जहां मां को नाबालिग की एक्सक्लूसिव कस्टडी सौंपी जा चुकी है, वहां पासपोर्ट अधिकारी पिता की सहमति पर जोर नहीं दे सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि फैमिली कोर्ट जब एक बार बच्चे की एक्सक्लुसिव कस्टडी मां को सौंप चुका हो तो रीजनल पासपोर्ट ऑफिसर द्वारा पासपोर्ट जारी करने के लिए बच्चे के पिता की मौजूदगी पर या उसकी सहमति पर जोर देना उचित नहीं है।
जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित की सिंगल जज बेंच ने एक महिला की याचिका को अनुमति देते हुए उक्त टिप्पणी की।
याचिका में मांग की गई थी कि पासपोर्ट प्राधिकरण को महिला के नाबालिग बच्चे का पासपोर्ट जारी करने के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया जाए, जिसकी एक्सक्लूसिव कस्टडी फैमिली कोर्ट महिला को दे चुका है।
बेंच ने कहा,
"रीजनल पासपोर्ट ऑफिसर को वार्ड के पिता, यानि याचिकाकर्ता के पूर्व पति की मौजूदगी या सहमति पर जोर दिया बिना पासपोर्ट के लिए विषय आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया जाता है।"
सरकार ने यह कहते हुए याचिका का विरोध किया था कि पासपोर्ट का अनुदान पासपोर्ट एक्ट, 1967 और उसके तहत जारी नियमावली द्वारा विनियमित होता है, जिसे वैधानिक बल प्राप्त है। यह तर्क दिया गया था कि पासपोर्ट प्रदान करने के लिए अलग हो चुके पति की सहमति पूर्व शर्त के रूप में निर्धारित है।
पीठ ने रिकॉर्ड का अध्ययन करने के बाद कहा,
"....पासपोर्ट केवल एक यात्रा दस्तावेज है जो अनुदानकर्ता को अपने देश के पोर्ट को पास करने में सक्षम बनाता है और इसलिए ऐसा नहीं है कि पासपोर्ट उसे वीजा के बिना विदेश यात्रा करने में सक्षम बनाता है..."
बेंच ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने मामले में तलाक का फैसला भी दिया है, जिसके तहत याचिकाकर्ता के पूर्व पति यानी वार्ड के पिता को सीमित मुलाकात का अधिकार दिया गया है।
कोर्ट ने कहा,
"केवल पासपोर्ट प्रदान करने से मुलाकात के अधिकारों में कटौती नहीं होगी। इस प्रकार, प्रतिवादियों की ओर से मौजूदा विद्वान सीनियर पैनल काउंसल की आशंका कि अगर चुनिंदा देशों में वीजा रहित यात्रा संभव होगी तो मुलाकात के अधिकार में कटौती होगी, इसे फैमिली कोर्ट की पूर्व अनुमति निर्धारित करके कम किया जा सकता है।"
इस प्रकार कोर्ट ने याचिका की अनुमति दी।
केस टाइटल: पौलामी बसु बनाम भारत सरकार
केस नंबर: WRIT PETITION NO.14716 OF 2022
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 349