लुक आउट सर्कुलर जारी करने से पहले सब्जेक्ट को कोई नोटिस जारी नहीं किया जाना चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2022-08-30 05:16 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी कि लुक आउट सर्कुलर जारी करने से पहले उसके सब्जेक्ट में कोई नोटिस जारी नहीं किया जाना चाहिए।

जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,

"एलओसी के सब्जेक्ट के खिलाफ यात्रा के अधिकार में कटौती की जा रही है, इसलिए किसी भी समय उसे विदेश यात्रा से रोकने से पहले नहीं वह कम से कम एलओसी की प्रति के हकदार होगा, बल्कि केवल उस समय जब उसे विदेश में यात्रा करने से रोका गया हो।"

कोर्ट ने कहा,

"एलओसी को तभी पता चलेगा कि मौलिक अधिकार में शामिल रही यात्रा करने की उसकी स्वतंत्रता क्यों छीनी जा रही है।"

याचिकाकर्ता हर्षवर्धन राव के पर उसकी पत्नी द्वारा उसके खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत उसके बेटे का यौन शोषण करने का मामला दर्ज किया गया। इस साल मई में उसे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे, बैंगलोर में आप्रवासन अधिकारियों ने यह सूचित करते हुए रोक दिया कि चौथे प्रतिवादी (पुलिस उपायुक्त) ने अतिरिक्त सिटी सिविल एंड सेशन जज के समक्ष लंबित आपराधिक मामले के संबंध में उसके नाम पर एलओसी जारी किया है।

याचिकाकर्ता ने बाद में हाईकोर्ट द्वारा रोके जाने पर उसके खिलाफ कार्यवाही के आलोक में एलओसी को वापस लेने की मांग करते हुए कई अभ्यावेदन प्रस्तुत किए। इसके बावजूद, एलओसी को वापस नहीं लिया गया। इस प्रकार उसने एलओसी को वापस लेने के लिए परमादेश की प्रकृति में रिट जारी करने के लिए एक निर्देश की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया।

न्यायालय के निष्कर्ष:

सबसे पहले बेंच ने कहा,

"एलओसी कुछ परिस्थितियों में पुलिस या न्यायालय द्वारा जारी किया जाता है। इसलिए उसे प्रवर्तक के रूप में संदर्भित किया जाता है। उक्त एलओसी को निष्पादित करने के लिए एलओसी को आव्रजन ब्यूरो को प्रेषित किया जाता है और जिस व्यक्ति के खिलाफ एलओसी जारी किया जाता है, वह इसका सब्जेक्ट है। इसलिए प्रवर्तक सब्जेक्ट के खिलाफ एलओसी उत्पन्न करता है और इसे निष्पादक अर्थात ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन को प्रेषित करता है। यह इस बात का व्यापक ढांचा है कि एलओसी कैसे निष्पादित किया जाता है।"

कोर्ट ने आगे कहा,

"एक बार एलओसी जारी हो जाने के बाद आप्रवासन प्राधिकरण इस सब्जेक्ट को रोकने के लिए उक्त सर्कुलर से बाध्य हैं, चाहे वह किसी भी उद्देश्य के लिए देश से बाहर यात्रा कर रहा हो। एलओसी के निर्वाह तक ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन जब चाहेगा उसे देश से बाहर यात्रा करने से रोक देगा, क्योंकि इसे प्रवर्तक, राज्य पुलिस द्वारा वापस लेना या वापस लेना होता है।"

कोर्ट ने यह भी राय दी,

"इस प्रकार यह राज्य के हाथों में शक्तिशाली उपकरण है, जो आप्रवासन ब्यूरो को विदेश में एलओसी के सब्जेक्ट की यात्रा को रोकने के लिए निर्देशित करता है।"

यह देखते हुए कि एलओसी जारी करने के लिए वैधानिक मंजूरी पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 10ए और 10बी से जुड़ी हो सकती है, पीठ ने कहा,

"एलओसी जारी करने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि एलओसी का सब्जेक्ट पूछताछ या ट्रायल के लिए उपलब्ध हो।"

इस तर्क को खारिज करते हुए कि याचिकाकर्ता को एलओसी जारी करने के लिए अवसर या पूर्व नोटिस दिया जाना चाहिए, पीठ ने डॉ बावागुथुरघुराम शेट्टी बनाम ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन, आईएलआर 2021 केएआर 2963 के मामले में समन्वय बेंच के फैसले पर भरोसा किया और कहा,

"याचिकाकर्ता के एडवोकेट का यह तर्क कि एलओसी जारी करने से पहले एलओसी के सब्जेक्ट को नोटिस जारी किया जाना चाहिए, यह अस्वीकार करने योग्य है।"

खंडपीठ ने भारत सरकार की इस दलील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए कहा कि पकड़े जाने से पहले किसी भी समय एलओसी की एक प्रति सब्जेक्ट को प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है, पीठ ने कहा,

"उस समय जब उसे रोका जाता है और प्रवर्तक को सौंप दिया जाता है तो वह इस न्यायालय के सुविचारित दृष्टिकोण में यह जानने का हकदार है कि उसकी यात्रा क्यों रोकी जा रही है, उसके हाथों को एलओसी की प्रति सौंपी गई है। यहां एलओसी से निकलने वाले मामलों में केवल प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की आवश्यकता है।"

आगे यह कहा गया,

"चूंकि आक्षेपित अपराध (याचिकाकर्ता के खिलाफ) किसी भी सक्षम न्यायिक मंच द्वारा न तो ग्रहण किया गया है और न ही बुझाया गया, एलओसी को वापस लेने के निर्देश के लिए याचिकाकर्ता की प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ता इस तरह के सभी हकदार होंगे।"

कोर्ट ने यह भी जोड़ा,

"जमानत पर रिहा किए गए आरोपी उसे बताया जाना चाहिए कि उसकी यात्रा क्यों बाधित की जा रही है। इसलिए एलओसी के निष्पादन के लिए प्रवर्तक के अनुरोध के साथ एलओसी की प्रति की आपूर्ति अनिवार्य है। प्रवर्तक को प्रति प्रस्तुत करने के लिए और निष्पादक को किसी भी समय एलओसी के सब्जेक्ट को प्रस्तुत करना होगा, लेकिन उस समय जब एलओसी के सब्जेक्ट में कठोरता होगी।"

तद्नुसार कोर्ट ने याचिका का निस्तारण उपायुक्त को निर्देश देते हुए कहा कि वह लुकआउट सर्कुलर को वापस लेने और छह सप्ताह के भीतर उचित आदेश पारित करने की मांग करने वाले याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए अभ्यावेदन पर विचार करे।

केस टाइटल: हर्षवर्धन राव के वी. यूनियन ऑफ इंडिया

केस नंबर: 2022 की रिट याचिका संख्या 12185

साइटेशन: लाइव लॉ (कर) 342/2022

आदेश की तिथि: 24 अगस्त, 2022

उपस्थिति: याचिकाकर्ता के लिए एडवोकेट महेश एस; एएसजी एच. शांति भूषण, ए/डब्ल्यू सीजीसी चंद्रचूड़ आर1 और आर2 के लिए; एचसीजीपी के.एस.अभिजीत, आर3 और आर4 के लिए

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