एक बार जब अन्वेषण पूरा हो जाता है तो पुलिस को कार्रवाई के बारे में अपराध की प्रथम इत्तिला देने वाले को सूचित करना अनिवार्य है: त्रिपुरा उच्च न्यायालय
त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने सोमवार (01 फरवरी) को राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि Cr.P.C की धारा 173 (2) (ii) की आवश्यकता का सभी मामलों में 'कड़ाई से पालन' किया जाए।
मुख्य न्यायाधीश अकील कुरैशी और न्यायमूर्ति एस.जी. चट्टोपाध्याय की खंडपीठ ने विशेष रूप से राज्य सरकार के गृह विभाग को निर्देश दिया कि वह सभी पुलिस स्टेशनों को एक उचित परिपत्र जारी करे, जिसमें पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी और जांच अधिकारी को सभी मामलों में धारा 173 (2) (ii) Cr.PC की आवश्यकता का पालन करने के लिए कहा जाए।
कोर्ट के सामने दी गई दलील
न्यायालय एक श्री भास्कर देब द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें कहा गया था कि राज्य पुलिस अधिकारी, बड़ी संख्या में मामलों में Cr.P.C की धारा 173 (2) (ii) की आवश्यकताओं का पालन नहीं कर रहे हैं।
यह ध्यान दिया जा सकता है कि उक्त प्रावधान [सीआरपीसी की धारा 173 (2) (ii)] थाने के भारसक अधिकारी के लिए यह अनिवार्य बनाता है कि वह अपने अन्वेषण पूरा होने पर प्रथम सूचक (First Informant) को उसके द्वारा की गई कार्रवाई के बारे में बताए।
यह धारा इस प्रकार है,
"वह अधिकारी अपने द्वारा की गई कार्यवाही की संसूचना, उस व्यक्ति को, यदि कोई हो, जिसने अपराध किए जाने के संबंध में सर्वप्रथम इत्तिला दी, उस रीति से देगा, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए"
इस पृष्ठभूमि में, याचिकाकर्ता की शिकायत यह थी कि राज्य में कई मामलों में इस प्रावधान की आवश्यकता का उल्लंघन किया जा रहा था।
उन्होंने कई उदाहरणों का भी हवाला दिया जहां जांच पूरी होने के बावजूद, प्रथम सूचक (First Informant) घटनाक्रम के बारे में पूरी तरह से अनभिज्ञ था।
याचिकाकर्ता ने कई शिकायतकर्ताओं के हलफनामों को भी दाखिल किया, जिन्होंने संबंधित पुलिस स्टेशन के समक्ष पहली सूचना दर्ज की थी और उन्हें जांच पूरी होने के बारे में सूचित नहीं किया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि सभी उदाहरण पश्चिम त्रिपुरा जिले से संबंधित हैं।
इसलिए, उन्होंने प्रस्तुत किया कि यदि राज्य के शहरी केंद्रों में Cr.P.C की धारा 173 (2) (ii) की आवश्यकता को पूरा नहीं किया जा रहा था तो ग्रामीण केंद्रों की स्थिति तो बहुत खराब होगी।
कोर्ट का अवलोकन
त्रिपुरा राज्य द्वारा दायर की गई प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए कि उन्होंने याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दों को अस्वीकार या विवादित नहीं किया गया था, कोर्ट ने कहा,
"हमारे पास याचिकाकर्ता द्वारा उद्धृत उदाहरणों को खारिज करने का कोई आधार नहीं है जहां सीआरपी की धारा 173 (2) (ii) की आवश्यकताओं का कड़ाई से पालन नहीं किया गया है।"
न्यायालय ने आगे कहा,
"उक्त प्रावधान का आशय प्रथम सूचक (First Informant) को अन्वेषण पूरा होने और उसके परिणाम के बारे में सूचित करना है, जिससे यदि वह पुलिस रिपोर्ट को लेकर अपनी प्रतिक्रिया देना चाहता है तो वह ऐसा कर सकता है। जब प्रथम सूचक (First Informant), जो बड़ी संख्या में मामलों में पीड़ित हो सकते हैं या पीड़ित के वारिस हो सकते हैं, उन्हे पुलिस अन्वेषण पूरा होने का नतीजा नहीं दिया जाता है, तो निस्संदेह धारा 173 (2) (ii) की आवश्यकताओं का उल्लंघन होगा"
इस प्रकार, उत्तरदाताओं को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया गया कि Cr.P.C की धारा 173 (2) (ii) की उक्त आवश्यकताएं, सभी मामलों में पूरी कि जाए और इस संबंध में उचित निर्देश जारी किए जाएँ।
केस का शीर्षक - श्री भास्कर देब बनाम त्रिपुरा राज्य और एक अन्य [डब्ल्यू.पी. (C) (PIL) No.07 / 2020]
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