आदेश XII नियम 6 सीपीसी | स्वीकारोक्ति पर निर्णय के लिए आवेदन का निस्तारण संक्षिप्त तरीके से नहीं किया जा सकता, आदेश में तर्क जरूर होना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2022-07-15 14:42 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा, "आदेश XII नियम 6 के तहत एक आवेदन को इस प्रकार संक्षिप्त तरीके से निस्तारित नहीं जा सकता। आदेश में कुछ तर्क होना चाहिए, जो आवेदन में आधार को पूरा करता हो।"

सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XII नियम 6 में कहा गया है कि जहां तथ्य की स्वीकारोक्ति या तो मौखिक रूप से या लिखित रूप में की गई है, न्यायालय वाद के किसी भी चरण में, या तो किसी भी पक्ष के आवेदन पर या अपने स्वयं के प्रस्ताव और पार्टियों के बीच किसी अन्य प्रश्न के निर्धारण की प्रतीक्षा किए बिना, इस तरह के स्वीकारोक्‍ति के संबंध में ऐसा आदेश दें या ऐसा निर्णय दें जो वह उचित समझे।

प्रावधान में आगे कहा गया है कि जब भी इस तरह का निर्णय सुनाया जाता है, तो निर्णय के अनुसार एक डिक्री तैयार की जाएगी और डिक्री पर वह तारीख होगी जिस पर निर्णय सुनाया गया था।

जस्टिस सी हरि शंकर, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (सीपीसी) के आदेश XII नियम 6 के तहत याचिकाकर्ताओं के एक आवेदन पर एक दीवानी मुकदमे में ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित 23 मार्च 2022 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार कर रहे थे।

याचिकाकर्ताओं ने सुरेंद्र कौर के पूर्व-मृत पुत्र नरेंद्र सिंह की बेटी और पुत्र होने का दावा किया, जिसकी मृत्यु 3 नवंबर 2012 को हुई थी, और इसलिए, उसके प्रथम श्रेणी के कानूनी उत्तराधिकारी होने का दावा किया।

12 नवंबर 2014 को सुरेंद्र कौर के बारे में कहा गया कि उनकी निर्वसीयत मृत्यु हो गई, याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादियों को उनके कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में छोड़ दिया गया। वादी ने दावा किया कि सुरेंद्र कौर के निधन के परिणामस्वरूप याचिकाकर्ता और प्रतिवादी सूट संपत्ति के संयुक्त मालिक बन गए।

वादी ने आगे आरोप लगाया कि प्रतिवादी एक ने सुरेंद्र कौर की सभी संपत्तियों पर वस्तुतः नियंत्रण कर लिया था और याचिकाकर्ताओं को उनके शेयरों से वंचित करने की मांग कर रहा था। इन और अन्य तथ्यों के आधार पर, वाद ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में एक घोषणा की मांग की कि वे कब्जे और स्थायी निषेधाज्ञा के अलावा, सूट संपत्ति के साथ-साथ सूट संपत्ति के विभाजन के संयुक्त मालिक थे।

मुकदमे के लंबित रहने के दौरान, याचिकाकर्ताओं ने सीपीसी के आदेश XII नियम 6 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें प्रतिवादी द्वारा किए गए कतिपय अभिकथनों को आदेश XII नियम 6 के तहत याचिकाकर्ता को उसके आधार पर डिक्री का हकदार मानते हुए स्वीकारोक्‍ति के रूप में वर्णित किया गया था।

उसके आधार पर सीपीसी के आदेश XII नियम 6 के तहत आवेदन 23 मार्च 2022 के आक्षेपित आदेश द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने पाया कि आक्षेपित आदेश अकारक प्रकृति का था और निचली अदालत ने केवल इस आधार पर आवेदन को खारिज कर दिया था कि प्रतिवादियों की ओर से कोई स्पष्ट स्वीकारोक्‍ति नहीं थी।

अदालत ने कहा,

"आदेश XII नियम 6 के तहत एक आवेदन को इस तरह के संक्षिप्त तरीके से निपटाया नहीं जा सकता है। आदेश में कुछ तर्क होना चाहिए, जो आवेदन में आधार को पूरा करता है।"

कोर्ट ने आगे कहा कि ट्रायल कोर्ट की ओर से आदेश में यह निर्धारित करना अनिवार्य था कि याचिकाकर्ता जिन दावों को स्वीकार करते हैं, वे ऐसा क्यों नहीं थे।

जज ने आदेश में कहा,

"मैं इसलिए 23 मार्च 2022 के आक्षेपित आदेश को रद्द करना उचित समझता हूं और याचिकाकर्ताओं द्वारा आदेश XII नियम 6 के तहत दायर आवेदन को नए सिरे से विचार के लिए और योग्यता के आधार पर निर्णय के लिए विद्वान एडीजे को भेजता हूं।"

तद्नुसार याचिका को स्वीकार किया गया।

केस टाइटल: नेहा सैनी और अन्य बनाम रघुबीर सिंह और अन्य।

साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 654

आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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