"किसी भी राष्ट्र विरोधी गतिविधि में शामिल होने का सुझाव देने वाली कोई सामग्री नहीं": गुजरात हाईकोर्ट ने पासपोर्ट जब्त करने का आदेश रद्द किया

Update: 2022-09-05 13:24 GMT

गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में गुलामहुसेन दादामिया पीर नामक एक व्यक्ति के पासपोर्ट को जब्त करने आदेश को रद्द कर दिया। पासपोर्ट अधिकारियों ने उसका पासपोर्ट इस आधार पर रद्द किया था कि वह कुछ राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त है।

मामले में यह ध्यान देना दिलचस्प है कि पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 10(3)(सी) के प्रावधानों को लागू करके याचिकाकर्ता का पासपोर्ट जब्त नहीं किया गया था। उक्त प्रावधान के तहत किसी भी पासपोर्ट धारक का पासपोर्ट जब्‍त किया जा सकता है यदि वह किसी भी ऐसी गतिविधि में शामिल पाया जाता है, जो भारत की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा के हित के खिलाफ है।

बल्‍कि मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता का पासपोर्ट पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 10(3)(एच) के तहत जब्त किया गया था, जो पासपोर्ट धारक के खिलाफ एक अपराध के पंजीकरण के आधार पर पासपोर्ट को जब्त करने को संदर्भित करता है।

जस्टिस एएस सुपेहिया की पीठ ने कहा कि न तो किसी राष्ट्रविरोधी गतिविधि में याचिकाकर्ता की संलिप्तता का सुझाव देने वाली कोई सामग्री हाईकोर्ट के समक्ष पेश की गई थी और न ही प्रतिवादियों की ओर से कोई ऐसी सामग्री पेश की गई कि जिससे यह दिखे कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज किया गया था।

कोर्ट ने कहा,

"तीन सितंबर 2020 का आक्षेपित आदेश पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 10 (3) (एच) के प्रावधानों को संदर्भित करता है। चूंकि प्रतिवादी अधिकारियों ने कोई सामग्री प्रस्तुत नहीं की कि याचिकाकर्ता किसी भी आपराधिक अपराध में शामिल रहा है, इस संबंध में उन्होंने रिट-याचिका में केवल एक विशिष्ट बयान पेश किया था। इसलिए तीन सितंबर, 2020 के आक्षेपित आदेश द्वारा पूर्वोक्त प्रावधान का प्रयोग गलत है और इसे रद्द करने की आवश्यकता है।"

मामला याचिकाकर्ता गुलामहुसेन का पासपोर्ट जब्त करने से जुड़ा है। उसे फरवरी 2017 में पासपोर्ट सरेंडर करने के लिए कहा गया, जो उसने किया।

इसके बाद, वह अपने पासपोर्ट की वापसी की मांग वाले अधिकारियों को निर्देश देने के लिए हाईकोर्ट चले गए, और उन्हें संबंधित अधिकारियों के समक्ष अपने पासपोर्ट की वापसी के लिए एक नया आवेदन करने के लिए कहा गया और प्रतिवादी अधिकारियों को कानून के अनुसार निर्णय लेने का निर्देश दिया गया।

जब उसने आवेदन दिया तो पासपोर्ट अधिकारियों ने उसे एक अंडरटेकिंग देने के लिए कहा कि यदि उसके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं तो वह जानकारी प्रदान करेगा। उसने शपथ पत्र दिया कि उसके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया गया है, इस तथ्य के बावजूद, उसका पासपोर्ट जारी नहीं किया गया।

इसके बाद, सितंबर 2020 में पासपोर्ट कार्यालय ने गुलामहुसेन को पत्र लिखकर सूचित किया कि उनका पासपोर्ट इस आधार पर जब्त कर लिया गया था कि वह राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल थे। उसी को चुनौती देते हुए, गुलामहुसेन ने फिर से अदालत का रुख किया और जब हाईकोर्ट ने उस संबंध में सबूत मांगे तो प्रतिवादी अधिकारी किसी भी राष्ट्र-विरोधी गतिविधि में उसकी संलिप्तता के बारे में कोई विवरण नहीं दे सके।

इसे देखते हुए कोर्ट ने पासपोर्ट अधिकारियों के आदेश को रद्द कर दिया। प्रतिवादियों को एक महीने की अवधि के भीतर याचिकाकर्ता का पासपोर्ट जारी करने का निर्देश दिया गया था।

केस टाइटल- गुलामहुसेन दादामिया पीर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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