'कोई साक्ष्य नहीं, केवल विलंबित गवाहों के बयान': दिल्ली दंगों के मामले में उमर खालिद ने अदालत में कहा

Update: 2025-10-17 13:12 GMT

JNU के पूर्व स्टूडेंट उमर खालिद ने शुक्रवार को दिल्ली कोर्ट को बताया कि UAPA के तहत दिल्ली दंगों की व्यापक साजिश का मामला किसी भौतिक साक्ष्य का मामला नहीं है, बल्कि इसमें घटना के महीनों बाद दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज किए गए बयान शामिल हैं।

सीनियर एडवोकेट त्रिदीप पैस ने खालिद की ओर से कड़कड़डूमा कोर्ट के एडिशनल सेशन जज समीर बाजपेयी के समक्ष यह दलील दी और खालिद के खिलाफ आरोप तय करने का विरोध किया।

यह मामला दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ द्वारा जांच की गई FIR नंबर 59/2020 से संबंधित है। 2020 मामले में 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों में एक बड़ी साजिश का आरोप लगाया गया।

पेस ने कहा,

"आप घटना के 11 महीने बाद किसी को भी पकड़ सकते हैं, उससे कुछ भी कहलवा सकते हैं और यह 2020 का मामला है। अभियोजन पक्ष का कहना है कि मुझे सबूतों की ज़रूरत नहीं है। मुझे बयानों की ज़रूरत है। भाषण के अलावा, यह बिना किसी भौतिक साक्ष्य का मामला है।"

उन्होंने दलील दी कि अगर अदालत सिर्फ़ अभियोजन पक्ष द्वारा दर्ज बयानों पर ही गौर करती है तो मामला आगे नहीं बढ़ेगा और 2020 से जिस तरह से चल रहा है, वैसा ही रहेगा।

उन्होंने तर्क दिया,

"अगर आपके पास सिर्फ़ बयान हैं तो मामला आगे कहां जाएगा? यह आगे नहीं बढ़ेगा। यह पिछले पांच सालों से जिस तरह से चल रहा है, वैसा ही रहेगा। हम इन अल्फ़ा, बीटा, गामा (संरक्षित गवाहों) को लेकर उनसे पूछताछ करेंगे? हमें कहां से मिलेंगे? यह ऐसा मामला नहीं है, जिसे FIR के तौर पर भी आगे बढ़ाया जाना चाहिए था।"

पेस ने अपनी दलील दोहराई कि खालिद के संबंध में कोई बरामदगी या भौतिक साक्ष्य नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि खालिद के ख़िलाफ़ धन जुटाने का कोई आरोप नहीं है। उन्होंने कहा कि 751 FIR में से एक को छोड़कर मैं किसी भी मामले में आरोपी नहीं हूं।

पाईस ने यह भी स्पष्ट किया कि जिन चार व्हाट्सएप ग्रुपों में खालिद को जोड़ा गया, उनमें से उसने केवल DPSG ग्रुप में तीन मैसेज भेजे थे। उन्होंने कहा कि हालांकि उसे एमएसजे ग्रुप में जोड़ा गया। हालांकि, उसने कोई मैसेज नहीं भेजा और न ही कोई संदेश उसे संबोधित किया गया।

इसके अलावा, पाईस ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष द्वारा खालिद के खिलाफ बयान दर्ज करने का समय "बेहद संदिग्ध" था, क्योंकि ये बयान उसकी गिरफ्तारी के महीनों या एक साल बाद दर्ज किए गए।

उन्होंने कहा,

"आमतौर पर FIR दर्ज होने से पहले किसी न किसी तरह का सबूत होना चाहिए। मैं यह नहीं कह रहा कि अगर आपके पास सबूत हैं तो आप FIR दर्ज नहीं कर सकते। लेकिन आपने मेरा नाम लिया है और इसे एक साजिश बताया...।"

पाईस ने अभियोजन पक्ष के एक संरक्षित गवाह के बयान का हवाला दिया, जिसमें यह आरोप लगाया गया कि दंगों की पूर्व साजिश की जानकारी थी।

"मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि आप ध्यान रखें कि इससे पहले कोई सबूत नहीं था। साज़िश मैंने ही रची है। मुझे लगता है कि धारा 161 के तहत बयान दर्ज करना तुरंत होगा। देखिए मार्च में आप FIR दर्ज करते हैं। 3 अप्रैल को पहला बयान दर्ज होता है। अगर आपके पास साज़िश का इतना पक्का बयान होता... मैं यह नहीं कह रहा हूं कि अगर आपको 6 मार्च को पहले साज़िश की जानकारी मिलती है तो क्या आप उसी शाम गवाह से गवाही नहीं करवाएंगे?

मान लीजिए कि 6 मार्च से पहले आपके पास कोई जानकारी नहीं है, जो पुलिसवालों की गलती है, तो क्या आप 6 मार्च की शाम को अपने "शिकायतकर्ता" से यह नहीं कहलवाएंगे कि क्या है? आपका मुख्य साज़िश का गवाह सितंबर में सामने आता है, जबकि उसने मई में बात की थी।"

उन्होंने तर्क दिया,

"आपके पास ऐसा गवाह कैसे है, जो चक्का जाम का समर्थन करता है, इस साज़िश की सभी गतिविधियों में शामिल है और फिर भी सुविधाजनक रूप से गवाह बना हुआ है? वह वहां किसी छद्म या जासूस के तौर पर नहीं जाता। वह इस गतिविधि का हिस्सा है। वह आरोपी कैसे नहीं है? वह सरकारी गवाह नहीं है।"

इस मामले की सुनवाई 28 और 29 अक्टूबर को जारी रहेगी।

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