एनडीपीएस एक्ट-रिकवरी के 15 दिनों के भीतर एफएसएल रिपोर्ट दाखिल करने में विफलता जमानत का आधार नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2022-07-21 16:12 GMT

Karnataka High Court

कर्नाटक हाईकोर्ट ने नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस) के प्रावधानों के तहत आरोपित एक आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका को खारिज करते हुए दोहराया है कि केवल इसलिए कि जब्त किए गए प्रतिबंधित पदार्थ की रासायनिक विश्लेषण रिपोर्ट 15 दिनों के भीतर प्राप्त नहीं हुई है,यह एक आरोपी को जमानत पर रिहा करने का कोई आधार नहीं है।

जस्टिस मोहम्मद नवाज़ की एकल पीठ ने एक जाकिर हुसैन द्वारा दायर जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा, ''केवल इसलिए कि 15 दिनों के भीतर रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है, आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आधार नहीं है। एफएसएल रिपोर्ट प्राप्त करने में कोई अत्यधिक देरी नहीं हुई है।''

आरोपी को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 20 (बी) (ii) (सी), 23, 27 (ए), 28 और 29 के साथ पठित धारा 8 (सी) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए गिरफ्तार किया गया है।

फिर से दायर की जमानत याचिका में यह तर्क दिया गया था कि अब जांच समाप्त हो गई है और एफएसएल रिपोर्ट सहित पूरी सामग्री रिकॉर्ड पर उपलब्ध है और इसलिए, याचिकाकर्ता को जमानत दे दी जाए।

यह प्रस्तुत किया गया कि कथित गांजा नारियल की बोरियों के नीचे छुपाया गया था और इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता के पास प्रतिबंधित सामग्री थी। आगे यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता केवल ट्रक का मालिक-सह-चालक है जो नारियल लेकर जा रहा था और उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि ट्रक में गांजा है। आगे यह भी तर्क दिया गया कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 42 का अनुपालन नहीं किया गया है, क्योंकि शिकायतकर्ता द्वारा प्राप्त गुप्त सूचना को लिखित रूप नहीं दिया गया था और न ही वरिष्ठ अधिकारी को सूचित किया गया था।

इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया कि एक निजी वाहन की रात के समय तलाशी ली गई और जब्ती की गई है, जो एनडीपीएस अधिनियम की धारा 42 और 43 के अनिवार्य प्रावधानों का उल्लंघन है। नमूने 12.04.2021 को लिए गए थे और एफएसएल रिपोर्ट 11.06.2021 को प्राप्त हुई थी, जो कि 15 दिनों के भीतर प्राप्त नहीं हुई है और यह स्थायी अनुदेश 1/88 का उल्लंघन है।

एनसीबी ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि हाईकोर्ट पहले ही याचिकाकर्ता की प्रार्थना को खारिज कर चुका है और उसकी जमानत याचिका पर एक बार फिर विचार करने के लिए कोई बदली हुई परिस्थिति नहीं है।

न्यायालय का निष्कर्षः

रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री पर विचार करने के बाद न्यायालय ने पाया कि गांजे की तलाशी एवं जब्ती, मात्रात्मक विश्लेषण, नमूने लेने तथा प्रतिबंधित सामग्री को रासायनिक जांच के लिए भेजने के संबंध में अनिवार्य प्रावधानों का उल्लंघन नहीं हुआ है।

याचिकाकर्ता की इस दलील को खारिज करते हुए कि रासायनिक विश्लेषण रिपोर्ट 15 दिनों के भीतर प्राप्त नहीं हुई है, पीठ ने भारत संघ बनाम बाल मुकुंद व अन्य (2009)12 एससीसी 161 में रिपोर्ट किए गए मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया था कि स्थायी अनुदेश नंबर 1/88 का उल्लंघन आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आधार नहीं है।

इसके अलावा, पीठ ने याचिकाकर्ता की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि गांजा युक्त कथित बैग नारियल की बोरियों के नीचे छिपा हुआ था और याचिकाकर्ता को ट्रक का चालक होने के कारण यह नहीं कहा जा सकता है कि उसके पास गांजा था।

एनडीपीएस अधिनियम की धारा 35 का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता निश्चित रूप से ट्रक का मालिक-सह-चालक है। पीठ ने कहा, ''मामले में, इस स्तर पर, इस न्यायालय ने पाया है कि याचिकाकर्ता को जूट की बोरियों में छुपाए गए पदार्थ की प्रकृति का वास्तविक ज्ञान था।''

कोर्ट ने यह भी कहा कि, ''आरोपी को अपने वाहन में गांजा ले जाते हुए पाया गया है और इस स्तर पर, एकत्र की गई सामग्री यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि उसे नारियल के भार के नीचे जूट की बोरियों में छुपाए गए पदार्थ की प्रकृति का वास्तविक ज्ञान था। इसलिए, उपरोक्त सभी को ध्यान में रखते हुए, इस न्यायालय का सुविचारित विचार है कि, याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है और इस स्तर पर यह नहीं कहा जा सकता है कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि याचिकाकर्ता उसके खिलाफ आरोपित अपराध के लिए दोषी नहीं है।''

केस टाइटल- जाकिर हुसैन बनाम स्टेट बाय इंटेलिजेंस ऑफिसर

केस नंबर-आपराधिक याचिका नंबर 2612/2022

साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (केएआर) 279

आदेश की तिथि- 15 जुलाई, 2022

प्रतिनिधित्व- याचिकाकर्ता के लिए एडवोकेट रुद्रभूषण सी.बी, वरिष्ठ अधिवक्ता धनंजय जोशी; प्रतिवादी के लिए सीनियर सी.जी.एस.सी मधुकर एम. देशपांडे

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