और जीवन के अधिकार का भी उल्लंघन है।

याचिकाकर्ता ने मैसर्स एस. निर्मल आदित्य और एल. नरसिम्हा वर्मन के माध्यम से याचिका दायर करते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री ने समय-समय पर देश के सभी संस्थानों और नियोक्ताओं से आग्रह किया है कि वह अपने कर्मचारियों की सेवाओं को समाप्त न करें या अपने कर्मचारियों के वेतन में कटौती न करें।

इसके अलावा, केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय ने भी एक परिपत्र या सर्कुलर जारी किया था। जिसमें सार्वजनिक और निजी संस्थानों के नियोक्ताओं से मांग की थी कि वह इस मामले में सहयोग करें।

इन सभी तथ्यों को देखते हुए याचिकाकर्ता ने न्यायालय से आग्रह किया है कि वह प्रतिवादी राज्य निर्देश दें कि वह एक परिपत्र जारी करें। ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि निजी क्षेत्र में सभी श्रेणियों के कर्मचारियों (सर्विस सेक्टर ही नहीं बल्कि सभी सेक्टर के कर्मचारी)को इस्तीफा देने के लिए बाध्य न किया जाए/बर्खास्त न किया जाए। न ही राष्ट्र-व्यापी लॉकडाउन की आड़ में उनके वेतन में मनमानी कटौती की जाए।

याचिका में कहा गया है कि-

''सेवा क्षेत्र सहित निजी क्षेत्र में कर्मचारियों और श्रमिकों के साथ नियोक्ताओं द्वारा किए जा रहे अमानवीय व्यवहार से उनको बचाने के लिए यह जनहित याचिका दायर की गई है। चूंकि नियोक्ता मनमाने ढंग से बर्खास्त करने के नोटिस जारी करके, एकतरफा वेतन में भारी कटौती करके और कर्मचारियों को अनिश्चितकालीन अवैतनिक अवकाश पर भेजकर श्रमिक वर्ग को उनके वेतन से वंचित कर रहे हैं।''

राजेश इनामदार और राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी सेना ने भी सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष इसी तरह की याचिका दायर की है, जिसमें निजी संस्थाओं द्वारा कर्मचारियों की नौकरी से हटाने, बर्खास्त करने और वेतन में कटौती के खिलाफ राहत देने की मांग की गई है।

पत्रकार यूनियनों ने उन सभी मीडिया संगठनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है जिन्होंने कर्मचारियों को नौकरी से हटा दिया है या लॉकडाउन के मद्देनजर उन्हें कम वेतन लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है। 



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