नोटरी/शपथ आयुक्त विवाह/तलाक दस्तावेजों को निष्पादित करने के लिए अधिकृत नहीं: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सख्त दिशानिर्देशों की वकालत की
उन नोटरी/शपथ आयुक्तों को फटकार लगाते हुए, जो विवाह, तलाक, आदि के संबंध में दस्तावेज को निष्पादित करने में खुद को शामिल कर रहे हैं, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह ऐसे नोटरी/शपथ आयुक्तों के संबंध में सख्त दिशानिर्देशों की वकालत करते हुए कहा कि,
"नोटरी और शपथ आयुक्तों को उचित दिशानिर्देश दिए जाएँ कि वे इस तरह के कामों को अंजाम देना बंद करें, अन्यथा उनका लाइसेंस समाप्त कर दिया जाएगा।"
न्यायमूर्ति विवेक रूसिया की पीठ ने कहा,
"नोटरी का कार्य नोटरी अधिनियम के तहत परिभाषित किया गया है। उनका कार्य दस्तावेजों को निष्पादित करके शादी करवाने का नहीं है...न तो नोटरी शादी को निष्पादित करने के लिए अधिकृत है और न ही तलाक की कार्यवाही को निष्पादित करने के लिए सक्षम है।"
न्यायालय के समक्ष मामला
अदालत आवेदक - मुकेश की नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे आईपीसी की धारा 420, 467 और 468/34 के तहत अपराध के लिए गिरफ्तार किया गया था।
अभियोजन के अनुसार, शिकायतकर्ता - जितेंद्र ने गायत्रीबाई, नागेश्वर, और ओमप्रकाश के खिलाफ एक लिखित शिकायत प्रस्तुत की और आरोप लगाया कि उन्होंने सामान्य इरादे के साथ, 9 सितंबर 2020 को जौरा कोर्ट में गायत्रीबाई के साथ (जितेंद्र) का विवाह करवाया, लेकिन शादी के 5-6 दिन के बाद, गायत्रीबाई सारे सामान के साथ उसके घर से भाग गई।
जांच के दौरान, पुलिस ने स्टांप पेपर बरामद किए और गायत्रीबाई, नागेश्वर और ओमप्रकाश को गिरफ्तार कर लिया और उनके बयानों को साक्ष्य अधिनियम कि धारा 27 के तहत दर्ज कर लिया।
उनके अनुसार, उन्होंने आपस में 1,50,000/- रुपये की राशि (शिकायतकर्ता द्वारा दी गई) बाँट ली।
आवेदक के वकील ने प्रस्तुत किया कि आवेदक को मामले में गलत तरीके से फंसाया गया है।
यह कहा गया कि आवेदक 16 सितंबर 2020 से हिरासत में है और उसने केवल शिकायतकर्ता से शादी के लिए गायत्रीबाई का उससे परिचय कराया था और उसके बाद वह गायत्रीबाई के बारे में कुछ भी नहीं जानता है।
कोर्ट का आदेश
न्यायालय ने कहा कि
"न केवल आरोपी व्यक्ति, जिसने शिकायतकर्ता के फर्जी विवाह करने में साजिश रची, बल्कि नोटरी, जिसने विवाह समझौते को निष्पादित किया है, वह भी इस मामले में समान रूप से जिम्मेदार है।"
न्यायालय ने आगे कहा,
"अगर उन्होंने ठीक से मार्गदर्शन किया होता और शिकायतकर्ता को शादी के समझौते को निष्पादित करने से इनकार कर दिया होता, तो वर्तमान अपराध नहीं होता...राज्य के कानून विभाग को इन मामलों पर गौर करने की आवश्यकता है कि नोटरी और शपथ आयुक्त स्वयं को इन मामलों में कैसे शामिल कर रहे हैं जिनकी कानून के तहत अनुमति नहीं है।"
हालाँकि, न्यायालय ने निर्देश दिया कि मौजूदा आवेदक को 50,000/- की राशि पर जमानत दी जाए।
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