"निकट भविष्य में ट्रायल पूरा होने की कोई संभावना नहीं", बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस्लामिक स्टेट में शामिल होने के आरोपी युवक आरिब मजीद की जमानत बरकरार रखी
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कथित रूप से इस्लामिक स्टेट में शामिल रहे युवक आरिब मजीद की जमानत को बरकरार रखा है। हाईकोर्ट ने बुधवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की याचिका को निस्तारित किया।
मजीद को विशेष अदालत ने 17 मार्च, 2020 को जमानत दी थी, जिसके बाद एनआई ने हाईकोर्ट में अपील की और आदेश पर रोक लगा दी गई थी। मुंबई स्थित कल्याण के 27 वर्षीय मजीद ने हाईकोर्ट में अपनी जमानत अर्जी पर खुद जिरह की।
जस्टिस एसएस शिंदे और मनीष पिटले की खंडपीठ ने मजीद को छह साल से कारावास में रखने और सुनवाई की धीमी गति को जमानत बरकरार रखने के कारणों के रूप में उल्लेख किया। अदालत ने, हालांकि मामले के गुण पर एनआईए की विशेष अदालत के निष्कर्षों को खारिज कर दिया।
एनआईए की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी, जिसे अस्वीकार कर दिया गया।
अदालत ने कहा, "51 गवाहों की जांच की प्रक्रिया में पांच साल से अधिक समय लगा है और अभियोजन पक्ष को 107 और गवाह की जांच करनी है। इसलिए, अगले छह महीनों में मुकदमे के पूरा होने की कोई संभावना नहीं है।"
पीठ ने एनआईए की आशंका को खारिज कर दिया कि मजीद की रिहाई से मुकदमे पर असर पड़ेगा, क्योंकि वह गवाहों को प्रभावित कर सकता है। अदालत ने कहा कि मजीद ने अपने केस में खुद जिरह की है, वह शिक्षित परिवार का युवक है, (पिता और बहन डॉक्टर हैं, भाई इंजीनियर है) और वह सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था, जब उसने "गंभीर गलती की।"
"हमने देखा है कि प्रतिवादी एक शिक्षित व्यक्ति है। 21 वर्ष की आयु में जब वह इराक के लिए रवाना हुआ था, तब वह सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई कर रहा था। उसने स्पष्ट रूप से कहा है कि 21 वर्ष की आयु में वह बह गया था, और उसने गंभीर गलती की है, जिसके लिए वह पहले से ही छह साल से ज्यादा वक्त जेल में काट चुका है।''
अदालत ने कहा कि यदि कड़ी जमानत की शर्तें लागू की जाती हैं, तो "जमानत पर उसकी रिहाई समाज के लिए हानिकारक नहीं हो सकती है, और इससे एनआईए अदालत में जारी मुकदमे की कार्यवाही पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।"
कोर्ट ने कहा, "पिछले छह साल की कैद में प्रतिवादी ने एनआईए कोर्ट में खुद ही अपने मामले पर बहस की है। उसने इस कोर्ट ने में और एनआईए कोर्ट में अपने मामले का प्रतिनिधित्व किया है और हम देख सकते हैं कि उसने अपना मामला शिष्टाचार और उचित तरीके से पेश किया है।"
पीठ ने फैसले में केए नजीब मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम की धारा 43D (5) के तहत तय कड़े जमानत प्रावधानों की कठोरता पिघल जाएगी, जहां मुकदमे को उचित समय में समाप्त होने कोई संभावना नहीं है और लंबे समय तक कारवास की उम्मीद है।
पीठ ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई के लिए अभियुक्त के अधिकार को स्वीकार किया।
कोर्ट ने कहा, "अंततः यदि अभियुक्त को दोषी नहीं पाया जाता है, तो ऐसे अभियुक्तों द्वारा जेल में बिताए गए वर्षों, महीनों और दिनों की संख्या, उन्हें कभी वापस नहीं लौटाई जा सकती है और यह निश्चित रूप से अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए बहुमूल्य अधिकार का उल्लंघन होगा।"
मजीद को जमानत देने के आदेश में, एनआईए की विशेष अदालत ने कहा था कि 49 गवाहों की जांच के आधार पर मजीद के खिलाफ कोई "प्रथम दृष्टया मामला" नहीं बना है। हाईकोर्ट ने राम गोविंद उपाध्याय के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए कहा कि यह एक त्रुटिपूर्ण विचार है।
