मुस्लिम विवाह को विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकरण के लिए मजबूर करने का आरोप: दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार से उस याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा, जिसमें आरोप लगाया गया है कि इस्लामिक कानून के तहत शादी करने वाले व्यक्तियों को विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत अपनी शादी का पंजीकरण कराने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
याचिकाकर्ता एनजीओ- धनक फॉर ह्यूमैनिटी की ओर से पेश हुए अधिवक्ता उत्कर्ष सिंह ने कहा कि इस्लामिक कानून के तहत होने वाली शादियों को 2014 के अनिवार्य पंजीकरण विवाह आदेश के तहत पंजीकृत नहीं किया जा रहा है। परिणामस्वरूप, पक्षकारों को अपनी शादी को विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकरण करना पड़ रहा है।
न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने मामले में दर्ज शिकायत को ध्यान में रखते हुए जीएनसीटीडी के वकील से निर्देश लेने के लिए कहा है।
एडवोकेट शादान फरासत ने कहा कि,
"मैं पूरी तरह से सराहना करता हूं कि ये दो अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं। मुस्लिम विवाहों को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत पंजीकृत होने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। मैं निर्देश मांगूंगा और अदालत को सूचित करूंगा।"
अदालत ने प्रतिवादी को अपना जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है। यदि कोई रिज्वाइंडर हो तो 2 सप्ताह के भीतर दाखिल किया जाएगा।
यह याचिका उत्तर प्रदेश के एक मुस्लिम कपल्स की ओर से दायर की गई, जिन्हें अपनी शादी का विरोध करने वाले परिवारों से अपनी जान को खतरा होने के कारण दिल्ली भागने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
ऐसा कहा जाता है कि जोड़े को शादी करने के लिए पहले बहुत अधिक परेशानी का सामना करना पड़ा और अब उन्हें स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत अपनी शादी को पंजीकृत करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जिसमें उनके अनुसार कई जटिलताएं हैं।
कानून विवाह पर आपत्तियां दर्ज करने के लिए न्यूनतम 30 दिनों की नोटिस अवधि निर्धारित करता है।
मामले की अगली सुनवाई 4 अक्टूबर को होगी।
केस का शीर्षक: धनक फॉर ह्यूमैनिटी बनाम एनसीटी राज्य एंड अन्य ।