हाईकोर्ट ने ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टरों के साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार करने के लिए प्रोबेशन के दौरान सेवा से हटाए गए पंजाब के न्यायिक अधिकारी को बहाल किया
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट को बहाल करने का निर्देश दिया, जिन्हें कैदी की मौत की जांच कर रहे ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टरों के साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार करने के लिए प्रोबेशन अवधि के दौरान सेवा से हटा दिया गया था।
कथित घटना के वीडियो क्लिप के आधार पर हाईकोर्ट की सतर्कता समिति ने निष्कर्ष निकाला था कि न्यायाधीश ने डॉक्टरों के साथ दुर्व्यवहार किया और कहा कि उनका आचरण न्यायिक अधिकारी के लिए अनुचित है।
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने कहा,
"याचिकाकर्ता को जो कथित रूप से परिवीक्षाधीन है, सेवा से मुक्त करना दंडात्मक होने के साथ-साथ कलंकपूर्ण भी है। वह भी साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी में निहित आदेश का पालन किए बिना।"
न्यायालय ने कहा कि न्यायाधीश को सेवा से मुक्त करने से पहले पूरी जांच करने का अधिकार है और समिति को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए था।
यह टिप्पणियां नजीम सिंह की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए की गईं, जिन्होंने 2015 में पंजाब सिविल सेवा न्यायिक परीक्षा उत्तीर्ण की थी। वर्ष 2016 में न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त हुए थे।
जब सिंह चंडीगढ़ में तैनात थे तब लुधियाना की सेंट्रल जेल के अधीक्षक ने 2018 में चंडीगढ़ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) को पत्र संबोधित किया था, जिसमें PGMER में कैदी की मौत की सूचना दी गई थी।
चंडीगढ़ में उनके अस्थमा और एड्स से पीड़ित होने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। न्यायिक मजिस्ट्रेट से जांच की कार्यवाही करवाने का भी अनुरोध किया गया था।
सीजेएम ने याचिकाकर्ता को कैदी की मौत के संबंध में जांच कार्यवाही करने का निर्देश दिया था।
तदनुसार याचिकाकर्ता ने कैदी की मौत के कारण का पता लगाने के लिए शव परीक्षण करने हेतु डॉक्टरों से युक्त मेडिकल बोर्ड का गठन किया।
हालांकि उक्त मेडिकल बोर्ड के सदस्यों द्वारा PGIMER चंडीगढ़ के निदेशक को शिकायत की गई थी, जिसमें न्यायाधीश के खिलाफ कदाचार के आरोप लगाए गए थे।
परिणामस्वरूप रजिस्ट्रार (सतर्कता) द्वारा जांच की गई, जिन्होंने तब उच्च न्यायालय के ओएसडी (सतर्कता) को आरोपों की जांच करने के बाद एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
अनुशासन समिति की बैठक बुलाई गई। इसने डॉक्टर को बुलाया और कथित दुर्व्यवहार की वीडियो क्लिप पर विचार किया, जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि न्यायाधीश को सेवा से मुक्त कर दिया जाना चाहिए।
न्यायाधीश की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट ने कहा कि जांच में कई खामियां हैं, जैसे कि बोर्ड के केवल एक डॉक्टर को बुलाया गया। वीडियो क्लिप भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी के तहत आवश्यक प्रमाण पत्र द्वारा समर्थित नहीं थी।
बयानों को सुनने के बाद न्यायालय ने जांच की बैठकों के विवरण का अवलोकन किया और पाया कि न्यायाधीश की सेवा को पूर्ण जांच किए बिना ही समाप्त कर दिया गया, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का भी उल्लंघन किया गया। आदेश घोर मनमानी के दोष से भरा हुआ था।
न्यायालय ने कहा कि शिकायतकर्ता डॉक्टरों में से केवल एक को ही जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने के लिए बुलाया गया था, जबकि अन्य डॉक्टरों को भी उपस्थित रहने के लिए बुलाया नहीं गया था।
पीठ ने कहा कि वीडियो क्लिप को केवल प्रस्तुत करने पर स्वीकार कर लिया गया,
"वह भी पूर्ण जांच किए बिना लेकिन इसका बुरा परिणाम यह हुआ कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पूरी तरह से उल्लंघन हुआ।”
वी.पी. आहूजा बनाम पंजाब राज्य मामले में यह रेखांकित किया गया,
"अस्थायी कर्मचारी की तरह परिवीक्षाधीन व्यक्ति भी कुछ सुरक्षा का हकदार है। उसकी सेवाओं को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना दंडात्मक तरीके से समाप्त नहीं किया जा सकता।"
यह देखते हुए कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया, न्यायालय ने न्यायाधीश को तत्काल सेवा की निरंतरता और मौद्रिक लाभों को छोड़कर सभी परिणामी लाभों के साथ बहाल करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल- नजीम सिंह बनाम पंजाब राज्य और अन्य।