ट्रांसजेंडर समुदाय को मौलिक मानवाधिकार से वंचित करने का कोई कारण नहीं : केरल हाईकोर्ट ने उन्हें राशन कार्ड और मुफ़्त दवाइयाँ देने को कहा
एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति की जनहित याचिका पर केरल हाईकोर्ट ने केरल राज्य सरकार को राज्य की नीतियों के अनुरूप दवाओं की मुफ़्त आपूर्ति सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस मणिकुमार और जस्टिस शाजी पी चैली ने कहा,
"जब भी ट्रांसजेंडर समुदाय का कोई व्यक्ति जेंडर पहचान पत्र और राशन कार्ड जारी करने वाले ज़िला अथॉरिटी या नोडल अधिकारी के पास जाते हैं तो उन्हें पहचान पत्र और राशन कार्ड जारी करने के लिए संतुष्ट होने पर शीघ्र क़दम उठाए जाएं। "
अदालत ने कहा कि
"याचिकाकर्ता के बयान में जिन पांच लोगों का ज़िक्र आया है, अगर वे ज़िला अथॉरिटी के पास अपने मुद्दों को हल के लिए जाते हैं तो उन पर ग़ौर किया जाना चाहिए और उस व्यक्ति को ऐसी सभी ज़रूरी वस्तुएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए और उनकी शिकायतों का निपटारा होना चाहिए।"
यह याचिका अनीरा कबीर ने दाख़िल की है।
याचिकाकर्ता ने National Legal Service Authority v. Union of India and Other s [(2014) 5 SCC 438] मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का हवाला दिया और कहा कि कोरोना माहामारी के कारण लागू लॉकडाउन के कारण केरल में ट्रांसजेंडर समुदाय को आवश्यक वस्तुओं, दवा और संबंधित इलाज के अभाव को झेलना पड़ रहा है। फिर पुलिस से उन्हें यातना दिए जाने की धमकियाँ मिल रही हैं।
केरल सरकार का कहना था कि राज्य विशेषकर इस तरह के गंभीर संकट के दौरान अपने ही लोगों के साथ दो तरह का व्यवहार नहीं करती है, राज्य ट्रांसजेंडर समुदाय की नीतियों के बारे में उदार है और वह उनके सशक्तिकरण के लिए अधिकारों को लागू करनेवाला देश का पहला राज्य है।
राज्य ने ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं के बारे में बताया –
· राज्य स्तर पर ट्रांसजेंडर जस्टिस बोर्ड और ज़िला स्तर पर ट्रांसजेंडर जस्टिस कमिटी बनाई गई है।
· उनको स्वरोज़गार, शादी के लिए मदद, वित्तीय सहायता और लैंगिक ऑपरेशन के लिए योजनाओं के तहत मदद और संरक्षण दी जा रही है।
· ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के लिए हेल्पलाइन और वज़ीफ़ा शुरू किया गया है।
· होर्मोन थेरेपी के इलाज की सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
· इस समुदाय के लोगों के अस्थाई निवास के लिए घरों की व्यवस्था की गई है जो सामाजिक न्याय विभाग द्वारा चार ज़िलों – तिरुवनंतपुरम, कोट्टायम, एर्नाकुलम और कोझिकोड में चलाए जा रहे हैं।
अदालत ने कहा कि याचिका में ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के हनन के बारे में किसी विशेष घटना का ज़िक्र नहीं किया गया है। राज्य सरकार ने प्रति-हलफ़नामे में कहा है कि जिला और राज्य स्तर पर सभी समितियाँ प्रभावी रूप से कार्य कर रही है। अगर वे भोजन, दवाई की अनुपलब्धि, पुलिस प्रताड़ना या कोई भी अन्य शिकायत करते हैं तो उसका तत्काल समाधान किया जाएगा।
अदालत ने कहा,
"हमारा मानना है कि राज्य सरकार के द्वारा पर्याप्त कदम उठाये गए हैं। अब ये विभिन्न और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों पर है कि वे उचित अथॉरिटी से संपर्क करें और अपने अधिकार सुनिश्चित करें। इसके बावजूद कि याचिका में कहा गया है कि पुलिस ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को परेशान करती है, लेकिन हमें इस याचिका में ऐसी किसी घटना के बारे में कोई ज़िक्र नहीं दिखा है कि हम पुलिस अधिकारियों को उचित कार्रवाई का निर्देश दे सकें।"
अदालत ने आगे कहा कि यह जब भी कोई व्यक्ति किसी संवैधानिक न्यायालय में जनहित याचिका पेश करता है तो उसे पर्याप्त तथ्य, और मटेरियल कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करने चाहिए ताकि कोर्ट राज्य और उसकी संस्थाओं को मुनासिब निर्देश दे सके।
अदालत ने कहा कि ट्रांसजेंडर समुदाय की पहचान का मामला निजता से जुड़ा है और अगर कोई व्यक्ति संबंधित अथॉरिटी के पास जाता है तो यह अथॉरिटी का दायित्व है कि वह उन्हें उनका दस्तावेज जारी करे।
अदालत ने कहा,
"ट्रांसजेंडर समुदाय के किसी व्यक्ति को उनके मौलिक मानवाधिकार से वंचित करने का कोई कारण नहीं है। पर इसके लिए ज़रूरी है कि समुदाय के लोग सरकार द्वारा गठित वैधानिक अथॉरिटी के माध्यम से अपने अधिकार को सुरक्षित करें और इस मसले की विशेषता को देखते हुए वैधानिक अथॉरिटी को निजता, पसंद के अधिकार के कारण कठिनाई आ सकती है क्योंकि ये अधिकार जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के तहत संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन आते हैं।"
इस मामले में याचिकाकर्ता की पैरवी तुलसी के. राज ने की जबकि राज्य की पैरवी अतिरिक्त महाधिवक्ता रंजीत थंपन और सरीन जॉर्ज आईपीई ने की।
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