आयकर विभाग भक्तों की भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर सकता: शिरडी साईं बाबा को गुमनाम दान के खिलाफ अपील में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा
श्री साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट (शिरडी) के खिलाफ आयकर विभाग द्वारा दायर अपील को बंद करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि विभाग मंदिर को गुमनाम दान करने वाले भक्तों की भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर सकता।
जस्टिस गिरीश कुलकर्णी और जस्टिस सोमशेखर सुंदरसन की खंडपीठ ने आयकर आयुक्त (छूट) द्वारा दायर आयकर अपील में आदेश सुरक्षित रख लिया।
आयकर विभाग ने आयकर अपीलीय ट्रिब्यूनल (ITAT) के 25 अक्टूबर2023 के आदेश को चुनौती दी, जिसमें कहा गया कि ट्रस्ट एक धर्मार्थ और धार्मिक दोनों है। इस प्रकार यह अपने गुमनाम दान पर आयकर से छूट का पात्र है।
हालांकि विभाग ने एडवोकेट दिनेश गुलाबानी के माध्यम से यह तर्क देते हुए निर्णय को चुनौती दी कि ट्रस्ट केवल धर्मार्थ है और धार्मिक नहीं है।
गुलाबनी ने तर्क दिया कि 2019 तक प्राप्त दान (कुल मिलाकर) 400 करोड़ रुपये था, जिसमें से केवल 2.30 करोड़ रुपये की मामूली राशि धार्मिक उद्देश्यों के लिए खर्च की गई। मुख्य व्यय शैक्षणिक संस्थानों अस्पतालों और मेडिकल सुविधाओं आदि पर है। इससे पता चलता है कि ट्रस्ट केवल धर्मार्थ ट्रस्ट है और धार्मिक नहीं है।
हालांकि, जजों ने बताया कि ऐसा कहा जाता है कि साईं बाबा भगवान दत्तात्रेय के अवतार हैं और इसलिए लोग उनकी पूजा करते हैं।
जस्टिस कुलकर्णी ने कहा,
"मैंने कहीं पढ़ा है कि साईं बाबा भगवान दत्तात्रेय के अवतार हैं। इसलिए लोग उनकी पूजा करते हैं। इसलिए ये सभी दान, चाहे वे गुमनाम हों या नहीं लेकिन हां, ये सभी दान आस्था के कारण हैं।"
इसके अलावा खंडपीठ ने एक्स चीफ जस्टिस रमेश धानुका के फैसले की ओर इशारा किया, जिन्होंने ट्रस्ट के प्रबंधन से संबंधित मुद्दे पर विचार किया था और विशेष रूप से कहा था कि राज्य को कम से कम धार्मिक ट्रस्टों को तो छोड़ देना चाहिए।
इसका उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा,
“न्यायिक घोषणा भी है कि यह ट्रस्ट धार्मिक है तो अब विभाग कैसे तर्क दे सकता है कि यह धार्मिक नहीं है? प्रतिदिन बहुत से लोग मंदिर आते हैं और पैसे दान करते हैं। आप उनकी भावनाओं को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं? क्या होगा यदि कोई दानकर्ता, जो भक्त है, कहता है कि वह पहचान नहीं चाहता है, क्योंकि वह कुछ राशि दान करके कोई धार्मिक कार्य कर रहा है। यहां तक कि बहुत से व्यवसायी भी वर्तमान मंदिर सहित विभिन्न मंदिरों को सालाना कुछ राशि दान करते हैं। आप भक्तों की भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर सकते।"
वहीं गुलाबानी ने अपनी दलीलें जारी रखीं और पीठ को यह समझाने की कोशिश की कि ट्रस्ट धार्मिक नहीं है। उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि 400 करोड़ रुपये से अधिक दान (अनाम सहित) प्राप्त करने के बावजूद ट्रस्ट, जिसके पास कई कर्मचारी हैं, केवल 2 करोड़ रुपये का भुगतान करके कैसे काम कर सकता है।
हालांकि ट्रस्ट का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर एडवोकेट एस गणेश ने तर्क दिया,
"हमारे पास धर्मार्थ दायित्व के साथ-साथ धार्मिक दायित्व भी हैं। हम यह नहीं कह सकते कि हम केवल धर्मार्थ हैं और धार्मिक नहीं हैं या इसके विपरीत। हम धर्मार्थ और धार्मिक दोनों हैं। इसलिए हम बहुत अधिक दान करते रहे हैं।”
इसके अलावा गणेश ने बताया कि विभाग ने केवल धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में इसके चरित्र का आकलन करने में गलती की है।
गणेश ने कहा,
"ऐसी दलीलें दी गई हैं कि यह हिंदू देवता है या मुस्लिम देवता। हम केवल यह कह सकते हैं कि हिंदू और मुस्लिम दोनों ही मंदिर में रोजाना आते हैं। एक मंदिर है, इसमें एक देवता है, रोजाना पूजा की जाती है और अनुष्ठानों के साथ अनुष्ठान किए जाते हैं। यह कहना गलत है कि हम धार्मिक ट्रस्ट नहीं हैं।
संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद पीठ ने मामले को आदेश के लिए बंद कर दिया।