बलात्कार का अपराध माफ नहीं किया जा सकता : दिल्ली हाईकोर्ट ने पीड़िता के साथ समझौता और शादी करने वाले सरकारी कर्मचारी के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने से इनकार किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक सरकारी कर्मचारी के खिलाफ बलात्कार के आरोप में दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा है कि इस तरह की एफआईआर को पक्षकारों के बीच हुए समझौते और उसके बाद विवाह करने के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह कथित अपराध माफ/समाप्त नहीं करता।
यह दोहराते हुए कि बलात्कार का कृत्य किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं है बल्कि समाज के खिलाफ एक अपराध है, जस्टिस रजनीश भटनागर ने कहा कि
''वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता एक सरकारी कर्मचारी है, जो सीमा शुल्क और सीजीएसटी विभाग, भारत सरकार के अधीक्षक के रूप में कार्यरत है और गजेेटेड पद पर तैनात है। इसलिए एक सरकारी कर्मचारी होने के नाते, उससे अपने निजी जीवन में नैतिकता और सभ्य मानक बनाए रखने की उम्मीद की जाती है और वह अपने कुकर्मों से अपनी सेवा को बदनाम न करें।''
कोर्ट ने कहा कि
'वास्तव में जहां तक समाज के प्रति उसके आचरण का संबंध है,तो एक सरकारी कर्मचारी की अधिक जिम्मेदारी बनती है। बलात्कार न केवल पीड़िता के व्यक्तित्व को नष्ट कर देता है बल्कि यह पीड़िता को मानसिक तौर पर भी डराता है जो वर्षों तक उसके दिमाग में अंतर्निहित रहता है। बलात्कार के आरोप गंभीर चिंता का विषय हैं और इनसे सामान्य तरीके से नहीं निपटा जा सकता है।''
अदालत भारतीय दंड संहिता की धारा 376, 323 और 506 के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर विचार कर रही थी। शिकायतकर्ता ने पुलिस को बताया था कि उसका अपने पुरुष मित्र, याचिकाकर्ता के साथ झगड़ा हुआ था और उसने उसके साथ मारपीट करने की कोशिश की थी। बाद में, उसने याचिकाकर्ता द्वारा उसके साथ किए गए यौन उत्पीड़न के कृत्य के बारे में भी खुलासा किया था।
इसके अलावा, शिकायतकर्ता ने यह भी बताया कि वह जीवन साथी डॉट कॉम के माध्यम से याचिकाकर्ता के संपर्क में आई थी,जहां याचिकाकर्ता ने उससे उसका मोबाइल नंबर मांगा था। याचिकाकर्ता ने तब उसे बताया था कि उसकी उम्र लगभग 32 वर्ष है और वह अविवाहित है और सीमा शुल्क में एक अधिकारी है। हालांकि उसने अपने पहले प्रेम विवाह के बारे में इस तथ्य को छुपाया कि उसकी पहली पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी जिसके लिए न्यायालय में मामला चल रहा है।
बाद में, एक दिन याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता के माथे पर सिंदूर लगाया और कहा कि वे पति-पत्नी हैं लेकिन उसने उसे अपने परिवार से नहीं मिलवाया। अपनी शिकायत में, शिकायतकर्ता ने आगे आरोप लगाया कि इसके बाद याचिकाकर्ता ने कार में उसके साथ बलात्कार किया और उसके बाद शिकायतकर्ता ने उसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।
इसके बाद जब याचिकाकर्ता थाने आया तो एक बार फिर से उसने उससे शादी करने का वादा किया और उसके बाद उसने अपनी शिकायत वापस ले ली।
अदालत ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि दोनों पक्षों ने इस मामले में सौहार्दपूर्ण ढंग से समझौता कर लिया है और शिकायतकर्ता ने रिकॉर्ड पर भी एक हलफनामा भी दायर किया था, जिसमें कहा गया है कि उन्होंने एक-दूसरे से शादी की है और अगर प्राथमिकी रद्द कर दी जाती है तो उसे कोई आपत्ति नहीं है। कोर्ट ने कहा कि केवल आपसी समझौता कर लेने के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि आरोप हल्के या कम हो गए हैं या शिकायतकर्ता द्वारा कथित अपराध के बारे में लगाए गए आरोपों ने किसी भी तरह से अपनी गंभीरता खो दी है।
कोर्ट ने कहा कि
,''ज्ञान सिंह के मामले (सुप्रा) और यहां उल्लिखित अन्य मामलों में वर्णित स्थिति को देखते हुए, शिकायतकर्ता (प्रतिवादी संख्या 2) और याचिकाकर्ता के बीच हुए समझौते और बाद में विवाह कर लेने के आधार पर सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इस न्यायालय में निहित शक्तियों का प्रयोग करके पुलिस स्टेशन पटपड़गंज औद्योगिक क्षेत्र में दर्ज प्राथमिकी संख्या 219/2021 से शुरू होने वाली (बलात्कार के आरोपों के साथ) आपराधिक कार्यवाही रद्द नहीं की जा सकती है क्योंकि यह शिकायतकर्ता द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपित अपराध को माफ/समाप्त नहीं करता है।''
तदनुसार याचिका खारिज कर दी गई।
केस का शीर्षक- स्वतंत्र कुमार जायसवाल बनाम राज्य व अन्य
उद्धरण - 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 14
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