सीपीसी का आदेश XVA | अदालत के निर्देश पर किराए के भुगतान में महज चूक करना ही दोषी किरायेदार के बचाव को निरस्त करने को सही नहीं ठहराता: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2022-05-17 06:09 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश XVA(1) के तहत कोर्ट द्वारा निर्देशित किराये के भुगतान में महज चूक, वास्तव में, डिफ़ॉल्ट किरायेदार के बचाव को दरकिनार करने वाला आदेश पारित करने को सही नहीं ठहरा सकती है।

न्यायमूर्ति सी हरि शंकर, ट्रायल कोर्ट द्वारा दीवानी वाद में पारित 07 दिसंबर, 2019 के एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार कर रहे थे, जिसमें याचिकाकर्ता प्रतिवादी था और प्रतिवादी वादी था।

आक्षेपित आदेश में याचिकाकर्ता द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश VII नियम 11 और धारा 151 तथा दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 340 के तहत प्रतिवादी के रूप में प्रस्तुत तीन आवेदनों का न्यायनिर्णयन किया गया। इसके अतिरिक्त, सीपीसी के आदेश XV-A(1) के प्रावधान के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए, आक्षेपित आदेश ने याचिकाकर्ता के बचाव को दरकिनार कर दिया।

याचिकाकर्ता ने आक्षेपित आदेश में निहित सभी चार निर्णयों को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी।

प्रतिवादी द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ वाद दायर किया गया था, जिसमें प्रतिवादी के परिसर से याचिकाकर्ता को बेदखल करने की मांग की गई थी। मुकदमे में प्रतिवादी का मामला यह था कि याचिकाकर्ता 22 फरवरी, 2017 के लीज डीड के तहत प्रतिवादी का किरायेदार था, जिसके बाद 04 जनवरी, 2018 को एक और अवधि के लिए रेंट एग्रीमेंट निष्पादित किया गया था। बढ़ाई गयी अवधि की समाप्ति के बावजूद याचिकाकर्ता द्वारा परिसर खाली करने में विफल रहने पर, प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता के खिलाफ कब्जा, स्थायी निषेधाज्ञा और हर्जाने की मांग करते हुए दीवानी वाद दायर किया।

इसके बाद याचिकाकर्ता ने सीपीसी के आदेश VII, नियम 11 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें कहा गया था कि प्रतिवादी ने 18 नवंबर, 2018 को निष्पादित लीज डीड को छुपाया था और यदि लीज डीड को ध्यान में रखा गया तो वाद खारिज होने योग्य होगा।

ट्रायल कोर्ट ने माना था कि आदेश VII नियम 11 के तहत एक आवेदन पर केवल वादपत्र में निहित कथनों के आधार पर निर्णय लिया जा सकता है, और आदेश VII, नियम 11 के तहत किसी आवेदन पर निर्णय देते समय लिखित बयान या दस्तावेजों में निहित अभिकथन, जिन्हें प्रतिवादी ने रिकॉर्ड पर रखने की मांग की थी, को नहीं लिया जा सकता था।

हाईकोर्ट ने 'माधो सिंह चौहान बनाम स्मृति' नामक मामले में हाल के एक फैसले में अपने निष्कर्षों को दोहराया जिसमें यह कहा गया था कि आदेश XVA (1) के तहत याचिकाकर्ताओं के बचाव को निरसत करने का आदेश वैधानिक रूप से आदेश XVA (2) के अधीन है।

कोर्ट ने कहा,

"एक साथ पढ़ें, ऑर्डर XVA(1) के तहत कोर्ट द्वारा निर्देशित किराए के भुगतान में केवल चूक, वास्तव में, डिफॉल्ट करने वाले किरायेदार के बचाव को निरस्त करने वाले आदेश को पारित करने को सही नहीं ठहरा सकती है।"

इसने आगे कहा कि कोर्ट आदेश XVA (2) के तहत बचाव को समाप्त करने वाले आदेश को पारित करने से पहले, चूक करने वाले किरायेदार को एक नोटिस तामील करने, यह कारण बताने के लिए कि बचाव को क्यों नहीं हटाया जाना चाहिए और, उस संबंध में किरायेदार द्वारा दिखाए गए कारण, यदि कोई हो, पर विचार करने के लिए वैधानिक रूप से बाध्य है ।

कोर्ट ने कहा,

"यह एक ऐसा एक्सरसाइज है, जिसे संवैधानिक रूप से सार्वजनिक हित में और प्राकृतिक न्याय एवं निष्पक्षता के सिद्धांतों के अनुपालन के हितों में शामिल किया गया है, और इसे अनिवार्य एवं गैर-परक्राम्य (नन-नेगोशिएबल) माना जाना चाहिए।"

कोर्ट ने कहा कि आदेश XVA (2) के प्रावधानों का पालन न करने के लिए, आदेश XVA (2) में परिकल्पित अनुशासन का पालन किए बिना याचिकाकर्ताओं के बचाव को प्रभावित करने वाले आदेश को कायम नहीं रखा जा सकता है। तदनुसार, कोर्ट द्वारा आक्षेपित आदेश को निरस्त कर दिया गया।

उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए, याचिकाकर्ता के बचाव को निरस्त करने के लिए आदेश XVA के तहत दायर प्रतिवादी के आवेदन को कानून के अनुसार आगे की कार्यवाही के लिए ट्रायल कोर्ट को वापस भेज दिया गया।

कोर्ट ने कहा,

"याचिका को तदनुसार आंशिक रूप से उपरोक्त शर्तों में अनुमति दी जाती है और कोई जुर्माना नहीं लगाया जा रहा है।"

केस शीर्षक: राशि मिश्रा बनाम बी कल्याण रमण

साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 452

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