जब मृतक अति-संवेदनशील हो तो आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी पर मुकदमा चलाना सुरक्षित नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2023-09-02 15:49 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जब मृतक अति-संवेदनशील हो तो आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध के लिए किसी आरोपी पर मुकदमा चलाना सुरक्षित नहीं होगा।

जस्टिस सुधीर कुमार जैन ने कहा कि भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध गठित करने के लिए मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए आरोपी का उकसाना और इरादा होना चाहिए।

अदालत ने कहा,

“यह सुझाव देने के लिए ठोस सबूत होने चाहिए कि आरोपी ने मृतक के प्रति अपने कृत्य से उकसाने, उसे आत्महत्या के लिए मजबूर करने का इरादा किया। यदि मृतक अत्यधिक संवेदनशील है और आरोपी की ओर से की गई कार्रवाई से किसी अन्य व्यक्ति को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने की उम्मीद नहीं है तो आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए आरोपी पर मुकदमा चलाना सुरक्षित नहीं होगा।”

जस्टिस जैन ने कहा कि संबंधित अपराध को अंजाम देने के लिए "उकसाने का प्रत्यक्ष कार्य" होना चाहिए।

अदालत ने यह टिप्पणी उन तीन रिश्तेदारों को आरोपमुक्त करते हुए की, जिनके खिलाफ एक महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आईपीसी की धारा 306 और 34 के तहत आरोप तय किए गए हैं।

महिला के पिता ने घटना के कुछ दिनों बाद एक सुसाइड नोट के आधार पर शिकायत दर्ज कराई, जो बाद में घर में मिला था। उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी बेटी का जीवन उन रिश्तेदारों द्वारा दयनीय बना दिया गया था, जिनके साथ उनका पानीपत में संपत्ति विवाद है। मृतक उन रिश्तेदारों के अत्याचारों को सहन नहीं कर सकी और आत्महत्या कर ली।

तीनों रिश्तेदारों को बरी करते हुए जस्टिस जैन ने कहा कि मृतक ने 12 मार्च 2016 को आत्महत्या कर ली थी, लेकिन उस समय जांच अधिकारी को कोई सुसाइड नोट नहीं सौंपा गया था।

अदालत ने कहा,

“शिकायतकर्ता, जो मृतक के पिता हैं, सोनिया बाबर, जो मृतक की बहन है और पूनम, जो मृतक के पड़ोसियों में से एक है, इनके बयान जांच के दौरान दर्ज किए गए, लेकिन उन्होंने मृतक और आरोपियों के परिवार के बीच किसी दुश्मनी का उल्लेख नहीं किया।”

इसमें आगे कहा गया कि मृतक ने 3 मार्च 2016 को लिखे सुसाइड नोट में कहा कि वह अवसाद में है, जो उसकी मौत का एक बड़ा कारण होगा।

अदालत ने कहा,

“मृतका ने उसे अवसादग्रस्त करने के लिए अपने सभी मामाओं, उनकी पत्नियों और बेटों पर जिम्मेदारी डाली है। हालांकि, मृतक ने अपने मामा और उनके परिवारों द्वारा किए गए एक भी कृत्य या उदाहरण का हवाला नहीं दिया, जिससे मृतक को अवसाद हुआ हो।”

इसमें कहा गया,

“सुसाइड नोट से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि एक भी ऐसे कृत्य का उल्लेख नहीं है कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाया या आत्महत्या के लिए प्रोत्साहित किया। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मृतक अवसाद में थी। इस सुसाइड नोट में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो मृतक को आत्महत्या के लिए जिम्मेदार याचिकाकर्ताओं की ओर से उकसाने का संकेत दे सके।''

अदालत ने पाया कि जिन तीन रिश्तेदारों के खिलाफ आरोप तय किए गए, उनके खिलाफ कोई विशिष्ट आरोप और निश्चित प्रकृति की सामग्री नहीं है।

अदालत ने कहा,

“सुसाइड नोट की सामग्री उसे आत्महत्या के लिए मजबूर करने के लिए पर्याप्त नहीं है। मृतक के पिता शिकायतकर्ता का दर्द और पीड़ा समझ में आती है, क्योंकि उसकी जवान बेटी ने आत्महत्या कर ली, लेकिन शिकायतकर्ता की सहानुभूति, दर्द और पीड़ा को कानूनी उपायों यानी आपराधिक मुकदमा में नहीं बदला जा सकता।”

यह देखते हुए कि ट्रायल कोर्ट ने जांच के दौरान एकत्र किए गए सुसाइड नोट और अन्य आरोपों की सामग्री पर विचार नहीं किया, इसलिए उनके खिलाफ आरोप तय करने का आदेश "मैकेनिकली एंड क्रिप्टिक तरीके" से पारित किया गया।

अदालत ने कहा,

“उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर, वर्तमान याचिका में याचिकाकर्ताओं रेखा रानी, मधु और जतिन को आईपीसी की धारा 306/34 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोपमुक्त करने की अनुमति दी जाती है। उनके जमानत बांड रद्द कर दिए गए हैं। जमानतदार को अनुमति दे दी गई।”

केस टाइटल: रेखा रानी और अन्य बनाम दिल्ली के एनसीटी राज्य

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