एनआईए ने भीमा कोरेगांव-एलगार परिषद मामले में मसौदा आरोपों की सूची सौंपीः विवरण पढ़ें
राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में आरोपियों के खिलाफ 17 ड्राफ्ट (प्रस्तावित) आरोपों की एक सूची सौंपी , जिसमें देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने का आरोप भी शामिल है, जिसमें मौत की सजा का दंड है।
मसौदा आरोपों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश का उल्लेख नहीं है, जैसा कि 2018 में दावा किया गया था, लेकिन "एक सार्वजनिक अधिकारी की मौत का कारण" का उल्लेख है।
मसौदा आरोपों में कहा गया है कि आरोपी प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) और उसके फ्रंट ऑर्गेनाइशंस के सदस्य हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य क्रांति के जरिए, जिसके तहत दीर्घकालीन सशस्त्र संघर्ष की प्रतिबद्धता द्वारा राज्य की शक्ति को कमजोर करना और छीनन है, "जनता सरकार" यानी 'पीपूल्स गवर्नमेंट' की स्थापना करना है।
मसौदे में कहा गया है कि अभियुक्तों ने देश की एकता को खतरे में डालने के लिए, जनता में आतंक पैदा करने के लिए गैरकानूनी गतिविधियों को उकसाया और मदद की, विस्फोटक पदार्थों का उपयोग किया, चीनी QLZ 87 ऑटोमेटिक ग्रेनेड लॉन्चर और रूसी GM-94 ग्रेनेड लॉन्चर जैसे परिष्कृत हथियारों का ट्रांसपोर्ट किया, ... जिनमें मौत का कारण बनने की संभावना है या सार्वजनिक अधिकारी की मौत का कारण या चोट पहुंचाने का प्रयास था।
मसौदा चार्ज में कहा गया है कि आरोपियों ने हथियारों के लिए 8 करोड़ रुपये की मांग और इकट्ठा करने की साजिश रची।
एनआईए ने आरोप लगाया कि साजिश के तहत, एल्गार परिषद कार्यक्रम का आयोजन माकपा के एक 'फंट' ऑर्गेनाइजेशन कबीर कला मंच ने 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में किया था, जिसके बाद अगले दिन भीमा कोरेगांव में जातीय हिंसा हुई, जिससे एक व्यक्ति की मौत हो गई।
मसौदे में कहा गया है, "... राज्य भर में दलितों और अन्य वर्गों की सांप्रदायिक भावना का दोहन करने के लिए और उन्हें जाति के नाम पर भड़काने के लिए, जिला पुणे में, भीमा कोरेगांव और महाराष्ट्र राज्य में विभिन्न स्थानों पर हिंसा, अस्थिरता और अराजकता पैदा करने के लिए,"।
आरोप
आरोपियों में ज्योति राघोबा जगताप, सागर तात्याराम गोरखे, रमेश मुरलीधर गायचोर, सुधीर धवले, सुरेंद्र गाडलिंग, महेश राउत, शोमा सेन, रोना विल्सन, अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज, वरवर राव, वर्नोन गोंसाल्वेस, आनंद तेलतुंबडे, गौतम नवलखा और हनी बाबू शामिल हैं। .
उन पर धारा 121 (देश के खिलाफ युद्ध छेड़ना), 121-ए (आपराधिक बल के माध्यम से सरकार को डराना), 124-ए (देशद्रोह), 153-ए (दो समुदायों के बीच नफरत और दुश्मनी को बढ़ावा देना), 120बी ( साजिश), 505 (1) (बी) (सद्भाव के प्रतिकूल कार्य) के तहत आरोप लगाए गए थे।
उन पर यूएपीए एक्ट की धारा 10,13,16,18,18-बी, 20,38,39,40 के तहत अपराध करने का भी आरोप लगाया गया है । पुणे पुलिस ने प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश का जिक्र किया था
2019 में मामले की जांच कर रही पुणे पुलिस ने, 2020 में एनआईए के कार्यभार संभालने से पहले, मसौदा आरोपों की अपनी सूची में "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या" करने की साजिश का उल्लेख किया था। उन्होंने 18 अप्रैल, 2017 को एक "राजीव गांधी-टाइम" ऑपरेशन के बारे में कॉमरेड प्रकाश को एक किसी 'आर' द्वारा लिखे गए एक ईमेल का हवाला दिया था।
हालांकि, एनआईए की 10,000 पन्नों की चार्जशीट और 9 अगस्त को विशेष एनआईए अदालत में जमा किए गए ड्राफ्ट चार्ज में इस विशिष्ट दावे का जिक्र नहीं है।
इन मसौदा आरोपों के आधार पर, एक विशेष अदालत आईपीसी और यूएपीए अपराधों का फैसला करेगी जिसके तहत आरोपी - 15 कार्यकर्ता, वकील और शिक्षाविद मुकदमे का सामना करेंगे। 15 आरोपियों के खिलाफ एनआईए का मामला मुख्य रूप से आरोपी शोधकर्ता रोना विल्सन और सह-आरोपी अधिवक्ता सुरेंद्र गाडलिंग के कम्प्यूटर से प्राप्त पत्रों पर आधारित है।
हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका की एक डिजिटल फोरेंसिक परामर्श कंपनी ने निष्कर्ष दिया था कि रोना विल्सन का कम्प्यूटर एक मालवेयर से संक्रमित था, जिसे नेटवायर कहते हैं।( यह 10 डॉलर में ऑनलाइन उपलब्ध है) और सभी आपत्तिजनक सबूत 6 जून, 2018 को विल्सन की गिरफ्तारी से दो साल पहले के अवधि में कम्प्यूटर में डाले गए थे। इसके बाद रोना विल्सन ने मामले को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाज खटखटाया था।
भीमा कोरेगांव मामला
भीमा कोरेगांव लड़ाई 25,000 सैनिकों की पेशवा सेना और 500 महार (दलित) समुदाय के लोगों सहित ब्रिटिश सैनिकों के बीच लड़ा गया था। उस समय ब्रिटिश सेना द्वारा निर्मित एक स्मारक में युद्ध में शहीद हुए लोगों के नाम अंकित किए गए थे।
भीमा कोरेगांव में युद्ध स्मारक पर जाने वाले सैकड़ों लोगों पर एक जनवरी 2018 को हिंसा भड़कने के बाद हमला किया गया था। वे ज्यादातर दलित समुदाय से थे, और पथराव में एक की मौत हो गई।
उसी दिन हिंसा के संबंध में एक एफआईआर दर्ज की गई थी।
दक्षिणपंथी कार्यकर्ता तुषार दामगुडे ने एक और एफआईआर 8 जनवरी, 2018 को दर्ज कराई थी और उस पर कार्रवाई की गई। 17 अप्रैल, 2018 को रोना विल्सन और अधिवक्ता सुरेंद्र गाडलिंग सहित कई कार्यकर्ताओं के घरों की तलाशी ली गई।
जांच का दायरा अंततः व्यापक हो गया, पुणे पुलिस ने इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के रूप में आपत्तिजनक दस्तावेजों की पुनर्प्राप्ति का दावा किया। एनआईए ने इस मामले को 2020 में अपने हाथ में लिया था।