एनडीपीएस अधिनियम | एफएसएल को भेजे गए सैंपल पार्सल को जांच के बाद सील करना और कोर्ट में वापस पेश करना जरूरी: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2022-09-07 06:57 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में व्यवस्था दी है कि फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला को भेजा गया कथित प्रतिबंधित पदार्थ के सैम्पल का पार्सल "केस प्रॉपर्टी" है और फॉरेंसिक जांच पूरी होने के बाद, उसे एफएसएल की सील के साथ ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश किया जाना चाहिए।

जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर की पीठ ने कहा,

"मादक पदार्थों के नमूने का कपड़ा पार्सल, जिसे लेकर संबंधित एफएसएल द्वारा दोषी के खिलाफ प्रतिकूल राय बनाई जाती है, वह कभी भी संबंधित एफएसएल की संपत्ति नहीं बन सकता है, "बल्कि केस प्रॉपर्टी है" और, स्पष्ट रूप से संबंधित एफएसएल द्वारा इसे संबंधित पुलिस मलखाना को वापस करने की आवश्यकता होती है, ताकि उसे बाद में कोर्ट में पेश किया जा सके, क्योंकि, केवल कोर्ट में ही पेश करने पर, इसके रोड सर्टिफिकेट के साथ प्रमाणित रूप से जुड़े होने और इसके उपयुक्त लिंक का तथ्य एफएसएल की रिपोर्ट के साथ होगा स्थापित होता है और जब कपड़े के पार्सल के अंदर के सामान की जांच हो जाती है तो फिर से उसी कपड़े के पार्सल में नमूनों को रखा जाता है और उसके बाद एफएसएल की मुहरें भी लगाई जाती है। "

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि न केवल थोक प्रतिबंधित पार्सल को कोर्ट में प्रस्तुत करने की आवश्यकता है, बल्कि सैम्पल पार्सल जो एफएसएल को भेजे जाते हैं, उन्हें भी प्रस्तुत करना आवश्यक है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सैम्पल पार्सल पर लगे सील से न केवल एफएसएल को भेजे जाने तक, बल्कि अंदर के सामान की जांच के बाद भी छेड़छाड़ नहीं हुई है। इस प्रकार, संबंधित रासायनिक विश्लेषक को न केवल सैम्पल पार्सल के अंदर जांचे गए सामान को फिर से संलग्न करना चाहिए, बल्कि उस पर संबंधित एफएसएल के मुहर को भी लगाना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि ये औपचारिकताएं न केवल अन्यमनस्क और यंत्रवत हैं, बल्कि आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप को बेझिझक साबित करने की दिशा में काम करती हैं। कोर्ट ने कहा कि इस प्रक्रिया का पालन करने में विफलता का एक अपरिहार्य प्रभाव होगा कि प्रतिबंधित पदार्थ रखा गया संबंधित थोक पार्सल भी जांच के दायरे से बच निकलेगा।

कोर्ट एक ऐसे मामले से निपट रहा था, जहां विशेष न्यायाधीश, पटियाला ने दोषी को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट की धारा 22 के तहत दोषी ठहराते हुए उसे 10 साल के कठोर कारावास और एक लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी, इसके खिलाफ दोषी ने यह अपील दायर की थी।

मौजूदा मामले से संबंधित तथ्य यह है कि जांच अधिकारी द्वारा दोषी के दाहिने हाथ में पॉलीथिन बैग से कोरेक्स और लोमोटिल टैबलेट के रूप में प्रतिबंधित पदार्थ बरामद किया गया था और इसे सील मोहर वाले सैम्पल पार्सल में एफएसएल को भेजा गया था, जहां रासायनिक विश्लेषक ने विश्लेषण के बाद, जांच की गई सामग्री को सैम्पल पार्सल में फिर से नहीं रखा था और न ही उसने संबंधित एफएसएल की मुहर ही लगायी थी।

कोर्ट ने कहा कि उपरोक्त चूक का परिणाम यह था कि केवल एफएसएल की राय पर निर्भर अभियोजन पक्ष अपनी राय को थोक पार्सल से समन्वित नहीं कर सका था।

इससे इतर, संबंधित एफएसएल की आपत्तिजनक राय की पुष्टि सैम्पल पार्सल को पेश करने के साथ जोड़ना आवश्यक है, ठीक वैसे ही जैसे हस्तलेखन विशेषज्ञ की रिपोर्ट तुलना के लिए भेजे गये दस्तावेज के ऊपर मूल दस्तावेज हो जाती है, और उसे रिपोर्ट के साथ संलग्न करने की आवश्यकता होती है।

उपरोक्त आवश्यकता भी दोषी को संबंधित एफएसएल से पुनर्परीक्षण की मांग की सुविधा प्रदान करती है, लेकिन यह तभी होगा, जब नमूना पार्सल न्यायालय में पेश किए जाएंगे।

कोर्ट ने कहा कि इसलिए उपरोक्त के अभाव में, यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि थोक पार्सल के अंदर रखा गया सामान भी प्रतिबंधित पदार्थ था या नहीं। कोर्ट ने निम्नलिखित सिद्धांत भी निर्धारित किए जो उपरोक्त चर्चा से सामने आए:

1. थोक और साथ ही संबंधित सैम्पल पार्सल, केवल अधिकार क्षेत्र वाले कोर्ट के आदेश पर उसे समाप्त करने या सरकार को जब्ती के आदेश देने के लिए उत्तरदायी संपत्ति हैं।

2. एफएसएल को भेजे गये सैम्पल को कोर्ट में पेश किया जाना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि एफएसएल द्वारा दी गई राय इसे थोक पार्सल के साथ समन्वित करेगी।

3. संबंधित एफएसएल की रिपोर्ट में सच्चाई का खंडन करने योग्य पूर्वधारणा है, और आरोपी एफएसएल द्वारा पुन: जांच कराने की मांग कर सकता है।

4. सैम्पल पार्सल के अंदर की सामग्री, प्राथमिक साक्ष्य है और एफएसएल की रिपोर्ट द्वितीयक साक्ष्य है, और जब तक प्राथमिक साक्ष्य कोर्ट के समक्ष पेश नहीं किया जाता है, तब तक द्वितीयक साक्ष्य किसी भी प्रमाणिक मूल्य का अधिग्रहण नहीं करता है।

परिणामस्वरूप, कोर्ट ने माना कि आक्षेपित निर्णय घोर अतार्किक, उपरोक्त (तथ्यों) के घोर दुरूपयोग से ग्रस्त है और इसे निरस्त और रद्द करने की आवश्यकता है।

केस शीर्षक: बूटा खान बनाम पंजाब सरकार

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