शिकायत दाखिल करते समय यदि वकील की ओर से प्रतिनिधित्व किया जा रहा है तो शिकायतकर्ता की व्यक्तिगत उपस्थिति अनिवार्य नहीं हैः कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना है कि जब आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 190 की उपधारा एक के खंड (ए) के तहत, जैसी कल्पना की कई, लिखित शिकायत दायर की जाती है और जब शिकायतकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता द्वारा किया जाता है तो मजिस्ट्रेट की कोर्ट शिकायत दर्ज करने के समय शिकायतकर्ता की उपस्थिति पर जोर नहीं दे सकती है।
यदि शिकायत में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध का आरोप लगाया गया है तो मजिस्ट्रेट के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह हर मामले में शिकायतकर्ता का परिक्षण करने के लिए व्यक्तिगत उपस्थिति का आग्रह करे। यदि शिकायत शिकायतकर्ता या उसके अधिकृत प्रतिनिधि के हलफनामे के साथ होती है, शपथ-पत्र और अन्य दस्तावेजों, यदि कोई हो, के अध्ययन के बाद, यदि मजिस्ट्रेट संतुष्ट है तो वह समन जारी करने का आदेश दे सकता है।
चीफ जस्टिस अभय ओका और जस्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की खंडपीठ ने कहा:
"हमने सीआरपीसी में कोई प्रावधान नहीं देखा है जिसके तहत विद्वान मजिस्ट्रेट की कोर्ट में, धारा 190 के उप-धारा (1) के खंड (ए) के तहत, जैसी कल्पना की गई है, लिखित शिकायत दर्ज करने की समय, शिकायतकर्ता की उपस्थिति अनिवार्य की गई हो, जबकि एक वकील, जो कि शिकायत के साथ वकालत दायर करता है, उसका प्रतिनिधित्व कर रहा हो। जहां तक सीआरपीसी की धारा 200 के अनुसार शपथ पर शिकायतकर्ता की जांच की आवश्यकता है, धारा 200 के खंड (ए) और (बी) और एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराधों की शिकायत को छोड़कर, शिकायतकर्ता की धारा 200 के अनुसार शपथ पर जांच अनिवार्य है।
जहां तक एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध का आरोप लगाने वाली शिकायत का संबंध है, यह एक विशेष प्रक्रिया द्वारा शासित होती है जैसा कि एनआई एक्ट और विशेष रूप से, धारा 145 के तहत होता है, जिसमें धारा 145 सीआरपीसी के प्रावधानों को ओवरराइड करती है, यह प्रदान करते हुए कि शिकायतकर्ता के साक्ष्य उनके द्वारा हलफनामे पर दिए जा सकते हैं और हो सकता है, सभी अपवादों के अधीन किसी भी जांच, परीक्षण या सीआरपीसी के तहत अन्य कार्यवाही में साक्ष्य पढ़े जाएं "।
कोर्ट ने जोड़ा:
"जब सीआरपीसी की धारा 190 की उप-धारा (1) के खंड (ए) के अनुसार एक लिखित शिकायत दायर की जाती है और जब शिकायतकर्ता का एक वकील द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाता है, तो मजिस्ट्रेट के न्यायालय शिकायत दर्ज करने के समय, शिकायतकर्ता की व्यक्तिगत उपस्थिति पर जोर नहीं दे सकते हैं।
एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध का आरोप लगाने के मामले में, हर मामले में मजिस्ट्रेट के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह शिकायतकर्ता की सीआरपीसी की धारा 200 के अनुसार शपथ पर जांच के लिए व्यक्तिगत उपस्थिति के लिए आग्रह करे, यदि ऐसी शिकायत शिकायतकर्ता या उसके अधिकृत प्रतिनिधि के हलफनामे के साथ होती है। हलफनामे और दस्तावेजों के अध्ययन के बाद, मजिस्ट्रेट के संतुष्ट होने पर समन जारी करने का आदेश दे सकता है।
हाईकोर्ट एक सुओ मोटो याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें जिला/ट्रायल कोर्टो को पेश आई विभिन्न कानूनी और तकनीकी दिक्कतों को उठाया गया था।
खंडपीठ ने यह भी कहा कि पारिवारिक न्यायालय आपसी सहमति से तलाक लेने के मामलों के लिए दायर करने के समय भी पार्टियों की व्यक्तिगत उपस्थिति पर जोर नहीं दे सकता है।
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