''जनहित याचिका का मतलब संतुष्टिदायक जिज्ञासा होना नहीं'': झारखंड हाईकोर्ट ने लॉकडाउन में ई-पास की आवश्यकता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज की
एक महत्वपूर्ण अवलोकन में, झारखंड हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह लॉकडाउन के दौरान ई-पास की आवश्यकता को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा किः
''जनहित याचिका का मतलब यह नहीं है कि जो दिलचस्प है जैसे कि संतुष्टिदायक जिज्ञासा या जानकारी से प्यार या मनोरंजन, बल्कि वह है जिसमें समुदाय के एक वर्ग का आर्थिक हित जुड़ा हो या कुछ ऐसा हित हो जिससे उनके कानूनी अधिकार या देनदारियां प्रभावित होती हैं।''
मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि कोरोना के मामलों में तीव्र वृद्धि के कारण, यदि ऐसी स्थिति में झारखंड राज्य द्वारा समय-समय पर समीक्षा करके कुछ प्रतिबंध लगाए गए हैं, तो उनको अनुचित और मनमाना नहीं कहा जा सकता है।
कोर्ट के समक्ष मामला
रिट याचिकाकर्ता एक सामाजिक कार्यकर्ता है,जिसके अनुसार झारखंड राज्य ने आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 18 (2) के तहत राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा उन्हें दिए गए अधिकारों के तहत दिशानिर्देश के रूप में विभिन्न आदेश जारी किए थे।
याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकारी आदेश के तहत, निजी वाहन से किसी भी तरह की आवाजाही करने के लिए एक व्यक्ति को ई-पास, वैध फोटो पहचान पत्र और हवाई/रेल यात्रा से संबंधित मामले में वैध टिकट साथ रखना होगा।
दिशानिर्देश में यह भी उल्लेख किया गया है कि चिकित्सा उद्देश्य से संबंधित आवाजाही के लिए या अंतिम संस्कार से संबंधित आवाजाही के लिए ई-पास की आवश्यकता नहीं होगी। इसके अलावा यह प्रावधान भी किया गया है कि निजी वाहन या टैक्सी द्वारा राज्य में सभी आवाजाही की अनुमति केवल ई-पास से होगी।
निजी वाहन द्वारा सभी अंतर-जिला और अंतर्जिला आवाजाही की अनुमति केवल ई-पास प्रस्तुत करने पर दी जाएगी।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील का तर्क था कि आवाजाही करने के लिए ई-पास जारी करने की ऐसी शर्तों को लागू करना विभिन्न कारणों से मनमाना था जैसेः
-यहां तक कि अपने बुनियादी अस्तित्व के लिए किराना/दूध/सब्जी/फल और आवश्यक दैनिक वस्तुओं की खरीद के लिए भी, यदि कोई व्यक्ति अपने निजी वाहन का विकल्प चुनता है तो उसे पहले ई-पास प्राप्त करने की आवश्यकता होती है;
-यदि कोई किसान या निर्माण श्रमिक अपनी खेती/निर्माण से संबंधित कार्य के लिए जा रहा हो तो उसे अपने नजदीकी इलाके में जाने के लिए भी एक ई-पास की आवश्यकता होगी;
-ऐसे भी मामले हैं जहां परिवार के सभी सदस्य कोविड पॉजिटिव है और उन्हें दूर स्थान पर रहने वाले अपने रिश्तेदारों की मदद से भोजन/दूध/दवाई आदि मंगवानी पड़ती है। ऐसे में इन रिश्तेदारों को इन परिवारों की सहायता करने के लिए अपने निजी वाहन का इस्तेमाल करना पड़ता है;
-यदि राज्य के लोगों को केवल आवश्यक गतिविधियां करने की अनुमति दी गई है और यदि उन्हें इसके लिए भी ई-पास प्राप्त करने के लिए मजबूर किया जा रहा तो यह निश्चित रूप से अन्यायपूर्ण है;
-यदि प्रत्येक गतिविधि के लिए यदि किसी व्यक्ति को सरकार को इसका खुलासा करने के लिए मजबूर किया जाता है तो यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है;
दूसरी ओर राज्य के लिए उपस्थित महाधिवक्ता ने प्रस्तुत किया कि रिट याचिका न्यायिक कार्यवाही का दुरुपयोग करने के अलावा और कुछ नहीं है क्योंकि राज्य सरकार ने ऐसे अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया है जो आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 18 (2) (डी) के तहत प्रदान किया गया है। राज्य द्वारा इस अधिकार का प्रयोग कोरोना के बढ़ते मामलों,कोरोना के कारण बड़े पैमाने पर हो रही मौत,संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने और झारखण्ड राज्य के विभिन्न जिलों के अस्पतालों में बिस्तरों की कमी को ध्यान में रखते हुए किया गया है।
कोर्ट की टिप्पणियां
याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा किः
''राज्य सरकार ने शुरूआत में राज्य में एक सप्ताह के लिए प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया था और उसके बाद स्थिति की समीक्षा करने के बाद इसे समय-समय पर बढ़ा दिया गया। जब सरकार को यह पता चला कि कोरोना के रोगियों की मृत्यु की संख्या तेजी से बढ़ रही है तो अगर ऐसी स्थिति में लोगों की मुक्त आवाजाही पर रोक लगाने के लिए कुछ शर्तें लगाई गई हैं, तो इसे अनुचित और मनमाना नहीं कहा जा सकता है।''
अंत में, कोर्ट ने कहा कि रिट याचिकाकर्ता रिट याचिका को जनहित की प्रकृति में दिखाने में विफल रहा है क्योंकि इस स्तर पर लोगों के हितों की पूर्ति बड़े पैमाने पर उनकी जान बचाकर की जाएगी और यदि ऐसी स्थिति में राज्य सरकार ने ई-पास जारी करने का निर्णय लिया है, उसे अशक्तता से ग्रस्त नहीं कहा जा सकता है।
केस का शीर्षक -राजन कुमार सिंह बनाम झारखंड राज्य,[W.P.(PIL) No.1944 of 2021]
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