''कोई भी व्यक्ति चेहरे पर मास्क के बिना अपने घर के बाहर नहीं दिखना चाहिए'' : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, 'अगर आज कार्रवाई नहीं की तो हम अपने वंशजों का सामना करने नहीं कर पाएंगे'
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार (24 सितंबर) को पूरे उत्तर प्रदेश राज्य के लिए एक परमादेश जारी करते हुए कहा है कि ''कोई भी व्यक्ति अपने घर के बाहर चेहरे पर मास्क के बिना नहीं दिखना चाहिए और उसे यह भी ध्यान रखना होगा कि मास्क उसके नाक और मुंह दोनों को ढक रहा हो।''
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ क्वारंटीन केंद्रों में अमानवीय स्थिति और कोरोना पाॅजिटिव को बेहतर उपचार प्रदान करने के मामले में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
डिवीजन बेंच ने इस मामले को पांच मुद्दों पर सुनवाई की और कुछ निर्देश जारी किए। ये पांच मुद्दे इस प्रकार हैं-
1. सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण और पार्किंग का संकट
2. टाउन वेंडिंग समिति द्वारा कार्य का निर्वहन
3. उपयोग में आ चुके मास्क का निपटारा
4. आम जनता द्वारा मास्क पहनना
5. COVID19 के दौरान चिकित्सा सुविधा।
मुद्दा संख्या 1- सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण और पार्किंग का संकट
न्यायालय का निर्देश - न्यायालय ने निर्देश दिया है कि प्रयागराज में सिविल लाइंस क्षेत्र में वाहनों की अवैध पार्किंग की अनुमति नहीं दी जा सकती है क्योंकि वहां पर पहले से ही एक पार्किंग स्थल तय किया जा चुका है और उसके लिए एक विशाल भवन का निर्माण भी कर दिया गया है।
इसके लिए, अदालत ने नगर निगम और व्यापर मंडल को निर्देश दिया है कि वे इस मुद्दे पर चर्चा करें और यदि व्यापर मंडल को उसके बाद भी कोर्ट की तरफ से जारी निर्देश (अदालत ने अनाधिकृत रूप से पार्क किए गए वाहनों से सार्वजनिक मार्ग से हटाने के लिए निर्देश जारी किया है)के संबंध में कोई समस्या रहती है तो वे अपनी शिकायत के निवारण के लिए कोर्ट के समक्ष उचित आवेदन दायर कर सकते हैं।
हालांकि कोर्ट ने निर्देश दिया है कि पार्किंग के मामले का दो सप्ताह में हल निकाला जाए।
मुद्दा संख्या 2-टाउन वेंडिंग समिति द्वारा कार्य का निर्वहन
न्यायालय का निर्देश - न्यायालय ने निर्देश दिया है कि टाउन वेंडिंग कमेटी को तुरंत कार्रवाई करनी होगी और पेंडिंग जोन के संबंध में अप्रूवल देने के काम को आज से एक सप्ताह के भीतर पूरा करना होगा और इसके बाद तीन दिनों के भीतर अलॉटमेंट करने के काम को निपटाया जाए। इसके साथ-साथ वेंडिंग जोन की पहचान करने का काम भी किया जाए और उसे भी अगले 15 दिनों के भीतर पूरा किया जाए।
आवंटन की मंजूरी के बारे में एक व्यापक रिपोर्ट 1 अक्टूबर 2020 को या उससे पहले प्रस्तुत की जाए और नए वेंडिंग जोन की पहचान करने के लिए व उनको अप्रूवल या मंजूरी देने संबंधी सारा काम भी अगले 15 दिनों में पूरा कर लिया जाए। इस संबंध में भी रिपोर्ट 17 अक्टूबर 2020 तक दायर कर दी जाए।
मुद्दा संख्या 3-उपयोग में आ चुके मास्क का निपटारा
न्यायालय का निर्देश - न्यायालय ने कहा कि COVID19 के खिलाफ लड़ाई संयुक्त रूप से सभी के द्वारा मिलकर लड़ी जानी है। इसलिए पीठ ने निर्देश दिया है कि नगर निगम विभिन्न व्यावसायिक स्थानों के सभी वाणिज्यिक दुकानदारों को सूचित कर दें कि वे अपने यहां उपयोग में आ चुके मास्क के निपटान के लिए डिस्पोजेबल बिन रख लें। जिसके बाद नगर निगम प्रतिदिन इन डिस्पोजेबल बिन का खाली करवाने का काम करें।
यह भी निर्देश दिया गया है कि यदि दुकानदार कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों का उल्लंघन करते हैं, तो नगर निगम उन्हें नोटिस जारी करें और इसके लिए उनको उचित रूप से दंडित करें।
मुद्दा संख्या 4-आम जनता द्वारा मास्क पहनना
अदालत का निर्देश - हाईकोर्ट ने कहा कि, ''यदि हम आज कार्रवाई नहीं करते हैं, तो हम अपने पूर्वजों का सामना नहीं कर पाएंगे, वो हमेशा हमारे ऊपर सवाल उठाते रहेंगे कि हमने कोई अपेक्षित कार्रवाई क्यों नहीं की,जबकि हमारे पास इस तरह की कार्रवाई करने की शक्ति थी?''
