भारत में लोग सौहार्द में रहते हैं, लेकिन कुछ शरारती लोग धार्मिक भावनाओं को भड़काकर तनाव पैदा करने की कोशिश करते हैंः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2020-10-27 05:00 GMT

शुक्रवार (16 अक्टूबर) को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि,''भारत एक ऐसा देश है, जिसमें विभिन्न धर्मों, कुल, जातियों और पंथों के विभिन्न लोग बसे हुए हैं। सभी लोग सौहार्द में रहते हैं। ज्यादातर, लोग एक-दूसरे की धार्मिक भावनाओं के प्रति सम्मान रखते हैं लेकिन कुछ अवसरों पर कुछ शरारती लोग दूसरों की धार्मिक भावनाओं को आहत करके तनाव पैदा करने की कोशिश करते हैं।''

न्यायमूर्ति एचएस मदान की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता/अभियुक्त (लखवीर सिंह) की तरफ से दायर एक पूर्व-गिरफ्तारी जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है। याचिकाकाकर्ता एफआईआर नंबर 0160, दिनांक 25 सितम्बर 2020 में अभियुक्त है। यह एफआईआर आईपीसी की धारा 341, 323,149,109 व 295 के तहत पुलिस स्टेशन सिटी -1, जिला मनसा में दर्ज की गई थी।

न्यायालय के समक्ष मामला

शिकायतकर्ता उग्र सिंह ने अपने बयान में पुलिस को बताया था कि वह 24 सितम्बर 2020 को सुबह लगभग 6.15 बजे अदायगी के लिए गुरुद्वारा साहिब में जा रहा था। इसी दौरान याचिकाकर्ता /अभियुक्त (लखवीर सिंह) ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर उसके साथ मारपीट की।

याचिकाकर्ता/अभियुक्त (लखवीर सिंह) पर आरोप लगाया गया है कि उसने सह-अभियुक्त के साथ मिलकर शिकायतकर्ता की पगड़ी को उतार दिया था और फिर उसे लात मार दी थी, जो उसके लंबे बालों और उसके द्वारा पहने गए सिख धर्म के अन्य प्रतीकों(ककार) का अनादर था। इसलिए उसके साथ गंभीरता और सख्ती से निपटा जाना चाहिए।

कोर्ट का आदेश

कोर्ट ने याचिकाकर्ता/अभियुक्त (लखवीर सिंह) को पूर्व-गिरफ्तारी जमानत का लाभ देने से इनकार करते हुए कहा कि,

''अगर इस तरह की घटनाओं को हल्के ढंग से देखा जाएगा तो इनके परिणामस्वरूप समाज में सांप्रदायिक और धार्मिक तनाव पैदा हो सकता है और समाज की शांति प्रभावित हो सकती है।''

इस प्रकार, न्यायालय ने पाया कि मामले के तथ्य और परिस्थितियां याचिकाकर्ता/ अभियुक्त को पूर्व-गिरफ्तारी जमानत की राहत देने की अनुमति नहीं दे रहे हैं।

न्यायालय का विचार था कि पूर्ण और प्रभावी जांच के लिए उसको हिरासत में लेकर पूछताछ करना आवश्यक है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि घटना की योजना कैसे बनाई गई और निष्पादित की गई। इस योजना में शामिल अन्य व्यक्ति कौन थे और किस-किस ने घटना के लिए अप्रत्यक्ष मदद प्रदान की थी।

कोर्ट ने आगे कहा,

''यदि याचिकाकर्ता /अभियुक्त को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की अनुमति जांच एजेंसी को नहीं दी जाती है तो यह जांच में कई खामियों का कारण बन जाएगा,जो जांच को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा,जो उचित नहीं होगा।''

इस प्रकार, तत्काल याचिका में कोई मैरिट नहीं है,इसलिए इसे खारिज कर दिया गया।

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