विवादित बकाया की वसूली के लिए आपराधिक कार्यवाही नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत रद्द करने से इनकार किया
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने दोहराया कि आपराधिक कार्यवाही विवादित बकाया की वसूली के लिए नहीं है। इस प्रकार, कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 439 (2) के तहत दायर याचिका खारिज कर दी। उक्त याचिका में साझेदारी विवाद और पैसे की कथित वसूली के संबंध में आरोपी को दी गई अग्रिम जमानत रद्द करने की मांग की गई थी।
यह पुराना कानून है कि हिरासत में पूछताछ के तहत पैसे की वसूली के कारण जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस पंकज जैन की खंडपीठ ने आगे कहा कि जमानत रद्द करने के संबंध में मानदंड अब पुन: एकीकृत नहीं हैं और सुप्रीम कोर्ट द्वारा अच्छी तरह से तय किया गया है।
अदालत ऐसे मामले से निपट रही थी जहां दोनों पक्षों के बीच विवाद खातों के निपटारे से संबंधित है, जिसमें आवेदकों-आरोपियों ने 7,89,000 / - रुपये के खातों को प्रस्तुत किया है और 11 लाख रुपये की राशि लंबित है। परिणामस्वरूप, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 379 और 406 (आईपीसी की धारा 467, 468, 471 और 420 बाद में जोड़ी गई) के तहत एफआईआर दर्ज की गई।
अदालत ने असलम बाबालाल देसाई बनाम महाराष्ट्र राज्य, (1992) 4 एससीसी 272 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा रखा, जहां यह माना गया कि जमानत रद्द करने से आरोपी द्वारा पहले से ही अदालत द्वारा या कानून के बल पर विवेक के प्रयोग पर प्राप्त स्वतंत्रता में हस्तक्षेप होता है। इस प्रकार, जमानत पर रिहा किए गए आरोपी को वापस हिरासत में लेने की शक्ति का प्रयोग सावधानी से किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने महबूब दाऊद शेख बनाम महाराष्ट्र राज्य, (2004) 2 एससीसी 362 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि जमानत देने और जमानत रद्द करने के विचार अलग-अलग स्तरों पर खड़े हैं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून की सर्वोच्चता और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के मापदंडों के भीतर मामला बनाने में सक्षम नहीं है, अदालत ने योग्यता न पाते हुए वर्तमान याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल: अनिल तनेजा बनाम हरियाणा राज्य और अन्य
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