कोर्ट ने कहा कि आज के समय में मानवता ने यह महसूस किया है कि इस महामारी को फैलने से रोकने के लिए उपलब्ध एकमात्र तरीका यह है कि सोशल डिस्टेंसिंग बनाकर रखी जाए और मास्क पहना जाए।
इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि वह जर्नल (न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन) में छपी स्टडी से सहमत है। जिसमें निष्कर्ष निकाला गया है कि "100% population masking" ही एकमात्र रणनीति है जिसके द्वारा हम इस महामारी के प्रसार को रोकने का प्रयास कर सकते हैं।
हालांकि अदालत ने महामारी के प्रसार को रोकने के लिए प्रशासन द्वारा उठाए गए कदमों और शहर में लोगों को समझाने व कई बार मास्क पहनने के लिए मजबूर करने के संबंध में पुलिस प्रशासन द्वारा उठाए गए कदमों पर कोई संदेह व्यक्त नहीं किया है।
परंतु न्यायालय ने अतिरिक्त महाधिवक्ता द्वारा रिकॉर्ड पर लाई गई तस्वीरों पर भी जरूर ध्यान दिया है। कोर्ट के निर्देश के बाद यह तस्वीरें पेश की गई थी। जिनमें विभिन्न सार्वजनिक स्थानों पर लोगों की विशाल सभाएं हो रही हैं और लोग भी आमतौर पर मास्क नहीं पहन रहे हैं।
इस संदर्भ में, न्यायालय ने पूरे उत्तर प्रदेश राज्य के लिए एक परमादेश जारी किया है कि कोई भी व्यक्ति अपने घर के बाहर चेहरे पर मास्क के बिना नजर नहीं आना चाहिए और उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि मास्क उसके मुंह व नाक को अच्छे से कवर कर रहा हो।
न्यायालय ने आगे निर्देश दिया है कि उत्तर प्रदेश राज्य के सभी जिलों के सभी पुलिस स्टेशनों में इस परमादेश का पालन करवाने के लिए टास्क फोर्स की तैनाती की जाए। प्रत्येक टास्क फोर्स में तैनात किए जाने वाले पुलिसकर्मियों की संख्या वर्तमान में तैनात किए गए पुलिस कर्मियों की संख्या से ज्यादा होनी चाहिए।
न्यायालय ने यह भी कहा है कि इस परमादेश का उल्लंघन करने पर कठोर दंड दिया जाएगा।
न्यायालय ने कहा कि पुलिस और प्रशासन यह कहकर अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते हैं कि लोगों को मास्क न पहनने के लिए दोषी ठहराया जाए। वे यह नहीं कह सकते कि उनके सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, मास्क नहीं पहने जा रहा हैं।
न्यायालय ने आगे यह भी कहा कि-
''लोगों और प्रशासन को यह महसूस करना चाहिए कि आज मास्क पहनना केवल उस व्यक्ति की सुरक्षा के लिए नहीं है जो इसे पहन रहा है बल्कि यह अब पूरे समाज की रक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है और अगर कोई व्यक्ति समाज के खिलाफ अपराध करता है, तो उसे दंडित किया जा सकता है। हम आगे यह भी निर्देश देते हैं कि जिस समय भी कोई व्यक्ति बिना मास्क के पाया जाता है तो राज्य की पुलिस को विभिन्न दंड कानूनों के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत उसके खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए।''
