जब पक्षकारों को मध्‍यस्‍थता एवं सुलह अधिनियम की धारा 8 के तहत मध्यस्थता के लिए संदर्भित किया जाता है तो वादी कोर्ट फीस की वापसी का हकदार नहीं है: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2022-05-27 04:34 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने माना है कि जब पक्षकारों को मध्‍यस्‍थता एवं सुलह अधिनियम [Arbitration and Conciliation Act] की धारा 8 के तहत मध्यस्थता के लिए संदर्भित किया जाता है तो वादी कोर्ट फीस की वापसी का हकदार नहीं है।

जस्टिस अमित बंसल की एकल पीठ ने माना कि कोर्ट फीस अधिनियम की धारा 16[1] का लाभ वादी को तभी मिलेगा जब पक्षकारों को सीपीसी की धारा 89 के तहत निपटान के लिए मध्यस्थता के लिए भेजा जाता है, न कि मध्‍यस्‍थता एवं सुलह अधिनियम की धारा 8 के तहत।

वादी ने तर्क दिया कि चूंकि मध्‍यस्‍थता एवं सुलह अधिनियम की धारा 8 के तहत प्रतिवादी द्वारा दायर आवेदन की अनुमति है, वह कोर्ट फीस अधिनियम, 1870 की धारा 16 के अनुसार कोर्ट फीस की वापसी का हकदार है।

वादी ने आरवी सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड बनाम अजय कुमार सीएस (सीओएमएम) 745/2017 में कोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया, यह तर्क देने के लिए कि जब मामला मध्यस्थता के लिए भेजा जाता है तो कोर्ट कोर्ट फीस वापस करने के लिए बाध्य है।

कोर्ट ने वादी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि वह कोर्ट फीस की वापसी का हकदार है।

कोर्ट ने माना कि कोर्ट फीस एक्ट की धारा 16 के अनुसार, फीस तभी वापस की जा सकती है जब पक्षकारों को सीपीसी की धारा 89 के तहत निपटान के लिए मध्यस्थता के लिए भेजा जाता है।

अदालत ने माना कि वादी अदालत की फीस वापस करने का हकदार नहीं हो सकता है, जब उसने गलत तरीके से दीवानी मुकदमा दायर किया हो, जबकि उसे वास्तव में मध्यस्थता खंड को लागू करना चाहिए था।

कोर्ट ने माना कि आरवी सॉल्यूशंस (सुप्रा) में कोर्ट के फैसले पर भरोसा गलत है क्योंकि उस मामले में दिया गया निर्देश एक हुक्म नहीं था, बल्कि केवल एक पासिंग निर्देश था।

केस टाइटल: ए-वन रीयलटर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड, CS (COMM) 610 of 2019

दिनांक: 23.05.2022

वादी के लिए वकील: एडवोकेट महिमा आहूजा

प्रतिवादी के लिए वकील: एडवोकेट समदर्शी संजय

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