''कोई भी भारतीय महिला अपने पति को बांट नहीं कर सकती'': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी व्यक्ति को डिस्चार्ज करने से इनकार किया

Update: 2022-05-03 02:45 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में निचली अदालत के उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी एक व्यक्ति के आरोपमुक्त करने की मांग वाले आवेदन को खारिज कर दिया गया था। पत्नी ने कथित तौर पर इस वजह से आत्महत्या कर ली थी कि उसके पति ने उसे तलाक दिए बिना दूसरी महिला से शादी कर ली थी।

जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की पीठ ने यह कहते हुए कि एक भारतीय महिला किसी भी कीमत पर अपने पति को साझा नहीं कर सकती है, पति द्वारा दायर रिवीजन याचिका को खारिज कर दिया और कहा किः

''वे (भारतीय पत्नियां) सचमुच अपने पति के प्रति पजेसिव(अंकुश रखने वाली) हैं। किसी भी विवाहित महिला के लिए यह सबसे बड़ा झटका होगा कि उसका पति किसी अन्य महिला द्वारा साझा किया जा रहा है या वह किसी अन्य महिला से शादी करने जा रहा है। ऐसी अजीब स्थिति में, उनसे किसी भी तरह की समझदारी की उम्मीद करना असंभव है। वास्तव में, इस मामले में भी ऐसा ही हुआ है, जहां यह पता चलने के बाद कि उसके पति ने किसी अन्य महिला के साथ गुपचुप तरीके से शादी कर ली है, अपने आप में आत्महत्या करने के लिए पर्याप्त कारण से भी ज्यादा है।''

संक्षेप में मामला

मृतका ने अपने जीवनकाल में अपने पति-आरोपी (सुशील कुमार) और उसके परिवार के सभी सदस्यों के खिलाफ सितंबर 2018 में भारतीय दंड संहिता की धारा 323, 494, 504, 506, 379 के तहत वर्तमान एफआईआर दर्ज कराई थी।

उसने आरोप लगाया था कि आरोपी पहले से ही किसी अन्य महिला के साथ शादीशुदा था और उसके उस शादी से दो बच्चे हैं और अब उसे तलाक दिए बिना उसने तीसरी बार शादी कर ली है। इस शादी के तुरंत बाद, जब यह तथ्य परिवार के अन्य सदस्यों (अन्य आरोपी व्यक्तियों) के संज्ञान में आया, तो उन्होंने उसके साथ दुर्व्यवहार करना, प्रताड़ित करना और गाली-गलौच करना शुरू कर दिया।

कथित तौर पर, जब उनके अत्याचारों ने सारी हदें पार कर दी और जब आरोपी-पति ने उसे छोड़ दिया और एक नई महिला को अपने घर में रख लिया तो उसने तत्काल एफआईआर दर्ज करवाने का फैसला किया। हालांकि, इसके तुरंत बाद, उसने जहरीला पदार्थ खा लिया और उसकी मृत्यु हो गई।

पीड़िता की मौत के बाद पुलिस ने मामले में जांच तेज कर चार्जशीट दाखिल कर दी। इसलिए, पति और उसके रिश्तेदारों ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, वाराणसी के समक्ष एक डिस्चार्ज(आरोपमुक्त) आवेदन दायर किया और उनको आरोपमुक्त करने की मांग की,परंतु कोर्ट ने उस आवेदन को खारिज कर दिया। इसी आदेश को चुनौती देते हुए उन्होंने रिवीजन याचिका हाईकोर्ट के समक्ष दायर की।

न्यायालय की टिप्पणियां

कोर्ट ने कहा कि आरोपी-पति ने स्वीकार किया है कि उसने सितंबर 2018 में तीसरी बार शादी की थी। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि यह स्पष्ट है कि मृतक द्वारा उठाए गए चरम कदम के पीछे एकमात्र कारण पति का तीसरा विवाह है।

डिस्चार्ज आवेदन को खारिज करने के संबंध में, कोर्ट ने कहा कि यदि सीआरपीसी की धारा 227 (आरोपमुक्त करना) और 228 (आरोप तय करना) को एक साथ पढ़ा जाता है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि मुकदमे की शुरुआत और प्रारंभिक चरण में, अभियोजक द्वारा पेश किए जाने वाले साक्ष्य की सच्चाई, सत्यता और प्रभाव के बारे में आरोपमुक्ति के स्तर पर पूरी बारीकी से निर्णय नहीं लिया जाना चाहिए।

अदालत ने कहा,

''...आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया से अधिक मामला है, जिसके लिए उस पर मुकदमा चलाया जाना आवश्यक है। आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सामग्री है। जांच के दौरान की गई कथित विसंगतियां या भिन्नता(एक तीसरी एजेंसी) आरोपमुक्ति के स्तर पर ज्यादा प्रासंगिक नहीं होगी। एफआईआर में लगाए गए आरोप की प्रकृति ,जांच अधिकारी द्वारा जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री और इसके प्रारंभिक रूप में इसका संचयी प्रभाव ही वह सामग्री है जिस पर डिस्चार्ज का निर्णय लिया जाता है।''

मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए, अदालत ने कहा कि मृतका ने पति की एक अन्य महिला (तीसरी शादी) से शादी के बारे में पता चलते ही एफआईआर दर्ज करवा दी थी और इसलिए, एफआईआर को उसके मरने से पहले दिए गए बयान के रूप में माना जा सकता है क्योंकि मृतक ने यह एफआईआर स्वयं दर्ज करवाई थी। वहीं एफआईआर दर्ज करवाने के बाद, अगले दिन ही उसने आत्महत्या कर ली थी।

अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि महिला को एक अजीब स्थिति में फंसा दिया गया था, और इसलिए, उससे किसी भी तरह की समझदारी की उम्मीद करना असंभव होगा।

कोर्ट ने कहा,

''ठीक ऐसा ही इस मामले में भी हुआ, जहां यह पता चलने के तुरंत बाद कि उसके पति ने किसी अन्य महिला के साथ गुपचुप तरीके से शादी कर ली है, अपने आप में आत्महत्या करने के लिए पर्याप्त कारण से अधिक है।''

इसलिए यह मानते हुए कि डिस्चार्ज के स्टेज पर, अदालत से जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री या मुकदमे पर इसके प्रभाव के बारे में रोविंग इंक्वायरी करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है, अदालत ने पति द्वारा दायर रिवीजन याचिका को खारिज कर दिया।

केस का शीर्षक - सुशील कुमार व 6 अन्य बनाम यू.पी. राज्य व अन्य,क्रिमिनल रिवीजन नंबर - 1092/2022

साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (एबी) 223

आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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