कंपनी के घाटे में चले जाने पर एक निवेशक दूसरे निवेशक पर धोखाधड़ी का आरोप नहीं लगा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2023-12-07 05:22 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि किसी कंपनी का निवेशक किसी अन्य निवेशक के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज नहीं कर सकता है, यदि उसने अपना पैसा खो दिया, क्योंकि कंपनी को व्यावसायिक घाटा हुआ।

जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने याचिकाकर्ताओं की याचिका स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की, जिन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 34 सपठित धारा 420, 468, 406, 403, 418 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोप लगाए गए।

आरोपों के अनुसार, शिकायतकर्ता ने कंपनी शुरू करने के लिए याचिकाकर्ता-थॉमस सेबेस्टियन को 1.29 करोड़ रुपये का भुगतान किया। हालांकि, कंपनी कभी शुरू नहीं हुई।

उक्त आरोप के आधार पर क्षेत्राधिकारी पुलिस के समक्ष अपराध दर्ज किया गया। जांच की गई और याचिकाकर्ताओं के पक्ष में 'बी' रिपोर्ट दायर की गई। शिकायतकर्ता ने विरोध ज्ञापन दायर किया। इसके जवाब में मजिस्ट्रेट ने 'बी' रिपोर्ट खारिज कर दी और अपराधों का संज्ञान लिया।

याचिकाकर्ताओं का मामला यह था कि शिकायतकर्ता ने कंपनी में निवेश किया और कंपनी आगे बढ़ी, लेकिन घाटे में चली गई। चूंकि कंपनी सामान्य व्यावसायिक परिस्थिति में घाटे में थी, इसलिए आपराधिक कानून लागू नहीं किया जा सका, वह भी जालसाजी या धोखाधड़ी के लिए।

खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता-थॉमस सेबेस्टियन और शिकायतकर्ता ने संयुक्त उद्यम कंपनी शुरू करने का फैसला किया। इसके मुताबिक दोनों ने अपना-अपना निवेश किया। लेकिन कंपनी घाटे में चली गई और शिकायतकर्ता निवेश की गई राशि वापस नहीं पा सका।

इसमें आगे कहा गया कि शिकायतकर्ता ने एक ऐसे मुद्दे पर आपराधिक कानून लागू करने की मांग की जो पूरी तरह से पक्षकारों के बीच संविदात्मक है।

अदालत ने कहा,

“यदि व्यवसाय घाटे में चला गया, जहां आरोपी और शिकायतकर्ता दोनों ने निवेश किया तो यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ धोखाधड़ी का अपराध होगा, जिन्होंने कंपनी में वास्तविक निवेश किया और व्यावसायिक घाटे के कारण कंपनी बंद हो गई।“

पुलिस द्वारा दायर 'बी' रिपोर्ट के जवाब में दायर विरोध ज्ञापन का जिक्र करते हुए कहा गया,

“विरोध ज्ञापन बताता है कि वे विरोध याचिका दायर करके 'बी' रिपोर्ट को चुनौती देना चाहते हैं। ऐसी कोई याचिका नहीं आती। विरोध ज्ञापन को रिकॉर्ड पर ले लिया गया और मजिस्ट्रेट ने 'बी' रिपोर्ट को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ उपरोक्त अपराधों का संज्ञान लिया। मजिस्ट्रेट द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया डॉ. रविकुमार बनाम के.एम.सी. वसंता और अन्य के मामले में इस न्यायालय की समन्वय पीठ द्वारा दिए गए फैसले के विपरीत होगी।"

तदनुसार, अदालत ने याचिकाओं को अनुमति देते हुए कहा,

"'बी' रिपोर्ट को खारिज करने और संज्ञान लेने में प्रक्रिया के उल्लंघन के आलोक में इस तथ्य के अलावा कि जिस आपराधिक कानून को लागू किया गया है, वह अनुबंध या समझ के उल्लंघन पर है। याचिकाकर्ताओं और शिकायतकर्ता के बीच अगर आगे की कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी गई तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और अंततः न्याय का गर्भपात होगा।''

याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील आदित्य कृष्ण पांडे और जयशम जयसिम्हा राव पेश हुए।

राज्य की ओर से एचसीजीपी केपी यशोदा उपस्थित हुईं

केस टाइटल: एन निम्मी सेबेस्टियन बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य।

केस नंबर: आपराधिक याचिका नंबर 9212/2021 सी/डब्ल्यू आपराधिक याचिका नंबर 4676/2022

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