'जघन्य अपराध नहीं': पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने आईपीसी धारा 498-ए के तहत दर्ज एफआईआर रद्द करने की अनुमति दी

Update: 2022-07-08 10:22 GMT

Punjab & Haryana High Court

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में पक्षकारों के बीच आपसी सहमति के आधार पर वैवाहिक विवाद में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498-ए और धारा 406 के तहत दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग वाली याचिका की अनुमति दी।

जस्टिस दीपक सिब्बल की पीठ ने कहा कि तय राशि का भुगतान पत्नी को पूरी तरह से कर दिया गया है और पक्षकारों को उक्त समझौते के आधार पर आपसी सहमति से तलाक दे दिया गया है।

वर्तमान याचिका जब इस न्यायालय के समक्ष सुनवाई के लिए आई तो याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता द्वारा पूरी तरह से सहमत राशि का भुगतान शिकायतकर्ता को कर दिया गया है। इसके साथ ही याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच समझौते के आधार पर आपसी सहमति से तलाक दिया गया।

दोनों पक्षों के वकीलों ने उपरोक्त बातों को स्वीकार किया लेकिन शिकायतकर्ता-पत्नी का मामला था कि उसे समझौते की पूरी राशि का भुगतान नहीं किया गया, इसलिए वह समझौता स्वीकार नहीं करती।

अदालत ने देखा कि चूंकि दोनों पक्षों ने स्वीकार किया कि उनके बीच वैवाहिक विवाद को सुलझा लिया गया है और शिकायतकर्ता की ओर से इस तथ्य के संबंध में एक बयान दिया गया है कि अगर एफआईआर रद्द की जाती है तो उसे कोई आपत्ति नहीं है, यह अदालत वर्तमान की निरंतरता पर विचार करती है। मामले में कार्यवाही वांछनीय नहीं है।

अदालत ने यह कहते हुए वर्तमान कार्यवाही को रद्द करने का एक और कारण दिया कि चूंकि याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायतकर्ता द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार वर्ततमान कार्यवाही वैवाहिक विवाद से उत्पन्न हुई है और जघन्य अपराध से संबंधित नहीं है, इसलिए इसे जारी नहीं रखा जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा नरिंदर सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य (2014) 6 एससीसी 466 में निर्धारित कानून के संदर्भ में कहा गया कि अदालत ने याचिका को अनुमति देने और याचिकाकर्ता के लिए उससे उत्पन्न होने वाली सभी कार्यवाही के साथ एफआईआर रद्द करना उचित माना।

उपरोक्त स्वीकृत स्थिति के आलोक में जहां याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच वैवाहिक विवाद को स्वीकार किया जाता है और इस न्यायालय के समक्ष शिकायतकर्ता की ओर से उपस्थित वकील की ओर से बयान दिया गया कि उसके मुवक्किल को एफआईआर रद्द करने से कोई आपत्ति नहीं है, इस न्यायालय की राय है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायतकर्ता द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के अनुसरण में कार्यवाही जारी रखना वांछनीय नहीं है। चूंकि यह वैवाहिक विवाद के तहत दर्ज कराई गई है और जघन्य अपराध से संबंधित नहीं है। इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नरिंदर सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य (2014) 6 एससीसी 466 में निर्धारित कानून में यह न्यायालय याचिका को अनुमति देने के लिए उचित समझता है और परिणामस्वरूप पुलिस थाना धारीवाल, जिला गुरदासपुर में आईपीसी की धारा 498-ए और 406 के तहत दर्ज एफआईआर नंबर 123 दिनांक 22.10.2019 को रद्द करता है।

तदनुसार, वर्तमान याचिका का निपटारा कर दिया गया।

केस टाइटल: कवबीर सिंह बनाम पंजाब राज्य और दूसरा

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