"डोर-टू-डोर वैक्सीनेशन की तुलना में नियर-टू-डोर वैक्सीनेशन का विकल्प अधिक उपयुक्त": केंद्र सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट में कहा
केंद्र सरकार बुजुर्गों और विशेष रूप से विकलांगों और अपाहिज लोगों को घर पर ही वैक्सीन देने के लिए एक और पांच सूत्रीय कार्यक्रम लेकर आई है।
बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष मंगलवार को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा दायर एक हलफनामे में कहा गया कि डोर-टू-डोर वैक्सीनेशन की तुलना में नीयर-टू-डूर वैक्सीनेशनएक उपयुक्त समाधान होगा।
नियर टू डोर COVID-19 वैक्सीनेशन सेंटर्स में सामुदायिक केंद्रों, स्कूल भवनों और वृद्धाश्रमों जैसे घर के करीब गैर-स्वास्थ्य सुविधाओं में वैक्सीनेशन ज़ैब शामिल होंगे।
मंत्रालय ने कहा कि उसने 27 मई, 2021 को एक मानक संचालन प्रक्रिया जारी की है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने 20 मई को राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह को COVID-19 (NEGVAC) के लिए वैक्सीन प्रशासन पर 1 जून, 2021 तक का समय दिया, जो उन नागरिकों के लिए डोर-टू-डोर नीति पर निर्णय लेने रही थी, जो लोग वैक्सीनेशन के लिए वैक्सीन सेंटर्स पर नहीं आ सकते हैं।
केंद्र के हलफनामे में कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेशों के अनुसार, नई दिल्ली में नीति आयोग में 25 मई, 2021 को NEGVAC की बैठक में डूर-टू-डूर वैक्सीनेशन पर चर्चा की गई थी।
हलफनामे में कहा गया,
"बैठक में भाग लेने वाले सभी सदस्यों ने सहमति व्यक्त की कि विशेषज्ञ समिति द्वारा उद्धृत मुद्दों और जोखिमों के कारण COVID-19 वैक्सीनेशन घर पर नहीं किया जा सकता है। इस समिति का गठन डॉ एनके अरोड़ा, कार्यकारी निदेशक इंकलेन ट्रस्ट की अध्यक्षता में किया गया है।"
इसने डोर-टू-डोर वैक्सीनेशन के खिलाफ निम्नलिखित कारणों का हवाला दिया -
1. समय पर और पर्याप्त तरीके से वैक्सीनेशन (एईएफआई) के बाद प्रतिकूल घटनाओं को संबोधित करना।
2. वैक्सीनेशन के बाद 30 मिनट तक प्रत्येक लाभार्थी के अवलोकन का प्रोटोकॉल बनाए रखना।
3. कोल्ड चेन बनाए रखना और वैक्सीन की कम बर्बादी सुनिश्चित करना।
4. समुदाय के अनुचित दबाव और समुदाय में सुरक्षा के मुद्दों के लिए स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंट लाइन के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का एक्सपोजर।
5. वैक्सीन लगाने वालों और मोबिलाइजरों में COVID-19 संक्रमण होने का खतरा
हलफनामे में आगे कहा गया है कि 28 मई, 2021 तक एईएफआई के 25,309 मामले सामने आए हैं। इनमें से 1186 गंभीर मामले थे। इसके अलावा, 28 मई तक COVID-19 वैक्सीनेशन के बाद 475 मौतें हुईं।
इससे पहले की सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की पीठ ने कहा था कि अगर केंद्र ने कुछ महीने पहले बुजुर्गों और बिस्तर पर लेटे लोगों के लिए डूर-टू-डूर वैक्सीनेशन नीति बनाई होती तो कई लोगों की जान बचाई जा सकती थी।
पीठ दो अधिवक्ताओं धृति कपाड़िया और कुणाल तिवारी की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों को 75 से ऊपर के नागरिकों, फिजिकल रूप से विकलांग व्यक्तियों और बिस्तर पर पड़े लोगों के लिए डूर-टू-डूर वैक्सीनेशन अभियान शुरू करने के लिए दिशा-निर्देश दिए जाने की मांग की गई है।
[ ध्रुति कपाड़िया बनाम यूओआई ]