[NDPS Act] दिल्ली हाईकोर्ट 'छोटी या व्यावसायिक मात्रा' निर्धारित करने के लिए ड्रग के वास्तविक वजन के साथ तटस्थ पदार्थों को शामिल करने की वैधता पर विचार करेगा
दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने एक रिट याचिका पर नोटिस जारी किया है, जिसमें केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा जारी दो अधिसूचनाओं को चुनौती दी गई है।
अधिसूचना के अनुसार, नशीली दवाओं और ड्रग की वास्तविक मात्रा के विपरीत ड्रग्स में पाने जाने वाले तटस्थ पदार्थों को भी शामिल किया गया है।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर मामले की सुनवाई अगले महीने तय की है।
नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट के तहत आरोपी राजीव टीएम द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि वर्ष 2001 और 2009 में जारी की गई अधिसूचनाओं में ड्रग के साथ ही ड्रग की तैयारी के पदार्थों को भी दंडित करने का प्रभाव है।
इसे दो प्राथमिक आधारों पर चुनौती दी गई है:
1. कार्यपालिका की क्षमता का दुरुपयोग
यह तर्क दिया गया है कि एनडीपीएस अधिनियम में मात्रा निर्धारित करने के लिए केवल शुद्ध नारकोटिक ड्रग/ साइकोट्रोपिक सब्सटेंस पर विचार करने की आवश्यकता है और किसी भी तटस्थ सामग्री की मात्रा को नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
याचिका में कहा गया है कि अधिसूचनाओं में कई दोष हैं।
उदाहरण के लिए, यह दर्शाया गया है कि यदि अधिसूचनाएं लागू की जाती हैं, तो 4 ग्राम हेरोइन छोटी मात्रा होगी, लेकिन यदि कोई उसे 50 किलोग्राम पाउडर शुगर के साथ मिलाता है तो वह एक व्यावसायिक मात्रा हो जाएगी। इसका प्रभाव यहा है कि अपराधी को 20 साल तक की जेल की सजा हो सकती है।
याचिका में कहा गया है,
"एनडीपीएस अधिनियम प्रतिवादियों को किसी भी ड्रग की मात्रा को सूचित करने की अनुमति देता है जो एनडीपीएस अधिनियम के तहत वाणिज्यिक मात्रा या छोटी मात्रा के रूप में है। यह अधिसूचना के माध्यम से तैयारी को शामिल करने के लिए ड्रग की परिभाषा का विस्तार करने के लिए कोई शक्ति प्रदान नहीं करता है।"
2. संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन
अधिसूचनाएं एक ऐसी स्थिति पैदा करती हैं जहां नशेड़ियों के प्रति सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर एनडीपीएस अधिनियम को युक्तिसंगत सजा देने का उद्देश्य विफल हो जाता है और उनके साथ नशीले पदार्थों के तस्करों के समान व्यवहार किया जाता है।
इस प्रकार, इसे मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करने वाला बताया गया है।
याचिका में कहा गया है,
"इन अधिसूचनाओं द्वारा बनाए गए वर्गीकरण और एनडीपीएस अधिनियम के उद्देश्य के बीच कोई तर्कसंगत संबंध नहीं है। इसलिए, अधिसूचनाएं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और 14 का भी उल्लंघन करती हैं। यह ड्रग का भी वाणिज्यिक स्तर पर अपराधीकरण करता है, जबकि उक्त ड्रग को पर्याप्त तटस्थ सामग्री के साथ मिलाया जाता है।"
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता जे साई दीपक पेश हुए।
उन्होंने प्रस्तुत किया कि हीरा सिंह बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह विचार किया है कि आक्षेपित अधिसूचनाओं के संदर्भ में ड्रग की मात्रा को "छोटी मात्रा" या "वाणिज्यिक मात्रा" के रूप में निर्धारित करने के लिए ड्रग की पूरी मात्रा को ध्यान में रखा जाएगा अर्थात शुद्ध ड्रग की सामग्री और तटस्थ सामग्री भी।
हालांकि, उन्होंने कहा कि यह तत्काल रिट याचिका दायर करने में कोई बाधा नहीं है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने केवल अधिसूचनाओं को लागू किया है।
उन्होंने कहा कि अधिसूचनाओं के अधिकार का प्रश्न उपरोक्त निर्णय में विषय नहीं है और इस प्रकार अधिसूचना की वैधता पर कोई निष्कर्ष नहीं है।
याचिका एडवोकेट अंजू के. वर्के, एडवोकेट अविनाश के शर्मा, एडवोकेट प्रणव कृष्ण और एडवोकेट आशुतोष नागर के माध्यम से दायर की गई है।
केस की शीर्षक: राजीव टी.एम. बनाम भारत संघ