दिल्ली हाईकोर्ट में सरकारी अस्पतालों के समान प्राइवेट अस्पतालों में कार्यरत नर्सिंग कर्मियों के नामकरण में बदलाव की मांग को लेकर याचिका दायर
दिल्ली हाईकोर्ट में राष्ट्रीय राजधानी के सरकारी अस्पतालों के समान प्राइवेट अस्पतालों में कार्यरत नर्सिंग कर्मियों के नाम में बदलाव की मांग को लेकर एक याचिका दायर की गई।
एडवोकेट जोस अब्राहम के माध्यम से एनजीओ इंडियन प्रोफेशनल नर्सेज एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि नामकरण में बदलाव एक सम्मान है, जो नर्सों को समाज के लिए उनकी सेवाओं के लिए मान्यता में दिया जा रहा है।
याचिका में दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार, इंडियन नर्सिंग काउंसिल और दिल्ली नर्सिंग काउंसिल को इस मामले में प्रतिवादी बनाया गया है।
केंद्र ने नौ सितंबर, 2016 को नर्सिंग कर्मियों के नामकरण को "स्टाफ नर्स" से "नर्सिंग अधिकारी" में बदलने के निर्देश जारी किए थे। यही नाम विभिन्न राज्य सरकारों के तहत अस्पतालों में कार्यरत नर्सों द्वारा प्राप्त किया गया।
सफदरजंग अस्पताल, डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल, डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर अस्पताल, एम्स आदि सहित राष्ट्रीय राजधानी के विभिन्न अस्पतालों पर भरोसा किया गया है, जिन्होंने नामकरण में परिवर्तन को अपनाया।
याचिका में कहा गया,
"प्राइवेट और सरकारी दोनों अस्पतालों में नर्सें सार्वजनिक महत्व की सेवा में लगी हुई हैं, यानी स्वास्थ्य सेवा प्रदान करती हैं और बड़े पैमाने पर समाज के कल्याण के लिए अमूल्य योगदान देती हैं।"
तदनुसार, याचिका में कहा गया कि प्राइवेट अस्पतालों में काम करने वाली अन्य नर्सों को वंचित करते हुए कुछ नर्सों को चुनिंदा सम्मान देने का कार्य भेदभावपूर्ण और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
यह कहते हुए कि स्वास्थ्य प्रणाली की रीढ़ होने के नाते COVID-19 महामारी के समय में समान रूप से योगदान दिया, इस प्रकार दलील दी गई:
"यह कहना अनुचित नहीं होगा कि सरकारी अस्पतालों में कार्यरत नर्सों को उक्त मानद मान्यता प्रदान करना और प्राइवेट अस्पतालों में कार्यरत नर्सों को इस तरह की मान्यता से वंचित रखना पक्षपातपूर्ण और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत प्रतिपादित सिद्धांतों का उल्लंघन होगा।"
शीर्षक: भारतीय पेशेवर नर्स संघ बनाम भारत संघ और अन्य।