ओएमआर शीट के साथ छेड़छाड़ के आरोपी व्यक्ति पर मूल्यवान सुरक्षा की जालसाजी के लिए आईपीसी की धारा 467 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है: एमपी हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि ओएमआर शीट के साथ जालसाजी भी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 467 के तहत दंडनीय अपराध को आकर्षित करेगी, क्योंकि ओएमआर शीट आईपीसी की धारा 30 के तहत परिभाषित 'मूल्यवान सुरक्षा' के अर्थ में आती है।
चीफ जस्टिस रवि मलिमथ और जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि 'मूल्यवान सुरक्षा' शब्द का कड़ाई से अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए और बदलते समय के साथ यह शब्द तदनुसार विकसित होगा।
खंडपीठ ने कहा,
यह नोटिस करना प्रासंगिक है कि भारतीय दंड संहिता को वर्ष 1860 में बनाया गया। उस समय ओएमआर शीट या अन्यथा कहीं भी मौजूद नहीं है। इसलिए आईपीसी की धारा 467 के योग और सार पर यह जानने के लिए विचार किया जाना चाहिए कि क्या यह मूल्यवान दस्तावेज है या नहीं ... हालांकि, जिस पर विचार किया जाना है वह प्रतिबंधात्मक दस्तावेज नहीं है, जो धारा 467 के तहत 'मूल्यवान सुरक्षा' शब्द का अर्थ कोड कहा गया। समय के साथ-साथ कई ऐसे दस्तावेज हैं जिन्हें "मूल्यवान प्रतिभूतियां" माना जाएगा। इसलिए आईपीसी की धारा 467 के तहत प्रतिबंध के संदर्भ में पूरी तरह से मूल्यवान सुरक्षा को प्रतिबंधित करने के लिए हमारे विचार में उचित नहीं हो सकता।
मामले के तथ्य यह थे कि याचिकाकर्ता पर शिक्षक के पद के लिए राज्य सरकार द्वारा आयोजित परीक्षा में उसके अंक बढ़ाने के लिए कुछ सरकारी अधिकारियों और अन्य लोगों के साथ मिलीभगत करने का आरोप लगाया गया। यह आरोप लगाया गया कि वह अपनी ओएमआर शीट सहित दस्तावेजों से छेड़छाड़ में शामिल है। नतीजतन, उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 120-बी, 467, 468, 471, 201 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1) (डी) और धारा 13 (1) (2) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज की गई। आईपीसी की धारा 120-बी, आईटी अधिनियम की धारा 65 और 66, 2000 आईपीसी की 120-बी और म.प्र. मान्यता अभ्यास परीक्षा अधिनियम, 1937 की धारा 3 घा (1) (2) के साथ पढ़ा जाए।
इसके बाद ट्रायल कोर्ट ने आरोप तय किए। हालांकि उसने इसे चुनौती दी, लेकिन निचली अदालत ने उसकी दलीलों को खारिज कर दिया। व्यथित होकर उसने आईपीसी की धारा 467 के तहत उसके खिलाफ आरोप तय करने को चुनौती देने के लिए अदालत के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 467 के तहत आरोप नहीं बनता है। उसने तर्क दिया कि अगर अभियोजन पक्ष के मामले को स्वीकार कर भी लिया जाए कि ओएमआर शीट से छेड़छाड़ की गई तो उक्त दस्तावेज 'मूल्यवान सुरक्षा' की परिभाषा के तहत नहीं आएगा, जैसा कि आईपीसी की धारा 467 में बताया गया। इसलिए यह दलील दी गई कि याचिका की अनुमति दी जाए और उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 467 के तहत दंडनीय अपराध के लिए तय किए गए आरोप रद्द कर दिया जाए।
पक्षकारों की दलीलों और रिकॉर्ड में मौजूद दस्तावेजों की जांच करते हुए कोर्ट ने कहा कि याचिका में दम नहीं है। यह मानते हुए कि ओएमआर शीट आईपीसी की धारा 30 के तहत परिभाषित 'मूल्यवान सुरक्षा' के दायरे में आती है, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि निचली अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 467 के तहत सही आरोप लगाया।
जहां तक गुण-दोष का संबंध है, हमारा सुविचारित मत है कि आईपीसी की धारा 467 याचिकाकर्ता के मामले में पूरी तरह से लागू होती है। हमें नहीं लगता कि उक्त धारा के तहत उसे गलत तरीके से फंसाया गया है। हमारा विचार है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ अभियोजन पक्ष के खिलाफ आगे बढ़ने के लिए एक मजबूत प्रथम दृष्टया मामला बनता है।
उक्त टिप्पणी के साथ न्यायालय ने मामले में हस्तक्षेप नहीं करने का निर्णय लिया और तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: प्रीति गौतम बनाम सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन
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