"हमारी राय है कि पहले जांच किए जा चुके 49 गवाहों के साक्ष्यों पर विचार करना, जबकि 107 गवाहों की जांच की जानी है, एनआईए कोर्ट ने प्रतिवादी (मजीद) के पक्ष में उक्त निर्णय और आदेश के रूप में अप्रासंगिक विचार रखा है। "
"इस तथ्य पर कोई विवाद नहीं है कि प्रतिवादी छह साल से अधिक समय तक हिरासत रह चुका है। 51 गवाहों की जांच की प्रक्रिया में पांच साल से अधिक समय लगा है और माना जाता है कि अभियोजन पक्ष द्वारा 107 और गवाहों की जांच की जानी है। इसलिए, अगले छह महीनों में परीक्षण पूरा होने की कोई संभावना नहीं है।
यह स्वीकार किया जाता है कि एनआईए अधिनियम के तहत एनआईए अदालत द्वारा प्रत्येक सप्ताह में एक बार कार्यवाही की जाती है और उक्त अदालत मकोका, टाडा, पोटा, आदि जैसे अन्य विशेष अधिनियमों से संबंधित मामलों की भी सुनवाई कर रही है।
इसलिए, अगले कुछ वर्षों तक परीक्षण जारी रहने की पूरी संभावना है। इस तथ्य पर भी कोई विवाद नहीं है कि प्रतिवाद पर जिस अपराध का आरोप है, यदि वह उसके लिए दोषी पाया जाता है, तो भी उसे पांच साल से और आजीवन कारावास की अवधि तक के लिए कारावास की सजा सुनाई जा सकती है। यह महत्वपूर्ण है कि प्रतिवादी अंडरट्रायल के रूप में छह साल से अधिक समय से कारावास में है।
उच्च न्यायालय ने विशेष अदालत के आदेश को संशोधित करते हुए जमानत के लिए अतिरिक्त शर्तें लगाईं।
पृष्ठभूमि
माजिद 24 मई 2014 को तीन अन्य युवकों के साथ इराक के लिए रवाना हुआ था। तब उसकी उम्र 21 साल थी। हालांकि छह महीने बाद, 28 नवंबर 2014 को भारत लौट आया। लौटते ही उसे राज्य के आतंकवाद विरोधी दस्ते ने गिरफ्तार कर लिया था और बाद में उसे एनआईए को सौंप दिया गया।
एनआईए ने आरोप लगाया कि मजीद समेत चारों युवकों ने बगदाद की यात्रा की, इस्लामिक स्टेट (आईएस) में शामिल हुए और इराक और सीरिया में जिहाद के नाम पर आतंकवादी कार्य करते रहे। हालांकि आईएस में शामिल होने का आरोप बाद में हटा लिया गया।
मजीद ने लगातार दावा किया कि उसे वास्तव में एनआईए और इस्तांबुल स्थति भारतीय वाणिज्य दूतावास की मदद भारत लाया गया था। उसने दलील दी कि अभियोजन पक्ष उस पर आतंकी वारदातों को अंजाम देने का आरोप लगा रहा है, जबकि उसके पास सबूत नहीं है।
उस पर आईपीसी की यूएपीए की धारा 125 (भारत सरकार की सहयोगी किसी एशियाई शक्ति के खिलाफ युद्ध छेड़ना) और धारा 16 (आतंकवादी गतिविधि के लिए सजा) और धारा 18 के तहत आरोप लगाया गया है। दोषी पाए जाने पर उसे आजीवन कारावास का सामना करना पड़ सकता है।
5 फरवरी को पिछली सुनवाई के दरमियान, पीठ ने अरीब मजीद से सीरिया जाने और अब उसे पछतावे क्यों है, जैसे कई सवाल पूछे थे।
"तुम क्यों चले गए?" न्यायमूर्ति पिटले ने स्पष्ट रूप से पूछा था।
जवाब में उसने कहा था, "मैं 21 साल का था, मैं दुख से प्रभावित हो गया था। मैं वहां गया था और वहां लोगों की मदद कर रहा था।"
"एक 21 वर्षीय युवक के रूप में, अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ तुम वहां लोगों की मदद के लिए गए थे? क्या तुम्हारे आसपास पर्याप्त दुख नहीं हैं। तुम परिजनों और माता-पिता के दुख की कल्पना करो। तुम कल्पना नहीं कर सकते।" जस्टिस पिटले ने कहा था।
पीठ ने विशेष अदालत द्वारा लगाई गई शर्तों के अलावा, माजिद पर जमानत की कठोर शर्तें लगाई हैं।
1. एक लाख रुपए के पीआर बांड और दो सॉल्वेंट स्योरिटीज़ पर रिहा करें।
2.कल्याण में परिजनों के साथ रहें और कम से कम तीन रक्त संबंधियों का विवरण दें।
3. पहले दो महीनों तक दिन में दो बार, उसके बाद अगले दो महीनों तक दिन में एक बार, उसके बाद अगले दो महीने तब सप्ताह में तीन बार, उसके बाद ट्रायल पूरा होने तक सप्ताह में दो बार स्थानीय पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करें।
4. यदि वह अनुपस्थित रहता है और उसके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया जाता है, तो उसे फिर से जमानत पर नहीं रिहा किया जाएगा, जब तक कि कोई विशेष कारण नहीं हो।
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