''कानून के शासन के लिए कोई सम्मान नहीं'': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'दुर्भावनापूर्ण' गुंडा एक्ट कार्यवाही शुरू करने के लिए गोरखपुर के डीएम पर 5 लाख का जुर्माना लगाया

Update: 2022-11-19 08:45 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को गोरखपुर के जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय पर एक व्यक्ति के खिलाफ यूपी गुंडा अधिनियम के तहत 'दुर्भावनापूर्ण' कार्यवाही शुरू करने के लिए पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। इस व्यक्ति को उसके स्वामित्व वाली संपत्ति को खाली करने और इसे जिला प्रशासन के पक्ष में करने के लिए मजबूर करने का प्रयास किया जा रहा है।

जस्टिस सुनीत कुमार और जस्टिस सैयद वैज मियां की खंडपीठ ने राज्य सरकार को मामले की जांच कराने और गोरखपुर के तत्कालीन दोषी जिला मजिस्ट्रेट के. विजयेंद्र पांडियन के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच शुरू करने का भी निर्देश दिया है।

संक्षेप में मामला

यह मामला गोरखपुर में 5 पार्क रोड पर स्थित 30,000 वर्ग फुट के बंगले से संबंधित है, जिसका मालिकाना हक याचिकाकर्ता के पास है। वर्ष 1999 में, तत्कालीन डीएम ने एक फ्रीहोल्ड डीड के माध्यम से याचिकाकर्ता को संपत्ति हस्तांतरित कर दी थी।

फ्रीहोल्ड डीड के निष्पादन के समय, इस परिसर पर व्यापार कर विभाग का कब्जा था,जिसने इस परिसर को किराए पर ले रखा था और जब उसने किराए के भुगतान में चूक की, तो याचिकाकर्ता ने बेदखली की मांग के साथ-साथ किराए के बकाया की वसूली के लिए एक दीवानी मुकदमा दायर किया।

व्यापार कर विभाग को बेदखल करने का निर्देश देते हुए मुकदमा आंशिक रूप से तय किया गया था, हालांकि, व्यापार कर विभाग ने परिसर खाली नहीं किया था। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से निष्पादन अदालत को एक महीने की अवधि के भीतर निष्पादन का काम पूरा करने का निर्देश प्राप्त किया। हालांकि व्यापार कर विभाग इस विवाद को सुप्रीम कोर्ट तक ले गया, लेकिन उसे इस मामले में कोई राहत नहीं मिली।

अंततः 30 नवंबर 2010 को परिसर का कब्जा याचिकाकर्ता को सौंप दिया गया और उसने संपत्ति पर निर्माण शुरू कर दिया। इसका जिला प्रशासन ने विरोध किया था। उसने फिर से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां कोर्ट ने सिटी मजिस्ट्रेट को संपत्ति के शांतिपूर्ण कब्जे में हस्तक्षेप करने से रोक दिया था।

वाद के लंबित रहने के दौरान, उपायुक्त (प्रशासन) व्यापार कर विभाग,गोरखपुर द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 189, 332, 504, 506 के तहत एक एफआईआर दर्ज करवा दी गई, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसने डीसी को धमकी दी थी। हालांकि, इस एफआईआर में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से 'कोई जबरदस्ती कार्रवाई नहीं' करने का आदेश प्राप्त किया।

इसके अलावा, 10 अप्रैल, 2019 को रात लगभग 10.00 बजे, वर्दी में 10-12 पुलिस अधिकारी, सादी पोशाक में 6-7 अधिकारियों के साथ कथित तौर पर याचिकाकर्ता के घर गए और फर्जी मुठभेड़ में जान से मारने की धमकी दी और यह पूरा प्रकरण सीसीटीवी में रिकॉर्ड हो गया।

अगले ही सुबह जिला मजिस्ट्रेट गोरखपुर ने याचिकाकर्ता के खिलाफ उत्तर प्रदेश गुंडा एक्ट की धारा 3/4 के तहत नोटिस जारी कर दिया। उसी को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने वर्तमान रिट याचिका हाईकोर्ट में दायर की है।

हाईकोर्ट की टिप्पणियां

शुरुआत में, कोर्ट ने नोट किया कि जिला प्रशासन इस तथ्य से असंतुष्ट था (शुरुआत से) कि याचिकाकर्ता ने विवादित संपत्ति को प्राप्त/खरीदा है जो एक प्रमुख स्थान पर है और इस प्रकार, जिला प्रशासन ने वर्ष 2002 में 1999 के फ्रीहोल्ड डीड (याचिकाकर्ता के पक्ष में) को रद्द करने की मांग करते हुए एक मुकदमा भी दायर किया था।

कोर्ट ने आगे कहा कि यूपी सरकार ने (मई 2009 में) डीएम गोरखपुर को फ्रीहोल्ड डीड को रद्द करने की मांग वाला मुकदमा वापस लेने के लिए एक पत्र लिखा था। 2006 में भी यूपी सरकार ने वाद वापस लेने के लिए जिला मजिस्ट्रेट को पत्र लिखा था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।

इस पृष्ठभूमि को देखते हुए अदालत ने कहा कि  मामले के तथ्य जिला मजिस्ट्रेट द्वारा की गई ज्यादती और शक्ति के घोर दुरुपयोग को दर्शाते हैं क्योंकि उन्होंने याचिकाकर्ता के खिलाफ दायर मुकदमा वापस लेने के लिए राज्य सरकार द्वारा बार-बार जारी किए गए आदेशों का पालन करने से इनकार कर दिया था।

कोर्ट ने कहा,

''...प्रथम दृष्टया, हम आश्वस्त हैं कि याचिकाकर्ता के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही न केवल दुर्भावनापूर्ण है, बल्कि विवादित संपत्ति के संबंध में याचिकाकर्ता को परेशान करने के लिए है, जो कानूनी रूप से याचिकाकर्ता के साथ निहित है। इसके अलावा, प्रतिवादी का आचरण (विशेष रूप से दूसरे प्रतिवादी, जिला मजिस्ट्रेट, गोरखपुर) स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है कि उसके मन में नियम और कानून के लिए कोई सम्मान नहीं है और वह खुद के लिए एक कानून बन गया है ... कानूनी कार्यवाही में विवादित संपत्ति प्राप्त करने में विफल रहने पर, दूसरे प्रतिवादी ने  आपराधिक प्रशासन के मंच का दुरुपयोग करने के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ यूपी गुंडा अधिनियम लागू करने का सहारा लिया। यहां ऊपर उल्लिखित तथ्य, बिना किसी अनिश्चित शब्दों के, दूसरे प्रतिवादी के आचरण को दर्शा रहे हैं। दूसरे प्रतिवादी ने खुद को दीवानी और आपराधिक परिणामों के लिए उजागर किया है।''

इन परिस्थितियों में न्यायालय ने गोरखपुर के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी गुंडा एक्ट नोटिस को निरस्त करते हुए डीएम गोरखपुर के कार्यालय पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया है। जो आदेश की तारीख से 10 सप्ताह के भीतर हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति के पास जमा कराना होगा। कोर्ट ने गोरखपुर के तत्कालीन डीएम विजयेंद्र पांडियन के खिलाफ भी जांच शुरू करने का आदेश दिया है।

केस टाइटल - कैलाश जायसवाल बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. व 3 अन्य,आपराधिक मिश्रित रिट याचिका संख्या - 10241/2019

साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (एबी) 494

आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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