इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1984 के दंगों में पत्नी और बेटी को खोने वाले 84 वर्षीय व्यक्ति को मुआवजे का भुगतान न करने पर यूपी सरकार के सचिव से हलफनामा मांगा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1984 के सिख विरोधी दंगों में अपनी पत्नी और बेटी के नुकसान के मुआवजे की मांग करने वाले 84 वर्षीय व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सचिव, गृह (सांप्रदायिक नियंत्रण सेल), यूपी सरकार से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा।
जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस विवेक कुमार सिंह की खंडपीठ ने प्यारा सिंह की याचिका पर यह आदेश पारित किया, क्योंकि यह पाया गया कि याचिकाकर्ता का दावा स्वीकार किया गया और मामला 2018 से लंबित है।
प्यारा सिंह की पत्नी और बेटी (जो सिख समुदाय से हैं) को 1984 के दंगों में बेरहमी से मार दिया गया। इसके बाद 2006 में भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने नीति तैयार की, जिसे "पुनर्वास पैकेज की स्वीकृति" के रूप में जाना जाता है। इस नीति के अनुसार, राज्य सरकार ने प्रत्येक मृतक को 20,000/- रूपये का (याचिकाकर्ता को 40,000/- रूपए मुआवजा प्रदान किया।
वर्ष 2015 में राज्य सरकार ने मुआवजे को बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया। हालांकि, याचिकाकर्ता का मामला है कि राशि में अंतर को याचिकाकर्ता के पक्ष में जारी नहीं किया गया। राशि में अंतर की रिहाई की मांग करते हुए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया।
यह देखते हुए कि मामला वर्ष 2018 से लंबित है, हाईकोर्ट सुनवाई की अगली 8 फरवरी को सचिव, गृह (सांप्रदायिक नियंत्रण प्रकोष्ठ), उ.प्र. सरकार से जवाबी हलफनामा मांगा।
उपस्थितिः याचिकाकर्ता के वकील दिनेश राय और प्रतिवादी के वकील सी.एस.सी. पी के श्रीवास्तव पेश हुए।
केस टाइटल- प्यारा सिंह बनाम भारत संघ और 3 अन्य [WRIT - C No. - 37388/2018]
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