पक्षकार जब यह निर्दिष्ट किए बिना समझौता करते हैं कि मुकदमा कैसे तय किया जाना है तो समझौता डिक्री पारित नहीं की जा सकती: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि पक्षकार जहां आपस में किए गए समझौते के आधार पर यह बताए बिना मुकदमे को निपटाने के लिए सहमत हुए हैं कि मुकदमे का फैसला कैसे किया जाना है या समझौते की शर्तें क्या हैं तो इस तरह के मुकदमे में न्यायालय द्वारा कोई डिक्री पारित नहीं जा सकती।
जस्टिस अनिल के. नरेंद्रन और जस्टिस पी.जी. अजित कुमार की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए उस फैसले को खारिज करते हुए उपरोक्त आदेश पारित किया, जिसमें कहा गया कि पक्षकारों के बीच सभी लंबित मामलों को समझौते के संदर्भ में सुलझा लिया गया। डिवीजन बेंच द्वारा यह नोट किया गया कि क्लॉज 5 में समझौता गिफ्ट डीड को अलग करने से संबंधित मामले के निपटारे से संबंधित है।
अदालत ने कहा,
"जिस समझौते के आधार पर पक्षकार बिना यह बताए मुकदमे को निपटाने के लिए सहमत हुए कि मुकदमे का फैसला कैसे किया जाना है और समझौते की शर्तें क्या हैं, तो कोई डिक्री पारित नहीं की जा सकती। यदि मुकदमा वापस लेना भी है तो उस प्रभाव के लिए शर्त होगी। अनुलग्नक A1 में खंड (5) या कोई अन्य खंड इस न्यायालय या फैमिली कोर्ट, तिरुवनंतपुरम को 2021 के ओ.पी.सं.780 को छोड़कर ऊपर वर्णित किसी भी मामले का निपटान करने में सक्षम नहीं बनाता। इसलिए अपीलकर्ता की आशंका है कि अनुलग्नक A1 और A2 की व्याख्या इस अर्थ में की जाएगी कि उपरोक्त सभी लंबित मामलों का निपटारा कर दिया गया है। उस अनुलग्नक A2 निर्णय को देखते हुए गलत है।"
पहले प्रतिवादी की पत्नी और बच्चों (यहां अपीलकर्ताओं) ने फैमिली कोर्ट के समक्ष मूल याचिका दायर की, जिसमें रजिस्टर्ड गिफ्ट डीड रद्द करने की डिक्री की मांग की गई। इन्होंने मेंटेनेंस की मांग को लेकर याचिका भी दायर की। उनकी ओर से पहले प्रतिवादी ने विवाह के विघटन की डिक्री के लिए याचिका दायर की और दूसरे ने उसे बच्चों का अभिभावक घोषित करने और उसकी स्थायी अभिरक्षा प्राप्त करने के लिए याचिका दायर की। तिरुवनंतपुरम में फैमिली कोर्ट के समक्ष दो और मामले भी लंबित हैं। यह इस आलोक में है कि पक्षकारों के बीच समझौता किया गया, जिस पर प्रथम अपीलकर्ता और प्रथम प्रतिवादी द्वारा हस्ताक्षर किए गए।
फैमिली कोर्ट ने 1 जुलाई, 2022 के अपने आदेश में समझौता दर्ज किया और घोषित किया कि चूंकि गिफ्ट डीड और अन्य संबंधित मामलों को अलग करने की याचिका को काउंसलिंग में सुलझा लिया गया, इसलिए समझौते के संदर्भ में ओपी की अनुमति दी जाएगी।
