'व्यक्तिगत शिकायत को जनहित याचिकाओं के माध्यम से नहीं सुलझाया जा सकता': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गैंगस्टर विकास दुबे की आपराधिक गतिविधियों पर एसआईटी रिपोर्ट पर कार्रवाई की मांग करने वाले याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गैंगस्टर विकास दुबे की कथित आपराधिक गतिविधियों में सहायता करने वाले 90 सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश करने वाली एसआईटी रिपोर्ट पर कार्रवाई करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश देने की मांग वाली एक जनहित याचिका सोमवार को जुर्माने के साथ खारिज कर दी।
मुख्य न्यायाधीश संजय यादव और न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी की खंडपीठ ने कहा कि याचिका याचिकाकर्ता का एक प्रयास है कि वह जनहित याचिका के माध्यम से अपनी व्यक्तिगत शिकायत का निवारण कर सके।
पीठ ने कहा कि,
"जाहिर तौर पर याचिका को जनहित याचिका के रूप में नामित किया गया है, हालांकि पूरी दलीलों को देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका के माध्यम से अपनी व्यक्तिगत शिकायत का निवारण करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है।"
कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 25,000 रूपये का जुर्माना लगाते हुए कहा कि व्यक्तिगत शिकायत को उचित फोरम के समक्ष कानून के अनुसार सुलझाया जाना है न कि एक जनहित को दर्शाने वाले मुकदमे के माध्यम से।
कोर्ट ने आदेश दिया कि,
"जिसके मद्देनजर हम मामले में किसी भी तरह की आज्ञा का कारण नहीं बनना चाहते हैं। चूंकि वर्तमान याचिका एक वास्तविक जनहित याचिका नहीं है, इसलिए इसे 25,000 रुपये के जुर्माने के साथ खारिज किया जाता है।"
पुलिस ने कहा कि दुबे 10 जुलाई, 2020 की सुबह एक मुठभेड़ में मारा गया था, जब उसे उज्जैन से कानपुर ले जा रहा एक पुलिस वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उसने भौटी इलाके में मौके से भागने की कोशिश की, पुलिस ने कहा था। दुबे के एनकाउंटर से पहले उनके पांच कथित सहयोगी अलग-अलग एनकाउंटर में मारे गए थे.
यूपी सरकार ने इसके बाद गैंगस्टर विकास दुबे की आपराधिक गतिविधियों और अधिकारियों द्वारा कानून के अनुसार उसे लाने के लिए उठाए गए कदमों की जांच के लिए अतिरिक्त मुख्य सचिव संजय भूसरेड्डी की अगुवाई में एक एसआईटी का गठन किया।
एसआईटी ने 90 सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की जिन्होंने दुबे को उसकी कथित अवैध गतिविधियों में सहायता की थी।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बी एस चौहान की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय जांच आयोग ने इस साल अप्रैल में उत्तर प्रदेश पुलिस को क्लीन चिट दे दी।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अगस्त में पक्षपात के आरोपों पर जांच आयोग को खत्म करने की याचिका खारिज कर दी थी।
केस का शीर्षक: सौरभ भदौरिया बनाम यूपी और अन्य।