इसके अलावा, कोर्ट द्वारा नियुक्त एडवोकेट कमिश्नरों को निर्देश दिया गया है कि वे जोनल अधिकारियों और नगर आयुक्तों को ईमेल आईडी के माध्यम से रिपोर्ट करें। इन सभी को यह ईमेल आईडी कोर्ट में स्वयं नगर निगम की तरफ से पेश वकील श्री कौटिल्य ने प्रदान की थी। साथ ही कहा गया है कि वे टास्क फोर्स के काम की प्रतिदिन की अपनी रिपोर्ट ईमेल आईडी पर रजिस्ट्रार, लीगल सेल, हाईकोर्ट इलाहाबाद को भेजें। वहीं यह रिपोर्ट अतिरिक्त महाधिवक्ता को भी भेजी जाए।
मुद्दा संख्या 5-COVID19 के दौरान चिकित्सा सुविधा।
न्यायालय ने कहा कि जहां तक उपचार का संबंध है, यह स्पष्ट है कि सरकार के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद कमियां सामने आ रही हैं।
न्यायालय के समक्ष रखे गए विभिन्न तर्कों के आधार पर न्यायालय ने कहा कि कुछ निश्चित उपाय हैं जो महत्वपूर्ण हैं और उन्हें अपनाया जाना चाहिए -
(1) चिकित्सा सुविधाएं सभी को उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
(2) मेडिकल सहायता प्रदान करने के लिए गठित की गई टास्क फोर्स को बीमार लोगों के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि,
''कोई व्यक्ति उस व्यक्ति के दुख को समझ सकता है,जिसे दवाइयां और चिकित्सा सलाह मिलने की बजाय सिर्फ अधिकारियों से टेलीफोन कॉल प्राप्त हो रही हैं। अदालत ने कहा कि ये पूछताछ केवल खाली औपचारिकताएं हैं और यह पूछताछ करने वाले व्यक्ति की ओर से कोई काम पूरी ईमानदारी से नहीं किया जाता है। जिससे निश्चित रूप से दिखता है कि पोर्टल केवल नाम के लिए हैं और वास्तव में अपडेट नहीं किए जा रहे हैं।''
इन सबके अलावा न्यायालय ने यह भी पाया कि फोन कॉल पेशेवर कॉल सेंटरों की तरफ से किए जा रहे हैं जो संक्रमित व्यक्ति के उपचार में कोई दिलचस्पी नहीं रखते हैं। वह सिर्फ उनको मिलने वाले भुगतानों के बदले इस तरह के खाली फोन कॉल कर रहे हैं।
इस प्रकार, न्यायालय ने इस संबंध में प्रशासन को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि जो भी जानकारी एकत्रित की जाती है, वह उस व्यक्ति के नाम के सामने दर्ज की जानी चाहिए, जिसके संबंध में पूछताछ की गई है। वहीं पोर्टल को प्रतिदिन अपडेट किया जाए।
इन सबके अलावा न्यायालय के संज्ञान में यह समस्या भी आई थी कि यदि कोई व्यक्ति इन-होम आइसोलेशन में है और उसे सीटी स्कैन और एक्सरे करवाने की आवश्यकता होती है, तो कोई पैथलाजी उस रोगी को यह सुविधा नहीं देती है।
इसके लिए, न्यायालय ने आदेश दिया है कि यूपी राज्य के प्रत्येक जिले में एक ऐसा डेडिकेटिड क्लिनिक होना चाहिए (यह हर जिले के नगर पालिका के क्लीनिकों में बनाया जा सकता है) ,जहां एक व्यक्ति जो होम क्वारंटीन में है वह जा सकता है और अपना सीटी स्कैन या एक्स-रे करवा सकता है।
इस मामले की आगे की सुनवाई अब 28 सितंबर 2020 को सुबह 10ः00 बजे होगी।
आदेश की काॅपी यहां से डाउनलोड करें।