'किसी भी पुरस्कार में रुचि नहीं': कर्नाटक हाईकोर्ट ने जजों को पद्म/राज्य पुरस्कार के लिए योग्य घोषित करने की मांग वाली याचिका खारिज की

Update: 2021-10-29 10:02 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी ने शुक्रवार को कहा, "पुरस्कार पाने में हमारी कोई रुचि नहीं है। हम केवल काम करने में रुचि रखते हैं।"

उन्होंने यह टिप्पणी एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए की। याचिका में केंद्र और राज्य सरकार को यह घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के मौजूदा जज भी पद्म/राज्य पुरस्कारों के लिए पात्र हैं।

जस्टिस अवस्थी और जस्टिस सचिन शंकर मखदूम की पीठ ने मौखिक रूप से कहा, "इस तरह के पुरस्कार देना संविधान के खिलाफ है। आपको (याचिकाकर्ता) जजों के फायदे के लिए एक बेहतर मुद्दा नहीं मिल सका? हमें पुरस्कार प्राप्त करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। हम केवल काम करने में रुचि रखते हैं। हम कोई पुरस्कार नहीं चाहते हैं। हम पुरस्कारों के पूरी तरह खिलाफ हैं।"

डॉ विनोद कुलकर्णी द्वारा दायर याचिका में कर्नाटक हाईकोर्ट के मौजूदा चीफ जस्टिस या अगले वरिष्ठतम जज के लिए कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार (एक नवंबर को प्रदान किया जाने वाला) का एक पुरस्कार आरक्षित करने की भी प्रार्थना की गई थी।

कुलकर्णी ने अपनी याचिका में दावा किया है कि जजों को राष्ट्रीय और राज्य पुरस्कारों से सम्मानित करने से निश्चित रूप से उनका मनोबल बढ़ेगा और ऐसे सम्मान उनका प्रदर्शन बढ़ाना तय है। इससे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मामलों का त्वरित निपटान हो सकता है।

इसके अलावा, यह दावा किया गया कि "सरकारी डॉक्टरों को इस तरह के पुरस्कार प्रदान करना और शीर्ष अदालतों के मौजूदा जजों को न देना, संविधान के बुनियादी ढांचे के सिद्धांत का उल्लंघन है क्योंकि चिकित्सा और कानून, दोनों को महान पेशा माना जाता है।"

याचिका में दावा किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों को अलग, एकांत, गैर-सामाजिक जीवन जीने देना 'न्यायपालिका के भारतीयकरण' के खिलाफ है, जिसकी परिकल्पना चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमाना ने की थी।

अदालत ने आदेश में कहा, "पद्म पुरस्कार या राज्य पुरस्कार केंद्र या राज्य सरकार के विवेक पर दिए जाते हैं और किसी भी व्यक्ति को यह अनुरोध करने का अधिकार नहीं है कि उसे इस प्रकार पुरस्कार दिए जाएं। याचिका में योग्यता नहीं होने के कारण खारिज किया जाता है।"

केस शीर्षक: डॉ विनोद जी कुलकर्णी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

केस नंबर: डब्ल्यूपी 19426/2021

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