ओआईआर 10 सीपीसी| सफल बोलीदाताओं ने लेन-देन के संबंध में जब विवाद उठाया हो तो नीलामकर्ता के साथ असाइनमेंट डीड निष्पादित करने वाली पार्टी, आवश्यक पार्टी नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट

Update: 2022-12-08 11:21 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक फैसले में कहा कि एक पार्टी, जिसने एक नीलामीकर्ता के साथ असाइनमेंट डीड में प्रवेश किया है, सफल बोलीदाता के साथ लेन-देन पूरा होने के बाद और उसके संबंध में विवाद पैदा होने के बाद, ऐसे बोलीदाता द्वारा शुरू की गई कार्यवाही में आवश्यक पक्ष नहीं है ( क्यों‌कि वहां अनुबंध की गोपनीयता नहीं है)।

पीठ ने कहा कि सीपीसी के आदेश 1 नियम 10(2) के तहत, न्यायालय का यह दायित्व है कि वह उक्त प्रावधान के संदर्भ में आदेश पारित करे, यदि यह पाता है कि किसी पक्ष को मुकदमे में गलत तरीके से पक्षकार बनाया गया है और मुकदमे में शामिल प्रश्नों के प्रभावी और पूर्ण निर्णय के लिए भी आदेश पारित करे।

मौजूदा कार्यवाही आवेदक फीनिक्स एआरसी प्राइवेट लिमिटेड की ओर से एक हस्तक्षेप आवेदन दायर करने के बाद पैदा हुई थी, जिसने हस्तक्षेप करने और रिट कार्यवाही में पार्टी प्रतिवादी के रूप में शामिल होने की मांग की थी।

रिट याचिका एक संपत्ति के सफल नीलामी खरीदारों की ओर से दायर की गई थी, जिसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने SARFAESI एक्ट, 2002 के तहत बिक्री के लिए रखा था। एसबीआई मामले में ‌‌रिस्पॉडेंट नंबर एक है।

रिट याचिका में प्रार्थना की गई थी कि सफल नीलामी खरीदारों द्वारा भुगतान की गई प्रतिफल राशि को ब्याज सहित वापसी के लिए SBI को निर्देश दिया जाए।

वर्तमान रिट याचिका के लिए कार्रवाई का कारण, तब पैदा हुआ जब एसबीआई ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) द्वारा पारित निषेधाज्ञा के पहले के आदेश के कारण सफल नीलामी खरीदारों के पक्ष में बिक्री प्रमाणपत्र जारी करने में विफल रहा, जिसके तहत उधारकर्ता ने नीलामी बिक्री को चुनौती देने की मांग की थी।

चूंकि रिट याचिकाकर्ताओं को प्रतिफल की पूरी राशि देने के बावजूद संपत्ति के कब्जे और आनंद के अधिकार से वंचित कर दिया गया था, वर्तमान रिट याचिका उक्त प्रतिफल राशि की वापसी की मांग करते हुए दायर की गई थी।

कोर्ट ने कानून की स्थिति के लिए मैसर्स गैमन इंडिया लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1974) 1 एससीसी 596 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया कि हस्तक्षेपकर्ता उन बिंदुओं को नहीं उठा सकता है, जो याचिकाकर्ताओं याचिका में जिनकी बात नहीं की हैं।

जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य की खंडपीठ ने उक्त निर्णय को मौजूदा मामले में पूरी तरह से फिट पाया।

कोर्ट ने मेरिट के आधार पर कहा कि याचिकाकर्ताओं को एसबीआई से बोली राशि की वापसी के मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए कथित एसाइनी के रूप में आवेदक की उपस्थिति आवश्यक नहीं है, चूंकि रिफंड की देनदारी केवल एसबीआई की है और एसाइनमेंट डीड दोनों प्रतिफल राशि के भुगतान के साथ-साथ प्रतिवादी संख्या एक से धन की वापसी के लिए याचिकाकर्ता के दावे के बाद निष्पादित किया गया था।

न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं और आवेदक के बीच अनुबंध की कोई गोपनीयता नहीं था और प्रतिफल राशि की वापसी का दावा पूरी तरह से याचिकाकर्ताओं और एसबीआई, प्रतिवादी संख्या 1 के बीच हुए पत्राचार से पैदा हुआ था।

तदनुसार, न्यायालय ने पाया कि मौजूदा आवेदक वर्तमान मुकदमे की कार्यवाही के लिए न तो उचित और न ही आवश्यक पक्ष है। कोर्ट ने बिना जुर्माने के मौजूदा आवेदन को खारिज कर दिया।

केस टाइटल: अवलोकन कॉमासेल्स प्राइवेट लिमिटेड और अन्य बनाम भारतीय स्टेट बैंक और अन्य WPO 2166 of 2022

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