''स्वेच्छा से प्रेमी के साथ जाने वाली वयस्क लड़की को हिरासत में रखने का कोई कारण नहीं'': बॉम्बे हाईकोर्ट ने बेटी और उसके प्रेमी को परेशान करने पर पिता के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी

Update: 2021-04-03 09:30 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट (औरंगाबाद बेंच) ने बुधवार (31 मार्च) को उस वयस्क  लड़की को हिरासत करने से इनकार कर दिया (जो 20 वर्षीय व्यक्ति के साथ चली गई थी), जो उसके पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के बाद अदालत में पेश हो गई थी।

न्यायमूर्ति रवींद्र वी घुगे और न्यायमूर्ति भालचंद्र यू देबदवार की पीठ एक सी डी चव्हाण (लड़की के पिता) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दावा किया गया था कि उनकी बेटी दिसंबर 2020 में एक व्यक्ति के साथ चली गई थी और तब से लापता है।

हाईकोर्ट के समक्ष लड़की का बयान

31 मार्च को, लापता लड़की अपने आप कोर्ट में पेश हुई और कोर्ट ने उसकी पहचान सत्यापित की और पता लगाया कि वह 18 साल और छह महीने की थी।

इसके अलावा, उसने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि वह प्रतिवादी नंबर 5 (जिस लड़के के साथ उसने अपना घर छोड़ दिया) से अप्रैल 2000 से प्यार करती थी वह वर्तमान में अपनी मर्जी से उस लड़के के साथ रह रही है, क्योंकि दोनों वयस्क हैं।

उसने यह भी बताया कि वह प्रतिवादी नंबर पांच की शादी योग्य उम्र यानी 21 साल होने के बाद शादी करने की योजना बना रहे हैं और प्रतिवादी नंबर पांच 29 अप्रैल 2021 को 21 साल का हो जाएगा।

गौरतलब है कि उसने कोर्ट से आग्रह भी किया था कि उसके वर्तमान निवास स्थान का उल्लेख आदेश में न किया जाए, क्योंकि उसे आशंका है कि उसके पिता (याचिकाकर्ता) उन्हें ट्रैक करेंगे और उन्हें शारीरिक नुकसान पहुंचाएंगे, क्योंकि उसके घर से चले जाने के कारण वह गुस्से में हैं।

उसने आगे यह भी बताया कि उसके पिता ने लड़के के पिता के साथ मारपीट की थी क्योंकि उनका बेटा मेरे साथ रह रहा है।

इसके अलावा, उसने सुरक्षा की भी मांग की क्योंकि उसने गंभीरता से स्वीकार किया कि याचिकाकर्ता (उसके पिता) उसे और साथ ही लड़के और उसके माता-पिता को शारीरिक नुकसान पहुंचाएगा।

पूछताछ किए जाने पर, उसने अदालत को यह भी सूचित किया कि 21 दिसंबर 2020 को प्रतिवादी नंबर 5 के साथ स्वेच्छा से अपना घर छोड़ने के बाद, आज तक उसे कोई शारीरिक नुकसान या शारीरिक शोषण या पीड़ा नहीं दी गई है।

इसके अलावा, उसने स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया कि वह अपने पिता से मिलने या उससे बात करने की इच्छा नहीं रखती है और उसे उसके पिता या मां से मिलने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए और वह अपने माता-पिता के घर वापस भी नहीं जाना चाहती है।

कोर्ट का आदेश

बयान दर्ज करने के बाद, न्यायालय ने यह निर्देश देना उचित समझा कि,

''अगर लापता लड़की या प्रतिवादी नंबर 5 को कोई शारीरिक नुकसान होता है और अगर वे आरोप लगाते हैं कि याचिकाकर्ता उक्त चोट या नुकसान का कारण है, तो याचिकाकर्ता (लड़की का पिता) कानून के अनुसार कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होगा।''

न्यायालय ने यह टिप्पणी प्रतिवादी नंबर पांच के पिता द्वारा अम्बेजोगाई पुलिस स्टेशन (ग्रामीण) में आईपीसी की धारा 365, 342, 343, 324, 323, 506 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दर्ज करवाए गए अपराध संख्या 3/2021 के मद्देनजर की है।

न्यायालय ने यह भी कहा कि,

''यह बताने की आवश्यकता है कि हम प्रतिवादी संख्या 5 के पिता, अर्थात, भगवान सोनार से अपेक्षा करते हैं कि वह याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई अपराध न करके संयम और पारस्परिकता दिखाए।''

अंत में, न्यायालय ने उल्लेख किया,

''चूंकि लापता लड़की एक वयस्क है और प्रतिवादी नंबर 5 भी एक वयस्क है, हालांकि विवाह योग्य उम्र का नहीं है, लेकिन फिर भी यहां रिकाॅर्ड किए गए लड़की के विशिष्ट जवाबों को ध्यान में रखते हुए हमारे पास लापता लड़की को हिरासत में लेने का कोई कारण नहीं है।''

उपरोक्त टिप्पणियों/निर्देशों के साथ, इस याचिका का निस्तारण कर दिया गया।

केस का शीर्षक - चंद्रशेखर डी चव्हाण बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य [Criminal Writ Petition No. 165 of 2021]

ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



Tags:    

Similar News