वादी अगर मध्यस्थता के लिए रेफर किया जाता है तो कोर्ट फीस की वापसी का हकदार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वादी मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 8 के तहत आवेदन की स्थिति में अदालत की फीस वापसी का हकदार नहीं हो सकता है, क्योंकि पक्षकारों को मध्यस्थता के लिए भेजा जा रहा है।
जस्टिस अमित बंसल ने दोहराया कि सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत वादपत्र खारिज होने की स्थिति में वादी अदालती फीस वापस पाने का हकदार नहीं है, जहां वादी कार्यवाही के कारण का खुलासा नहीं करता है।
अदालत ने कहा,
"उसी सादृश्य पर वादी मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 8 के तहत आवेदन की अनुमति देने और पक्षों को मध्यस्थता के लिए संदर्भित किए जाने की स्थिति में अदालत फीस की वापसी का हकदार नहीं हो सकता। तर्क यह है कि वादी ने तब मुकदमा दायर करने का गलत आह्वान किया जब उसे मध्यस्थता की कार्यवाही को लागू करना चाहिए था।"
न्यायालय ऐसे मामले से निपट रहा था जिसमें प्रतिवादी की ओर से मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 8 के तहत आवेदन दायर किया गया था। उक्त आवेदन को 31 मार्च, 2022 को अनुमति दी गई थी और एकमात्र मध्यस्थ नियुक्त किया गया था।
मुकदमे में फैसला सुनाया जाने वाला एकमात्र मुद्दा यह था कि क्या वादी न्यायालय फीस अधिनियम, 1870 की धारा 16 सपठित सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (सीपीसी) की धारा 89 के अनुसार अदालती फीस वापस पाने का हकदार है।
वादी की ओर से पेश होने वाले वकील ने धारा 89 के संदर्भ में कहा कि वादी ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए मामला मध्यस्थता के लिए भेजा गया है, इसलिए वह अदालत फीस वापस पाने का हकदार है। इस संबंध में आरवी सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड बनाम अजय कुमार दीक्षित में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया गया।
वहीं, प्रतिवादी की ओर से पेश वकील ने उक्त अनुरोध का विरोध किया।
न्यायालय का विचार था कि वर्तमान मामले में मामले को निपटान के लिए सीपीसी की धारा 89 के संदर्भ में संदर्भित नहीं किया गया। इस प्रकार, वादी न्यायालय फीस अधिनियम, 1870 की धारा 16 के संदर्भ में अदालत फीस वापस पाने का हकदार नहीं है।
धारा 89 में प्रावधान है कि यदि न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि पक्षों के बीच समझौता हो सकता है तो न्यायालय मामले को मध्यस्थता या सुलह या मध्यस्थता के लिए या लोक अदालत को संदर्भित कर सकता है।
न्यायालय ने देखा कि यहां मुख्य शब्द "निपटान" है। इस प्रकार, अदालत फीस की वापसी के प्रावधान केवल तभी लागू होते हैं जब मामला "निपटान" के संदर्भ में मध्यस्थता के लिए भेजा जाता है।
कोर्ट ने कहा,
"मौजूदा मामले में प्रतिवादी की ओर से दायर मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 8 के तहत आवेदन की अनुमति दी गई है और मामले को एकमात्र मध्यस्थ को निर्णय के लिए भेजा गया है। मामले को निपटान के लिए सीपीसी की धारा 89 के संदर्भ में संदर्भित नहीं किया गया है। इसलिए, वादी अदालत फीस अधिनियम, 1870 की धारा 16 के तहत अदालत की फीस वापस पाने का हकदार नहीं है।"
कोर्ट ने आगे कहा,
"आरवी सॉल्यूशंस (सुप्रा) में दिए गए फैसले पर वादी के वकील द्वारा दी गई निर्भरता गलत है। उक्त मामले में केवल निर्देश दिया गया है कि अदालत की फीस वापस की जा सकती है, क्योंकि मामला मध्यस्थता के लिए भेजा गया है। वही अदालत ने कहा कि कोई भी मामला जहां आवेदन की धारा 8 (1) की अनुमति है और मामला मध्यस्थता के लिए भेजा गया है, वादी अदालत की फीस वापस पाने का हकदार होगा।
केस टाइटल: ए-वन रीयलटर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड।
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 578
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