(ऑनलाइन परीक्षा) 'तकनीकी खामियों से इनकार नहीं जा सकता ', गुजरात हाईकोर्ट ने 'फेल' हुए छात्र को अगले चरण में परीक्षा देने की अनुमति दी

Update: 2020-09-20 14:01 GMT

Gujarat High Court

गुजरात हाईकोर्ट ने शुक्रवार (18 सितंबर) को एक 'फेल हुए छात्र' (विश्वविद्यालय द्वारा घोषित) को परीक्षा के अगले चरण (23 सितंबर को होने वाली परीक्षा) में बैठने की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने माना कि ऑनलाइन परीक्षा के दौरान कई बार तकनीकी खामियों का सामना करना पड़ जाता है।

न्यायमूर्ति संगीता के विष्णु की एकल पीठ ने आगे कहा कि ''जब तकनीक के साथ काम किया जा रहा है, तो तकनीकी गड़बड़ियों या खामियों से इनकार नहीं किया जा सकता है और इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए।''

क्या था मामला

सूरत के एक इंजीनियरिंग छात्र हर्ष गांधी ने गुजरात टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (जीटीयू) के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, क्योंकि विश्वविद्यालय ने उसे छह अगस्त को आयोजित एक परीक्षा(विषय - फाउंडेशन इंजीनियरिंग के लिए) में फेल कर दिया था।

छात्र ने कहा था कि ऑनलाइन परीक्षा के दौरान वह तकनीकी गड़बड़ी के कारण सभी प्रश्नों का का उत्तर नहीं दे सका था।

छात्र ने परीक्षा के अगले चरण में उपस्थित होने और उसे परीक्षा देने का दूसरा मौका देने के लिए हाईकोर्ट से हस्तक्षेप करने की मांग की थी।

8 सितम्बर 2020 को न्यायालय ने इस मामले में 14 सितम्बर 2020 के लिए नोटिस जारी किया था। साथ ही जीटीयू को निर्देश दिया था कि वह याचिकाकर्ता को प्री-चेक ट्रायल टेस्ट (15/16 सितंबर को आयोजित होने वाले) में उपस्थित होने की अनुमति प्रदान कर दें।

प्रतिवादी नंबर 1 को भी अपना जवाब दाखिल करने के लिए निर्देशित किया गया था। इसप्रकार, प्रतिवादी नंबर 1 ने अपना जवाब दायर किया और याचिकाकर्ता ने प्रत्युत्तर दायर किया था।

तर्क या दलीलें

दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी दलीलें पेश की। एक पक्ष ने कहा कि उनको तकनीकी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था,जबकि दूसरे पक्ष ने कहा कि सिस्टम एकदम सही था और उसमें कोई कमी नहीं थी।

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उसने समय पर लॉग इन किया था,परंतु उसे कुछ तकनीकी गड़बड़ी का सामना करना पड़ा। इसप्रकार , वह फाउंडेशन इंजीनियरिंग के अपने पेपर के सारे सवालों के जवाब नहीं दे पाया।

याचिकाकर्ता द्वारा यह भी प्रस्तुत किया गया था कि जब 15 सितम्बर 2020 को प्री-चेक ट्रायल टेस्ट किया गया था, तो याचिकाकर्ता के साथ-साथ अन्य छात्रों को भी तकनीकी गड़बड़ी का अनुभव हुआ था।

इसलिए, विश्वविद्यालय ने 15 सितम्बर 2020 पर, एक ट्वीट करके छात्रों को सूचित किया था कि वे कल यानी 16 सितम्बर 2020 को 11ः00 बजे से 11ः30 बजे के बीच फिर से उपस्थित हो सकते हैं। इसके बाद, याचिकाकर्ता 16 सितम्बर 2020 को फिर से प्री-चेक ट्रायल टेस्ट देने गया था।

यह भी दलील दी गई कि प्रतिवादी नंबर 1 - विश्वविद्यालय द्वारा दायर जवाबी हलफनामे में कहा गया है कि किसी भी तकनीकी खराबी की कम से कम संभावना है। परंतु इस हलफनामे में यह नहीं कहा गया है कि सिस्टम में कोई खराबी नहीं थी।

यह भी प्रस्तुत किया गया था कि पहली बार, यानी 17 अगस्त 2020 को, याचिकाकर्ता को विधिवत सूचित किया गया था कि वह परीक्षा देने के योग्य नहीं है, हालांकि विश्वविद्यालय ने एक हलफनामा दायर करके अपने रुख को सुधारने की कोशिश की।

अब, विश्वविद्यालय का रुख यह है कि याचिकाकर्ता के पास सुधारात्मक परीक्षा देने का विकल्प उपलब्ध है, क्योंकि याचिकाकर्ता एक विषय में फेल हो गया है।