यह इस संदर्भ में है कि अपीलकर्ताओं ने उक्त निर्णय पर पुनर्विचार की मांग करते हुए वादी आवेदन दायर किया। अपीलकर्ताओं की ओर से एडवोकेट एम.आर. धनिल और सेनिट्टा पी. जोजो द्वारा यह तर्क दिया गया कि प्रथम अपीलकर्ता को यह विश्वास दिलाया गया कि इस तरह के समझौते से गिफ्ट डीड को अलग करने की याचिका का निपटान किया जाएगा, जबकि निर्णय ने घोषित किया कि अपीलकर्ताओं और फैमिली कोर्ट और हाईकोर्ट के समक्ष लंबित प्रतिवादियों के बीच सभी मुकदमों का निपटारा हो चुका है। जब अपीलकर्ताओं ने इसे फैमिली कोर्ट के संज्ञान में लाया तो इसने पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी। यह माना गया कि दोनों समझौता और साथ ही दिए गए निर्णय को धोखाधड़ी से दूषित किया गया और इस प्रकार वादकालीन आवेदन दायर करके इसे चुनौती दी जा सकती है।
दूसरी ओर, प्रतिवादियों की ओर से एडवोकेट एस. मजीदा, अजीखान एम. और मुहम्मद सुहैल के.एच. द्वारा यह तर्क दिया गया कि प्रथम अपीलकर्ता मेडिकल में पोस्ट ग्रेजुएट डिक्री रखने वाले पेशे से डॉक्टर है। उसने सभी धाराओं को समझने के बाद समझौते पर हस्ताक्षर किए। उसे इस प्रकार निर्णय से पीछे हटने और उस पर हमला करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
एडवोकेट ने सिंधु पी.के. बनाम श्रीकुमार पी.ए. और अन्य (2015) और त्रिलोकी नाथ सिंह बनाम अनिरुद्ध सिंह (डी) एलआर और अन्य (2020) के माध्यम से यह तर्क देने के लिए कि एक बार समझौता वैध पाए जाने के बाद अदालत इसे रिकॉर्ड करने के लिए बाध्य है और अपील या पुनर्विचार के माध्यम से इसे चुनौती नहीं दी जा सकती।
हाईकोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि समझौते के अनुसार, पक्षकारों के बीच अन्य मामलों को सुलझाना होगा।
कोर्ट ने फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को गलत बताते हुए नोट किया,
"किस तरह से उन मामलों का निपटारा किया जाना चाहिए, इसका उल्लेख नहीं किया गया। इस तरह के खंड के आधार पर संहिता के आदेश XXIII के नियम 1 या नियम 3 को लागू किया जा सकता है। यदि कोई समझौता और उसी के आधार पर डिक्री पारित की जानी है तो समझौता आमतौर पर निष्पादित होना चाहिए, न कि केवल निष्पादन योग्य होना चाहिए।"
इस मामले में अदालत ने कहा कि दूसरे और तीसरे अपीलकर्ता अवयस्क थे।
कोर्ट ने यह कहा,
"जब ऐसे मुकदमे में समझौता डिक्री पारित की जाती है, जिसमें अवयस्क पक्ष है तो यह संहिता के आदेश XXXII नियम 7 का आदेश है कि मुकदमे के निस्तारण से पहले न्यायालय की अनुमति प्राप्त की जाए। 2021 के ओ.पी.सं.780 अनुलग्नक A1 के संदर्भ में अदालत से इस तरह की अनुमति प्राप्त किए बिना समझौते की अनुमति दी गई। अदालत की अनुमति पूर्व आवश्यकता है, जब सूट अगले दोस्त या अभिभावक द्वारा समझौता किया जाता है। इस मामले को देखते हुए अनुलग्नक A2 निर्णय, जिसके द्वारा समझौता दर्ज किया गया, स्पष्ट त्रुटि है। ऐसी परिस्थितियों में फैमिली कोर्ट को पुनर्विचार याचिका की अनुमति देनी चाहिए।"
इस प्रकार अपील और वादकालीन आवेदन की अनुमति दी गई और फैमिली कोर्ट को कानून के अनुसार मूल याचिका पर आगे बढ़ने का निर्देश दिया गया।
केस टाइटल: डॉ दृश्य डी.टी व अन्य बनाम डॉ. किरण व अन्य।
साइटेशन: लाइवलॉ (केरल) 48/2023
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