ऑर्डर 8 रूल 9 सीपीसी | लिखित बयान जमा कर चुका प्रतिवादी कोर्ट की अनुमति के बिना प्रतिवाद दायर नहीं कर सकता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में माना कि दीवानी मुकदमे में प्रतिवादी लिखित बयान जमा करने के बाद प्रतिवाद दायर नहीं कर सकते हैं। कोर्ट की अनुमति अपवाद होगी।
जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की खंडपीठ ने रमेश चंद अर्दवतिया बनाम अनिल पंजवानी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।
उन्होंने कहा,
सीपीसी के ऑर्डर 8 के उक्त प्रावधान, सुप्रीम कोर्ट के पूर्वोक्त निर्णयों के आलोक में कोई संदेह नहीं छोड़ते हैं कि एक प्रतिवादी लिखित बयान दर्ज कराने के बाद अलग से प्रतिवाद दाखिल नही कर सकता। अदालत की अनुमति के अलावा, ऐसा किसी परिस्थिति में नहीं किया जा सकता है।"
कोर्ट ने कहा,
वर्तमान मामले में यह एक स्वीकृत तथ्य है कि प्रतिवादी संख्या 4 और 7 ने संयुक्त रूप से 22/01/2021 को अपने लिखित बयान दर्ज किए थे, जबकि प्रतिदावे में वो प्रतिवादी संख्या 1 से 3 के साथ शामिल हो गए हैं। प्रतिवादी संख्या 4 और 7 के प्रतिदावे में प्रतिवादी संख्या 1 से 3 शामिल हो गए, जबकि प्रतिवादी संख्या 1 से 3 पहले ही प्रतिदावा दायर करने के अपने अधिकार को खो चुके थे। वह ऐसा केवल अदालत की अनुमति के साथ ही कर सकते थे।
कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी संख्या 1 से 3 का यह कृत्य पिछले दरवाजे से प्रवेश करने की कोशिश है।
मामले के तथ्य यह थे कि याचिकाकर्ता/वादी ने प्रतिवादी के खिलाफ वसूली के लिए एक मुकदमा दायर किया था। प्रतिवादियों में से दो अर्थात 1 और 3 ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष अपने लिखित बयान प्रस्तुत किए थे। जिसके बाद प्रतिवादी संख्या 4 और 7 ने अपना लिखित बयान और अपना प्रतिदावा प्रस्तुत किया, जिसमें वे प्रतिवादी संख्या 1 और 3 द्वारा शामिल हो गए।
याचिकाकर्ता/वादी ने उक्त प्रतिदावे के खिलाफ ऑर्डर 8 रूल 11, सीपीसी के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें कहा गया कि प्रतिवादी संख्या 1 और 3 अदालत की अनुमति के बिना अपना लिखित बयान दर्ज करने के बाद प्रतिवाद दायर नहीं कर सकते। हालांकि, वादी द्वारा दायर आवेदन खारिज कर दिया गया था। परेशान होकर याचिकाकर्ता ने कोर्ट का रुख किया।
याचिकाकर्ता ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि नीचे की अदालत द्वारा पारित आदेश आदेश 8 नियम 9 सीपीसी के तहत प्रावधान के अनुरूप था। यह तर्क दिया गया था कि प्रतिवादी नंबर 1 और 3 को अन्य प्रतिवादियों के साथ संयुक्त प्रतिवाद दाखिल करने से पहले ट्रायल कोर्ट से अनुमति लेनी चाहिए थी।
पक्षकारों के प्रस्तुतीकरण और रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों की जांच करते हुए, अदालत ने याचिकाकर्ता की प्रस्तुतियों से सहमति व्यक्त की।
न्यायालय ने कहा कि एक बार प्रतिदावा दायर करने का उनका अधिकार खत्म हो जाने के बाद, प्रतिवादी नंबर 1 और 3 अदालत की इजाजत लिए बिना पिछले दरवाजे से प्रवेश नहीं कर सकते थे और अन्य प्रतिवादियों के साथ संयुक्त जवाब दाखिल नहीं कर सकते थे।
इस प्रकार, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि प्रतिवाद जहां तक प्रतिवादी नंबर 1 और 3 के दावे से संबंधित है, कानून की नजर में टिकाऊ नहीं था और खारिज किए जाने योग्या था। हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रतिवादी संख्या 4 और संख्या 7 का प्रतिवाद बना रहेगा क्योंकि यह उनके लिखित बयान के साथ दायर किया गया था।
कोर्ट ने कहा,
"ऐसी परिस्थितियों में, पुनरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से अनुमति दी जाती है और 06/03/2021 के विवादित आदेश को आंशिक रूप से रद्द किया जाता है, जहां तक प्रतिवादी संख्या 1 से 3 द्वारा दायर प्रतिदावे का संबंध है, हालांकि, प्रतिदावा जीवित रहेगा, जहां तक यह केवल प्रतिवादी संख्या 4 और 7 से संबंधित है। इस न्यायालय की सुविचारित राय है कि केवल इसलिए कि मुद्दे को फ्रेम किया जा चुका है, और प्रतिवादी संख्या 1 से 3 ने भी अपना लिखित बयान दर्ज किया है, यह अन्य प्रतिवादियों को अदालत की अनुमति के साथ अपना बयान दाखिल करने से नहीं रोकेगा, विशेष रूप से जो अदालत में पहली बार लिखित बयान दाखिल कर रहे हैं। और यहां तक कि मुद्दों के निर्धारण के बाद भी, सीपीसी के आदेश 8 नियम 6ए के तहत प्रदान किए गए प्रतिदावे को दायर करने का उनका अधिकार बना रहेगा।
कोर्ट ने इन टिप्पणियों के साथ संशोधन को आंशिक रूप से अनुमति दी और प्रतिवादी नंबर 1 और 3 की ओर से प्रतिदावे की अनुमति देने से संबंधित विवादित आदेश को रद्द कर दिया।
केस टाइटल: श्री अंबरम बनाम श्री जादुलाल व अन्य