एक बार बर्खास्तगी अवैध ठहरा दी गई हो तो लेबर कोर्ट कामगार को बकाया वेतन देने के लिए बाध्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया है कि एक बार जब लेबर कोर्ट यह मान लेता है कि कामगार की बर्खास्तगी अवैध थी और कामगार को सर्विस में बहाल कर दिया जाता है, तो उसे पिछला वेतन दिया जाना, बाध्यकारी है।
जस्टिस पीयूष अग्रवाल ने कहा,
"यदि किसी टर्मिनेशन ऑर्डर को अवैध होने के कारण रद्द कर दिया जाता है, तो इसका परिणाम यह होगा कि टर्मिनेशन का ऑर्डर कभी पारित नहीं किया गया था और इसलिए, पूर्ण बकाया वेतन के साथ सेवा में बहाली टर्मिनेशन ऑर्डर को रद्द करने का स्वाभाविक परिणाम है।"
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता असेंबली गर्ल के पद पर कार्यरत थी। हालांकि, उसे सुनवाई का अवसर दिए बिना या छंटनी मुआवजे के बिना सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।
लेबर कोर्ट के समक्ष लेबर कोर्ट का ही एक संदर्भ दिया गया, जिसमें लेबर कार्ट ने बर्खास्तगी को अवैध माना था और बहाली का निर्देश दिया था। हालांकि, बिना कोई कारण बताए कोई पिछला वेतन नहीं दिया गया।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि चूंकि बहाली के फैसले को निजी नियोक्ता ने चुनौती नहीं दी है, इसलिए यह अंतिम हो गया है। हालांकि, यह बताया गया कि लेबर कोर्ट ने टर्मिनेशन की तारीख से बहाली की तारीख तक पिछला वेतन न देकर गलती की है।
यूपी राज्य बनाम चरण सिंह (2015) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने कहा कि "यह स्पष्ट है कि एक बार बर्खास्तगी को अवैध मानते हुए अवॉर्ड पारित कर दिया गया है, तो लेबर कोर्ट को बकाया वेतन देना चाहिए था।"
लेबर कोर्ट के समक्ष लिखित बयान में बकाया वेतन देने का विशेष रूप से अनुरोध किया गया था।
न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता बकाया वेतन पाने की हकदार है। अदालत ने याचिकाकर्ता को पिछले वेतन की राशि की गणना के लिए औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 6-एच (1) के तहत एक आवेदन दायर करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: श्रीमती विद्या रावत बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य [रिट - सी नंबर- 11692/2007]