यह भी तर्क दिया गया था कि इससे याचिकाकर्ता का भविष्य बुरी तरीके से प्रभावित होगा, क्योंकि याचिकाकर्ता के पास एक ही विषय के लिए दो मार्क शीट आ जाएंगी,जबकि इसमें उसकी कोई गलती नहीं थी। यह भी कहा गया कि हलफनामे की सामग्री कुछ भी नहीं है, बल्कि याचिकाकर्ता के मामले से निपटाने के लिए बाद में सोचा गया एक विचार है।

यह भी प्रस्तुत किया गया था कि पंजाब राज्य बनाम बंदीप सिंह व अन्य (2016) 1 एससीसी 724,के मामले में शीर्ष अदालत द्वारा तय की गई कानून की स्थिति के अनुसार विश्वविद्यालय की कार्रवाई अस्वीकार्य है।

तर्क दिया गया था कि शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और विश्वविद्यालय द्वारा इस तरह से इस अधिकार से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है।

मोहिनी जैन बनाम कर्नाटक राज्य (1992) 3 एससीसी 666 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय का भी हवाला दिया गया और दलील दी कि ''जीवन का अधिकार'' उन सभी अधिकारों के लिए अनिवार्य अभिव्यक्ति है, जिन्हें न्यायालय को लागू करना चाहिए क्योंकि वे जीवन के गरिमापूर्ण आनंद के लिए बुनियादी अधिकार हैं।

यह भी कहा गया कि यह पूरी तरह से आचरण का विस्तार करता है जिसे व्यक्ति आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र है। शिक्षा का अधिकार सीधे जीवन के अधिकार से जुड़ा है। अनुच्छेद 21 के तहत मिले जीवन के अधिकार और किसी व्यक्ति की गरिमा को तब तक सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है जब तक कि इनके साथ शिक्षा का अधिकार न मिलें।

राज्य सरकार अपने नागरिकों को सभी स्तरों पर शैक्षणिक सुविधाएं प्रदान करने का प्रयास करने के लिए बाध्य है। इसके अलावा, पोपटराव व्यंकटराव पाटिल बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र एंड अदर्स,2020 एससीसी आॅनलाइन एससी 291 के मामले में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए फैसले का भी हवाला दिया गया।

इस प्रकार, यह दलील दी गई थी कि ठीक से परीक्षा न दे पाने के लिए याचिकाकर्ता की कोई गलती नहीं थी। ऐसे में प्रतिवादी नंबर 1-विश्वविद्यालय की कार्रवाई गलत और अवैध है।

न्यायालय के समक्ष विश्वविद्यालय का रुख यह था कि याचिकाकर्ता का यह कहना गलत है कि उसे ऑनलाइन परीक्षा के दौरान समस्या का सामना करना पड़ा था। इसी बिंदु पर उनकी तरफ से कई तर्क दिए गए थे।

कोर्ट का आदेश

अदालत ने कहा कि,

''जैसा कि तकनीक के बारे में हम सभी जानते हैं, इसमें अनिश्चितताओं की प्रवृत्ति होती है, चाहे वह नेटवर्क के मामले हों या डिवाइस से संबंधित मामले। जब हम तकनीक के साथ काम करते हैं, तो तकनीकी गड़बड़ियों से इनकार नहीं किया जा सकता है और इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए।''

कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि,

''याचिकाकर्ता ने 6 अगस्त 2020 को परीक्षा देते समय,जिस समस्या का सामना किया है,उसे देखते हुए याचिकाकर्ता को परीक्षा में उपस्थित होने की अनुमति दी जानी चाहिए। क्योंकि वह स्थिति उसके नियंत्रण से बाहर थी। वहीं हो सकता है कि याचिकाकर्ता ने सामान्य परिस्थितियों में इस तरह की समस्या का सामना न किया हो।''

इसलिए, अदालत ने फैसला दिया कि प्रतिवादी नंबर 1 - विश्वविद्यालय, उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर याचिकाकर्ता को विषय- फाउंडेशन इंजीनियरिंग की परीक्षा में उपस्थित होने की अनुमति दे दे, जो कि 21 सितम्बर 2020 से शुरू होने वाले चरण- 3 के तहत 23 सितम्बर 2020 को आयोजित की जानी है।

हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि यह आदेश याचिकाकर्ता के पक्ष में कोई इक्विटी नहीं देगा और मामले में दायर रिट याचिका के परिणाम के अधीन होगा।

इस मामले में अब आगे की सुनवाई 5 अक्टूबर 2020 को होगी।

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